पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/२१५

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पाधना ३४५४ धोनईत' वाधना@-क्रि० स० [स० वाधन ] वाधा डालना। रुकावट वाधील+२-संज्ञा स्त्री० [सं० व्याधि ] दे० 'व्याधि', 'विप्राधि'। डालना। रोकना । उ०-(क) सुमिरत हरिहि सापगति उ०-बोले झूठ महा अपराधी। धर्म छुटै उठि लागै वाषी। बाधी । सहज विमल गन लागि समाधी।-तुलसी (शब्द॰) । -भक्ति प०, पृ० २१५। (ख) देखत ही प्राधे पल बाधी जात वाधा सब राधाजू की बाध्य-वि० [स०] १. जो रोका या दवाया जानेवाला हो । २. रसना नुरूप को सी रानी है।-केशव (शब्द०) २. विघ्न विवश किया जानेवाला। मजबूर होनेवाला । ३. रद्द या करना । बाधा डालना। उ०—(क) काम सुभासुभ तुमहिं न नष्ट करने लायक किो०] । वाधा । अव लगि तुमहिं न काहू साधा।-तुलसी (शब्द०)। बान'-सज्ञा पुं० [ देश० ] १. शालि या जड़हन को रोपने के समय (ख) दुख सुख ये बाध जेहि नाही तेहि तुम जानो ज्ञानी । उतनी पेड़ियाँ जो एक साथ लेकर एक थान में रोपी जाती नानक मुकुत ताहि तुम मानौ यहि विधि को जो प्राणी ।- हैं । जड़हन के खेत मे रोपी हुई धान की जूरी। -नानक (शब्द०)। क्रि० प्र०-बठाना ।-रोपना । वाधना२-क्रि० अ० [सं० वर्द्धन, प्रा० वद्धण ] अभिवृद्ध होना । २. एक बहुत ऊँचा और मजबूत लकड़ीवाला पहाड़ी वृक्ष । बढ़ना । उ०-(क) बलि नंद अति प्रानद बाध्यौ चढ़ि हिंडोरे गावई। -नंद० ग्र०, पृ० ३७५ । (ख) मित मित वाधे रिघ विशेष-यह वृक्ष अफगानिस्तान में तथा हिमालय में आसाम मिले जय मित दास सुजाण ।-रघु० ६०, पृ०६। तक सात हजार से नौ हजार फुट की ऊंचाई तक होता है । वाधयिता-संज्ञा पु०, वि० [सं० वाधयितृ ] बाधा देनेवाला । इसके पेड़ बहुत ऊँचे होते हैं और यद्यपि इसका पतझड़ नहीं वाधक [को०] । होता तो भी वसंत ऋतु में इसकी पत्तियां रंग बदलती हैं । बाधा-सज्ञा स्त्री० [स०] १. विघ्न । रुकावट । रोक । अड़चन । इसकी लकडो ललाई लिए सफेद रंग की होती है और बहुत उ०-द्विज भोजन मख होम सराधा सव के जाइ करह मजबूत होती है। इसका वजन प्रति घनफुट तीस सेर तक तुम वाधा । -तुलसी (शब्द॰) । होता है और यह घर और खेती के सामान बनाने में काम क्रि० प्र०-श्राना|--करना।होना । प्राती है। इसकी छड़ियां भी बनती हैं। पतिया और छाल चमड़े सिझाने के काम आती है। मुहा०-बाधा करना, डालना या देना= रुकावट खड़ी करना । विघ्न उपस्थित करना । बाधा पड़ना = रुकावट खड़ी होना। बान-सज्ञा पुं० [स० बाण ] १. बाण। तीर । २. एक प्रकार विघ्न उपस्थित होना । बाधा पहुँचना = दे० 'बाधा पड़ना' । की मातशबाजी जो तीर के प्राकार की होती है। इसमें २. संकट । कप्ट । दुःख । पीड़ा । उ०—(क) छुधा व्याधि बाधा प्राग लगते ही यह प्राकाश को प्रोर बड़े वेग से छूट जाती भइ भारी । वेदन नहिं जानै महतारी ।-तुलसी (शब्द०)। है। ३. समुद्र या नदी की ऊंची लहर | ४. वह गुबदाकार (ख) मेरी भव वाधा हरी राधा नागरि सोइ । जा तन की छोटा हंढा जिससे धुनकी ( कमान ) की तात को झटका झाई परे स्याम हरित दुति होइ । -बिहारी (शब्द॰) । ३. देकर रुई धुनते हैं। ५. मुज की बटी हुई रस्सी । बाध । ६. भय । डर । पाशंका। उ०—(क) मारेसि निसिचर केहि बाना नाम का हथियार जो फेंककर मारा जाता है। उ०- पपराघा। कहु सठ तोहि न प्रान के बाघा ।-तुलसी गोली बान सुमंत्र सर समुझि उलटि मन देखु । उत्तम मध्यम (शब्द॰) । (ख) प्राजु ही प्रात इक चरित देख्यो नयो तबहि नीच प्रभु बचन विचारि विसेखु । -तुलसी (शब्द०)। ७. स्वर्ग।-अनेकार्थ०, पृ० १४५ । ते मोहिं यह भई बाधा -सूर (शब्द०)। वाधाहर-वि० [स०] बाधाप्रो को दूर करनेवाला । उ०-भर उद्दाम बान-सज्ञा पुं० [ देश० ] गोला। उ०-तिलक पलीता माथे दमन वेग से वाधाहर तू कर्कण प्राण, दूर कर दे दुर्बल विश्वास । बन के बान । जेहि हेरहिं तेहि मारहिं चुरकुस करहिं -अनामिका, पृ० ६८। निदान । -जायसी (शब्द॰) । बाधित'-वि० [सं०] १. जो रोका गया हो । वाघायुक्त । २. जिसके बान-संज्ञा स्त्री० [हिं० घनना ] १. बनावट । ढंग । माकार । साधन में रुकावट पड़ी हो। ३. जिसके सिद्ध होने या उ०-सकट को वान बनायो ऐसो । सुदर पर्धचंद्र होइ प्रमाणित होने मे रुकावट हो। जो तर्क से ठीक न हो । जैसो।-नंद० प्र०, पृ० २५७ । २. सजधज । वेश विन्यास । असंगत । ४. ग्रस्त । गृहीत । प्रभावहीन । जैसे,—व्याकरण । उ०-सव मंग छीट लागो नीको बन्यो बान ।-नंद० ., में वह सूत्र जो किसी अपवाद या वाषक सूत्र के कारण पृ० ३६४ । ३. टेव । प्रादत । अभ्यास । उ०-भक्त बछल है किसी स्थलविशेष मे न लगता हो। वान तिहारो गुन पौगुन न विचारो।-गुलाल०, पृ० ४५ । बाधित-वि० [सं० वद्धित, हि० वाधना (= पढ़ना)] (किसी के क्रि० प्र०-डालना।-पढ़ना ।—लगना। प्रति ) प्रामारी या अनुगृहीत । बान-सञ्ज्ञा पुं० [सं० वर्ण ] रंग । आब । कांति । उ०-कनकहि वाधिता-संञ्चा पु० वि० [सं० वाधित] दे॰ 'वयिता' [को०] । बान चढ़े जिमि दाहे। तिमि प्रियतम पद नेम निबाहे। वाधिर्य-संज्ञा पुं० [स०] बहिरापन । —तुलसी (शब्द०)। पांधी'-वि० [सं० याधिन् ] १. वाधा फरनेवाला । वाधक । २. बानइता'-वि० [हिं० बाना+इत (प्रत्य॰)] वाना चलाने या कष्ठ या पीढ़ा देवेवाला को। बेलवेवाला । दे० 'वानेत।