सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/२१४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

बादामी २४५३ बोधन से निर्मित एक बलकारक पोषधि । बादामफरोश = बादाम बादी-संशा ३० [ देश० ] लुहारों का सिकली करने का पोजार । बेचनेवाला । बादीगरी-पंज्ञा पुं० [फा० बाजीगर ] इंद्रजाल करनेवाला । बादामा-संज्ञा पु० [फा० बादामह ] एक प्रकार का रेशमी वाजीगर । उ०-चापडै मचै रिण निसाचर वनचरी । वीर कपड़ा। कोतिक रचे जाण वादीगरी।-रघु० रू०, पृ० १८३ । बादामी-वि० [फा० बादाम + ई (प्रत्य॰)] १. बादाम के छिलके बादुर-संज्ञा पुं० [ देश० ] चमगादड़ । चमचटक । उ०-लटकि के रंग का । कुछ पीलापन लिए लाल रंग का। २. बादाम बादुर हुमा पटकि जम मारिया चरन भौ चारिया चरख के प्राकार का। मंडाकार । जैसे, वादामी प्राख । ३. वादाम नाधा ।-संत० दरिया, पृ० ८४ । के योग से निर्मित । जैसे, बादामी वर्फी । बादामी-संज्ञा पुं० १. एक प्रकार का घान । २. बादाम के प्राकार बादूना--संज्ञा पुं॰ [देश॰] एक प्रौजार जो घेवर नाम की मिठाई बनाने के काम मे पाता है। की एक प्रकार की छोटी डिबिया जिसमें गहने आदि रखते हैं । ३. वह ख्वाजासरा जिसकी इंद्रिय बहुत छोटी हो। विशेप-यह सांचा चढ़ाने के कालवून के समान लोहे या पीतल ४. एक प्रकार की छोटी चिड़िया जो पानी के किनारे होती है का बना होता है। इसे भट्ठी के मुंह पर रखकर उसमें घी और मछलियां खाती है । किलक्लिा । वि० दे० 'किलकिला'। भरते और पतला मैदा डाल देते हैं। मैदा पक जाने पर उसे ५. बादाम के रंग का घोड़ा। उ०-लीले लक्खी, लक्ख चीनी की चाशनी में पाग लेते हैं । बीज, वादामी चीनी ।-सूदन (शब्द०)। ६. बादाम के बाध-संशा पुं० [सं०] १. बाधा । रुकावट । अड़चन । २. पीड़ा । छिलके की तरह का रंग । कष्ट । ३. कठिनता । मुश्किल । ४. अर्थ को असंगति । मानी यौ०-बादामी आंख = बादाम की तरह छोटो प्रांख । का ठीक न बैठना। व्याघात । जैसे,—जहाँ वाच्यार्थ लेने से पादि-प्रव्य० [सं० वादि, हिं० वादी ( हठ करके)] व्यर्थ । अर्थ में बाधा पड़ती है वहाँ लक्षणा से प्रर्थ निकाला जाता निष्प्रयोजन । फिजूल । निष्फल । उ०-सो श्रम बादि बाल है। ५. न्याय में वह पक्ष जिसमें साध्य का प्रभाव सा हो। कवि करहीं।-तुलसी (शब्द॰) । २. बिना । छोड़कर । ६. विरोध । खिलाफत (को०) । ७. खडन (को॰) । उ०-बादि हरि नाम कोऊ काज नाहिं अंत के-केशव० बाधा-संज्ञा पुं० [सं० बद्ध] [ स्त्री० बाधी ] मूज की रस्सी । प्रमी०, पृ० १२ । बाधक'-वि० [मं०] १. प्रतिबंधक । रुकावट डालनेवाला । रोकने- बादित-वि० [सं० वादित ] वजाया हुआ। वाला। विघ्नकर्ता । उ०-तो हम उनके बाधक क्यों हों। बादित्य-संज्ञा पुं० [सं० वादिन] वाद्य । बाजा । उ०-हज्जार -भारतेंदु ग्र०, भा० १, पृ० २६८ । २. दुःखदायी। बीस बादित्य साथ, सब जुरे प्राय रणधीर हाथ | ह. हानिकारक । हिसक । मार डालनेवाला। उ०-वाधक बधिक रासो, पृ० ८१। बिलोकि पराही । -मानस । धादिया-संज्ञा पुं० [ देश० ] लुहारों का पेंच बनाने का एक औजार । बाधक-संज्ञा पुं० स्त्रियों का एक रोग जिसमे उन्हे संतति नहीं होती बादिसाह-संज्ञा पु० [फा० बादशाह] वादशाह । राजा। उ०-नो या संतति होने में बड़ी पीड़ा या कठिनता होती है। नो लाष फोजो बादिसाहाँ के बताया ।-शिखर ०, पृ० १८ । बादी-वि० [फा०] १. वात संबंधी । वायु संबंधी । २. वायुविकार विशेप-वैद्यक के अनुसार चार प्रकार के दोषों से बाधक रोग संबंधी । जैसे बादी बवासीर । ३. वायु कुपित करनेवाला, होता है-रक्तमाद्री, यष्ठी, अंकुर और जलकुमार । रक्तमाद्री वात का विकार उत्पन्न करनेवाला । जैसे,-बैगन बहुत मे कटि, नाभि, पेडू आदि में वेदना होती है और केतु ठीक बादी होता है। समय पर नहीं होता। यष्ठी बाधक में ऋतुकाल में आँखों, बादी-संज्ञा स्त्री० शरीरस्थ वायु । बात । वातविकार । वायु का हथेलियों और योनि में जलन होती है, और रक्तस्राव लाल दोष । जैसे,—उनका शरीर बादी से फूला है। युक्त (झाग मिला) होता है तथा ऋतु महीने में दो बार होता है। अंकुर बाधक में ऋतुकाल में उद्वेग रहता है, घादी-संज्ञा स्त्री० [फा० वादी ] घाटी। वादी। उ०—इस शरीर भारी रहता है। रक्तस्त्राव बहुत होता है। नाभि घादिये खुशनुमा के पंदर लहराता है धान का समंदर ।- के नीचे शूल होता है तीन तीन चार चार महीने पर प्रेमघन०, भा॰ २, पृ० ४५५ । ऋतु होता है, हाथ पैर में जलन रहती है। जलकुमार में बादी -संज्ञा पुं० [फा०' बाज़ी ] वाजीगर । सांप पकड़नेवाला । शरीर सूज जाता है, बहुत दिनों में ऋतु हुआ करता है, उ०-औरंग भगे अथाह बाई बध बादी बणे ।-तट०, सो भी बहुत थोड़ा; गर्भ न रहने पर भी गर्भ सा मालूम पृ० १७२। होता है। इन चारो बाधकों से प्रायः गर्भ नहीं रहता। बादी"-संज्ञा पुं० [सं० वादिन्, वादी ] १. किसी के विरुद्ध अभियोग लानेवाला । मुद्दई । २. प्रतिद्वंद्वी। शत्रु । वैरी। बाधकता-संज्ञा स्त्री० [सं०] वाधा । विशेप-दे० 'वादी'। ३. राग में प्रधान रूप से लगनेवाला बाधन-संज्ञा पुं० [सं०] [ वि० बाधित, वाघनीय, वाध्य ] १. स्वर जिसके कारण राग शुद्ध होता है। रुकावट या विघ्न डालना । २. पीड़ा पहुंचाना । कष्ठ देवा। 1