पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/२३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

फजीहति ३२६२ फटकना अब कैसे कीज । जल खारी है गयो ताहि कहो कैसे पीजै । कह गिरधर कविराय कच्छ प्रो मच्छ सकुचाई । बड़ी फजीहत होय तवी नदियन की साई ।-गिरघर (शब्द॰) । फजीहति-सज्ञा स्त्री० [अ० फजीहत] फजीहत । दुर्दशा । उ०- जब डायन की सुधि चीन्ही । तब पकरि फजीहति कीन्ही । -सुदर० प्र०, भा०१, पृ० १३६ । फजीहती-संज्ञा स्त्री० [हिं० फजीहत ] दे० 'फजीहत' । फजूल-वि० [अ० फुजूल ] जो किसी काम का न हो। व्यर्थ । निरर्थक । जैसे,—(क) वहां आने जाने मे फजूल १०) खर्च हो गए । (ख) तुम तो दिन भर फजूल बातें किया करते हो। फजूलखर्च-वि० [ फ़ा० मुजूलखर्च ] अपव्ययी। बहुत खर्च करने- वाला। फजूलखर्ची-सशा स्त्री॰ [फा० फजूलखर्ची ] व्यर्थ व्यय करना । अपव्यय। फज्जर-संज्ञा स्त्री० [अ० फजर ] दे॰ 'फजर'। उ०-फाजल सेख खुलती फज्जर । असुर धसे लागी अति प्रातुर ।-रा० रू०, पृ०२५७ । फज्ल-सज्ञा पु० [अ० फज्ल ] दे० 'फजल'। फमियतg+-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [अ० फजीहत ] दे० 'फजीहत' । उ०- फबत फाग फझियत बड़ी चलन चहत जदुराइ ।-पद्माकर ग्रं॰, पृ० १३६ । फट-सज्ञा स्री० [अनु०] १. एक अनुकरण शब्द । २. एक तांत्रिक मंत्र जिसे अस्त्रमंत्र भी कहते हैं और जिसका प्रयोग पात्रादि प्रक्षालन, मघमर्षण, प्रक्षेपन, प्रतरिक्ष विघ्नोत्सादन, फरांगन्यास, अग्न्यावाहन आदि में होता है। फट'-सञ्ज्ञा स्त्री० [अनु० ] किसी फैले तल की हलकी पतली चीज के हिलने या गिरने पड़ने का शब्द । जैसे, कुत्ते का कान फट फट करना, सूप फट फट करना। यौ०-फट फट मुहा०-फट से = तुरंत । झट । फटा-संज्ञा स्त्री० [सं० पट ] १. चटाई या टाट का टुकड़ा जो गाड़ी के नीचे रखा जाता है। फट्ट (बुदेलखंड)। २. दुतकार । फटकार। फटका-संज्ञा पु० [ स० स्फटिक, पा० फटिक ] बिल्लोर पत्थर । स्फटिक । उ०—(क) सेत फटक जस लागै गढ़ा। बांध उठाय चहूँ गढ़ मढ़ा । —जायसी (शब्द०)। (ख) सेत फटक मनि हीरै बीधा। इहि परमारथ श्री गोरष सीधा।- गोरख०, पृ० १७०। फटक-क्रि० वि० तत्क्षण । झट। उ०-कह गिरिधर कविराय सुनो हो मेरे नोखे । गयो फटक ही टूटि चोंच दाहिम के पोखे । -गिरधर राय (शब्द०)। फटका-सा ० [हिं० फटकना ] खटकने या पछोरने की वस्तु । सूप । छाज । उ०-मूग मसूर उरद चनदारी। कनक फटक परि फटकि पछारी।-सूर०, १०॥३६६ । फटकन-संज्ञा स्त्री० [हिं० फटकना ] वह भसी या दूसरे निरर्थक पदार्थ जो किसी अन्न प्रादि को फटकने पर निकलकर बाहर या अलग गिरते हैं । वह जो फटकाकर निकाला जाय । फटकना-क्रि० स० [ अनु० फट, फरक ] १. हिलाकर फट फट शब्द करना । फटफटाना । उ०.-देसे नंद चले घर पावत । .."फटकत नवन स्थान द्वारे पर गररी करति लराई। माथे पर ह काग उड़ान्यो कुसगुन बहुतक पाई । -सूर०, १०१५४१ । २. पटकना । झटकना । फेंकना । १०-पान ले चल्यो नृप पान कीन्हो । 'नकु फटक्यो लात सवद, भयो प्राघात, गिरयो भहरात सपाटा संहारयो । सूर प्रभु नंदलाल मारघो दनुज ख्याल, मेटि जंजाल ब्रज जन उवारयो।-सूर०, १०।६२ । ३. फेंकना । चलाना । मारना । उ०-(क) असुर गजरूढ़ ह्रगदा मारे फटकि श्याम पंग लागि सो गिरे ऐसे । वाल के हाथ ते कमल अमल नालयुत लागि गजराज तन गिरत जैसे । -सूर (शब्द०)। (स) राम हल मारि सो वृक्ष चुरकुट कियो द्विविद शिर फटि गयो लगत ताके । बहुरि तरु तोरि पापाण फटकन लग्यो हल मुसल करन परहार बाँके । —सूर (शब्द०)। ४. सूप पर अन्न मादि को हिलाकर साफ फरना। अन्न प्रादि का कूड़ा कर्कट निकालना। उ०—(क) सत संगति है सूप ज्यों त्यागे फटकि प्रसार । कहै कबीर हरि नाम ले परसै नाहिं विकार। -कवीर (शब्द॰) । (ख) पहले फटकै छाज के थोथा सब उदि जाय। उत्तम भाद पाइये फटकंता ठहराय । -कवीर (पन्द०)। (ग) पोथी कथनी काम न पावे। थोथा फटके उडि उड़ि जावै। --चरण. बानी, पृ० २१५॥ मुहा०-फटकना पछारना = दे० 'फटफना पछोरना' । उ.-मुंग मसूर उरद चनदारी । कनक फटक परि फटकि पछारी।- सूर०, १०.३६६ । फटकना पछोरना = (१) सूप या छाज पर हिलाकर साफ करना । उ०-कन थोरे कांकर घने देखा फटक पछोर ।-मलूक० बानी, पृ० ४० । (२) अच्छी तरह जांच पड़ताल करना । ठोंकना बजाना | जांचना । परखना। उ०—(क) देश देश हम बागिया ग्राम ग्राम की खोरि । ऐसा जियरा ना मिला जो लेइ फटफि पछोरि ।-कबीर (शब्द०)। तुम मधुकर निर्गुन निजु नीके, देखे फटकि पछोरे । सूरदास कारेन की संगति को जावै मब गोरे। सूर०,१०१४३८१ । ५. रूई आदि को फटके से धुनना । फटकनारे-क्रि०अ० [अनु०] १. जाना । पहुँचना । उ०—कृष्ण हैं, उद्धव हैं, पर प्रजवासी उनके निकट फटकने नहीं पाते ।- प्रेमसागर (शब्द०)। २. दूर होना । अलग होना। उ०- (क) एकहिं परनि परे खग ज्यो हरि रूप माझ लटके । मिले जाइ हरदी चूना ज्यों फिर न सूर फटके।-सूर०, १० २३८६ । (ख) ललित त्रिभंगी छवि पर अटके फटके मो सों तोरि । सूर दसा यह मेरी कीन्ही आपुनि हरि सौं जोरि । -सूर०, १०१२२४७ । ३. तड़फड़ाना। हाप' पैर पटकना। ४. श्रम करना । हाथ पैर हिलाना।