पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/१४८

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बैमकना ३३५७ बयना लगा हुआ लकड़ियों का वह जोड़ा जिसके बीच में घोड़ा खड़ा उ०-दूजा वहीं और को अंसा, गुरु मंजन करि सूझे। दादू करके जोता जाता है। मोटे भाग हमारे, दास बमेकी वूझ ।-दादू, पृ० ५४४ । धमकना-क्रि० प्र० [अनु• ] १. मावेश में भाकर लंबी चौड़ी बमेला -संज्ञा स्त्री० [ देश० ] एक प्रकार की मछली । बातें करना । शेखी बघारना । डींग हाँकना । २. उछलना बमोटा-संज्ञा ० [हिं०] दे० 'वमीठा' । - कूदना । ३. फूट जाना। बम्मन, बम्हना-संज्ञा पुं० [सं० ग्रामण, प्रा० अप० बम्हण, बभन, बमकाना-क्रि० सं० [हिं० घमकना ] किसी को बमकने में प्रवृत्त ८०हिं० बम्मन ] दे॰ 'ब्राह्मण' । उ०-नामा प्यारा है भगत, करना । बढ़कर बोलने के लिये प्रवेश दिलाना । उसे जानत है जगत । बम्मन पाया धूड़त धूड़त लगत पाया बमचख-संज्ञा स्त्री० [ अनुध्व० बम + हिं० चीखना] १. शोर गांव मों।-दक्खिनी०, पृ० ४५ । गुल । २. लड़ाई झगड़ा । विवाद । बम्हनपियाव-संज्ञा पुं० [सं० ब्राह्मण + हिं० पिलाना ] ऊख कि प्र-मचना ।-मचाना । को पहले पहल पेरने के समय उसका कुछ रस ब्राह्मणों को बमनाg+-क्रि० स० [सं० वमन ] १. मुह से उगलना । वमन पिलाना जो प्रावश्यक पौर शुभ माना जाता है। करना । के करना। उ०–मुष्टिक एक ताहि कपि हनी। बम्हनरसियाव/-संज्ञा पुं० [हिं० बम्हन+रसियाव ] दे० 'बम्हन- रुधिर बमत धरनी ढनमनी ।—तुलसी (शब्द०) । २. उगलता पिया' । हुा । वर्षण करता हुषा । उ०—विकट बदन अरु बड्डे दंत। बझनी-संज्ञा स्त्री॰ [सं० ब्राह्मणी, अप० बम्हनी] १. छिपकली की विकट भृकुटि हग अग्नि वमंत ।-नंद० प्र०, पृ० २८६ । तरह का एक पतला कीड़ा । बभनी। धमनी-वि० स्त्री० [सं० वामन] लघु । छोटी । स्वल्प । उ०-पंदर विशेष-माकार में यह प्रायः छिपकली से माधा होता है। की प्रभु सब जानत धो काह मौज मेरी धमनी ।-भीखा० इसकी पीठ काली, दुम पोर मुख बाल चमकीले रंग का होता श०, पृ०१०। है। इसकी पीठ पर चमकीली पारियां होती हैं। बमपुलिस-पज्ञा ० [० बम ( = घड़ाका)+प्लेस (= स्थान)] २. प्रांख का रोग जिसमें पलक पर एक छोटी फुसी निकल पाती राहचलतों और मुसाफिरों के लिये बस्ती से दूर बना हुआ है। बिलनी । गुहांजनी। ३. वह गाय जिसकी मांख की पाखाना। बरौनी झड़ गई ही । ४. हाथी का एक रोग जिसमें उसकी विशेष-इस शब्द के प्रचार के संबंध में एक मनोरंजक बात दुम सड़कर गिर जाती है । ५. एक प्रकार का रोग जो अख सुनने में आई है। कहते हैं, हिंदुस्थान में पलटन के प्रशिक्षित को बहुत हानि पहुँचाता है । ६. लाल रंग की भूमि । गोरे पाखाने को 'वम प्लेस' अर्थात् धड़ाका करने का स्थान बयंडा-संज्ञा पुं० [हिं० गयद < सं० गजेन्द्र या सं० वनेन्द्र अथवा कहा करते थे। इसी 'बम प्लेस' से विगड़कर 'चमपुलिस' देश.] हाथी । (डि०)। बन गया। बयंडा-वि० [सं० वात + कापड अथवा विहिण्डन ] भवारा। बमलाना -क्रि० सं० [हिं० चमकाना ] बढ़ावा देना। प्रोत्साहित बय-संशा सी० [सं० वय ] दे० 'वय' । .-वय पु बरन रूप करना। सोइ माली |--मानस, २।२२१ । बमालन-संज्ञा स्त्री० [देश] एक प्रकार की कँटीली लता । बयकुंठ --संज्ञा पुं० [सं० वैकुण्ठ ] दे० 'वैकुंठ' । उ०-छाँध्यो मकोह। बयकुंठ धाम कियो प्रा बिसराम । --प्रज.प्र. पु. १४२। विशेष-यह उत्तर भारत में पंजाब से आसाम तक और दक्षिण बयन+-सज्ञा पुं० [सं० वचन, प्रा० वयण ] वाणी । बोली। में लंका तक पाई जाती है। यह गरमी में फूलती और बरसात बात । उ०-रूखे रुख मुख प्रिय धयन नयन चुराई दीठि। के दिनों में फलती है । इसके फल खाए जाते हैं । दीठि तियहि पिय पीठि दी ईठि भई सुबसीठि।-स० सप्तक, बमीठा-संज्ञा पुं० [हिं० बाँधी + ईठा (प्रत्य॰)] बाबी । वल्मीक । पृ० १४२ । २. बदन । मुख । बमुकाबला-क्रि० वि० [ फ़ा० बमुकाबलह ] १. मुकाबले में। वयना -क्रि० स० [सं० बयन, प्रा० वयन ] घोना। बीज समक्ष । सामने । २. मुकाबले पर । विरुद्ध । विरोध में । जमाना या लगाना। उ०—(क) सूर सुरपति सुन्यो गयो बमूजब-क्रि० वि० [फा० बमूज़िब ] दे० 'बमूजिब' । उ० जैसो लुन्यौ प्रभु कह गुन्यो गिरि सहित वैहै । —सूर (शब्द०)। हमारी मर्जी बमूजब तो इनका सत्कार यहाँ कहाँ बन (ख) सीचे सीय सरोज कर बप विटप बर बेलि । समह पड़ेगा।-श्रीनिवास ग्रं॰, पृ० १६ । सुकालु किसान हित सगुन सुमंगल केलि । —तुलसी (शब्द॰) । वमूजिव-क्रि० वि० [फ़ा० बमुजिब ] अनुसार । मुनाविक । जैसे, बयना -क्रि० स० [स० वचन, प्रा० वयण, हिं० बैन या स० वर्णन] हुकुम के बजिच । वर्णन करना । कहना । उ०-दल फल फूल दूब दषि रोवन वमेका-संञ्ज्ञा पुं॰ [सं० विवेक ] दे० 'विवेक' । उ०-रज्ज वपन जुवतिन भरि भरि थार लए। गावत चली भीर भइ बीपिन बमेक धन, लहिए पारंबार ।-रज्जब०, पृ० १०। वदिन बांकुरे विरद बए । —तुलसी (शब्द०)। चमेको-वि० [सं० विवेकी ] विवेकवाला। विवेकी । विवेकशील । बयना-संज्ञा पु० [सं० वायन ] दे० 'बैना'। 1