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पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/१४५

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वनी ३३८४ घपुरा बनी-संज्ञा पुं० [सं० वणिक् ] बनिया । उ०-वनी को जसो नकली। उ०-तब उस बनोवा शुक्र ने वारंवार मिथ्या मोल है ।-घनानंद (शब्द॰) । भाषण करके धोखा दिया ।-फबीर मं०, पृ० २२८ । बनीनी-मज्ञा स्त्री० [हिं० वनी + ईनी (प्रत्य॰)] वैश्य जाति को बन्नर-संज्ञा पुं॰ [ सं० वानर, हिं० बंदर ] दे० 'वदर' । उ०- स्त्री। बनिए की स्त्री। उ०-नव जोबनी की जोवनी की रिन रची कुमकन्न परयो भूषो वैसम्नर । घर बंदर धक जोति जीति रही, कैसी बनी नीकी बनीनी की छवि छाती में । धाह दंत फरिषद्ध वन्नर ।-पृ० रा०, २।२८६ । -देव (शब्द०)। बन्ना -सज्ञा पुं० [हिं० बना] दूल्हा । उ०-वन्ना वनि पायो नंद- बनीर-संज्ञा पुं० [सं० वानीर ] वेत । नंदन मोहन कोटिक काम ।-भारतेंदु ग्र०, मा० २, बनूख-सज्ञा पुं॰ [ स० बधूक ] दे० 'बंधुक' । उ०-सुनत पृ० ४४४ । वचन वै पघर सोहाए । ऊव, बिपूख बनूख सुखाए । -हिंदी बन्नात-संज्ञा स्त्री० [हिं० ] दे० 'वनास' । प्रेमगाथा०, पृ० २५४ । बन्नो-संज्ञा स्त्री॰ [देश०] अन्न का तिहाई पथवा पौर कोई भाग बनेठी-संज्ञा स्त्री० [हिं० बन + सं० यष्टि ] वह लंबी लाठी जिसके जो खेत में काम करने वालों को काम करने के बदले में दिया दोनो सिरो पर गोल लट्ट लगे रहते हैं। इसका व्यवहार जाता है। पटेबाजी के अभ्यास और खेलों प्रादि में होता है । बन्नो-पंज्ञा स्त्री॰ [हिं०] दे० 'नो' । यौ०-पटा बनेठो। वन्हि-ज्ञा स्त्री॰ [ सं० वह्नि, प्रा० वह्नि ] दे० 'वह्नि' । उ०--उठिहै बनेना -सज्ञा पुं॰ [देश॰] एक प्रकार का रेशम का कीडा । निसि वन बन्हि अचान !-नंद० ०. पृ० २०२ । वनैत–वि० [हिं० ] वानैत । तीरंदाज । २०-बदर बनत चहूँ वसा-पंज्ञा पुं० [हिं० याप+ मं० अंश ] पिता से मिला हुप्रा दिस धाए ।-नंद००, पृ० १६६ । अंश । बपौती । दाय। वनैला-वि० [हिं० बन + ऐला (प्रत्य॰) ] जंगली। वन्य । जैसे, चपg+१-संज्ञा पुं० [सं० वा ] बाप । पिता । बनैला सूपर। यौ०-अपमार = पिता को मारनेवाला । पितृघातक । वनोका-संज्ञा पुं० [ स० वनौकस ] बनौकस । वंदर । उ०- वप२-संज्ञा पुं॰ [सं० वपु ] वपु । शरीर। उ०-वप रूप प्रोप नाचै लाज निवार नित वांका छाण बनोक ।-बांकी० ग्रं, नवधन बरण, हरण पाप त्रय ताप हरि ।-रा० रू०, भा० ३, पृ०६०। पृ०२। बनोबस्ता-संज्ञा पुं० [फा० बंदोवस्त ] दे० 'बंदोबस्त'। उ०- वपमार-वि० [हिं० धाप+मारना ] १. पिता का घातक । वह थोडा खर्च रो बनोवस्त कर दियो होतो। -श्रीनिवास जो अपने पिता की हत्या करे । २. सबके साथ धोखा और ग्रं॰, पृ० ५७। अन्याय करनेवाला। वनोबास-संज्ञा पु० [सं० वनवास] दे० 'वनवास' । उ०-धनुष बपतिस्मा -संज्ञा पुं० [अं० ] ईसाई संप्रदाय का एक मुख्य संस्कार भग के प्रौर राम के बनोवास के ।-अपरा, पृ० १६६ । जो किसी व्यक्ति को ईसाई बनाने के समय किया जाता है। बनौकस-वि० [सं० वनौकस् ] बनवासी। जंगल निवासी। उ०- विशेप-इसमें पादरी हाथ में बल लेकर अभिमंत्रित करता निरखि बनोक्स प्रमुदित भए ।-नंद० प्र०, पृ० २६० । और ईसाई होनेवाले व्यक्ति पर छिडकता है। यह संस्कार वनौट-सज्ञा स्त्री० [हिं० बनावट ] बनावट । प्राडंबर। उ.. विमियों को ईसाई बनाने के समय भी होता है पौर उस अदा मे अपने शहर के माशूको की तरह बनौट का नाम ईसाइयों के घर जन्मे हुए बालकों का भी होता है । इस न था।-सैर०, पृ० १३१ । सस्कार के समय संस्कृत होनेवाले का एक अलग नाम भी बनौटा-० [हिं० बनावट ] बनाया हुप्रा । प्रतिपालित रखा जाता है जो उसके कुल नाम के साथ जोड़ दिया जाता निमित । उ० - हमरै साहु रमाइया मोटा, हम ताके प्राहि है। संस्कार के समय का यह नाम उनमें से कोई होता है चनौटा ।-सुदर० ग्रं॰, भा०२, पृ० ८८८ । जो इंजील में पाए है। बनौटी-वि० [हिं० बन+ौटी (प्रत्य॰)] कपास के फूल का बपना-क्रि० स० [सं० वपन] (बोज) बोना । उ०—(क) कह सा। कपासी। उ०-देखी सोनजुही फिरत सोनजुही से को लहे फल रसाल बबुर बीज बपत । —तुलसी (शब्द॰) । अंग | दुति लपटनि पट सेतहू करति बनौटी रंग-बिहारी बपु-संज्ञा पुं० [सं० वपु ] १. शरीर । देह । २. पवतार । ३. रूप । (शब्द०)। वपुख-संज्ञा पुं० [ सं० वपुप् ] शरीर । देह । उ०-दूरि के कलंक बनौधा-सञ्ज्ञा पु० [हिं० ] दे० 'बनवघ' । भव सीस सिस सम राखत है केशोदास के वपुख को।-केशव बनौरी-सञ्ज्ञा स्त्री० [सं० वन ( = जल)+ श्रोला ] वर्षा के साथ (शब्द०)। गिरनेवाला पोला । पत्थर । हिमोपल । वपुरा-वि० [सं० वरांक अथवा देशी वप्पुड ( = दीन)] [वि० वनौवा–वि० [हिं० घनाना +ौवा (प्रत्य॰)] बनावटी । कृत्रिम । स्त्री० बपुरी ] बेचारा । मशक्त । गरीव । मनाथ । उ०—(क) .