पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/२३२

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प्रयोग। 1 बालिका बाला महा-बोल बाला रहना = संमान और आदर का सदा बढ़ा वालादस्ती-संशा स्त्री० [फा०] १. अनुचित रूप से हस्तगत करना । रहना । बाला बाला (१) ऊपर ही उपर। उनसे अलग नामुनासिव तौर से वसूल करना । २. जबरदस्ती। बल- जिनके द्वारा कोई काम होना चाहिए या कोई वस्तु भेजी जानी चाहिए । जैसे,—तुमने वाला वाला दरखास्त भेज दी। बालादित्य-संज्ञा पु० [ सं० ] प्रभातकालीन सूर्य । (२) बाहर बाहर । वहाँ से होते हुए नही जहाँ से होते हुए बालापना-संशा पुं० [सं० बाल+हिं० पन ] ललकपन । बचपन । जाना चाहिए था। जैसे-तुम बाला वाला चले गए, मेरे यहाँ वालाबर-संज्ञा पुं० [सं०] एक प्रकार का अंगरखा जिसमे चार उतरे नही । (३) इस प्रकार जिसमे किसी को मालूम न हो। कलियां और छह बंद होते है। दे० 'अंगरखा। यौ०-बालाए ताक = अलग । दूर । उपेक्षित । उ०-साहित्यिक बालामय-संञ्चा पुं० [स०] वच्चों का एक रोग [को०] । युद्ध की नीति को बालाए ताफ रख मेरी मशहूर पुस्तक 'चाकलेट' पर महात्मा गांधी की राय २५ वर्षों तक छिपा बालारुण-वि० [सं०] प्रात.कालीन ललाई के समान । उ.- सोहता स्वस्थ मुख वालारुण ।-अपरा, पृ० १४८ । न रखी होती तो मेरी एक भी पुस्तक किसी दूसरे प्रकाशक के हाथ न लगी होती।-खुदाराम (प्रया०) । बालानशीन = वालारोग-संज्ञा पुं० [हिं० घाल (= लोम)+रोग] नहरुमा, नाहरू (१) सबसे उत्तम । सर्वश्रेष्ठ । बढ़िया। (१). ऊँचा या नहारू रोग। स्थान ) । बालावंद = (१) एक प्रकार का अंगरखा। बालाक --सज्ञा पुं० [सं०] १. प्रातःकालीन सूर्य । २. कन्या राशि (२) सिरपंच । फलंगी। ( ३ ) एक प्रकार की रजाई मे स्थित सूर्य। या लिहाफ। बालि-संज्ञा पुं० [स०] पंपा किष्किंधा का वानर राजा जो अंगद बाला-संज्ञा पुं० [हिं० बाल ] जो वालको के समान अज्ञान हो। का पिता और सुग्रीव का बड़ा भाई था । बहुत ही सीधा सादा । सरल | निश्छल । विशेष-वहते हैं, एक बार मेरु पर्वत पर तपस्या करते समय यौ०-याला जोयन = उठती जवानी । वह जवानी जो अभी ब्रह्मा की आँखों से गिरे हुए प्रासुओं से एक वंदर उत्पन्न किशोर या अज्ञ हो । बाला भोला, बाली भोली = बहुत ही हुप्रा जिसका नाम ऋक्षराज था। एक बार ऋक्षराज पानी में अपनी छाया देखकर कूद पड़ा। पानी में गिरते ही उसने एक सीधा सादा । उ-तन बेस भार केस भी चोली। चित अचेत जनु बाली भोली!-जायसी (शब्द॰) । सुंदर स्त्री का रूप धारण कर लिया। एक बार उस स्त्री को देखकर इंद्र और सूर्य मोहित हो गए। इंद्र ने अपना वाला -संज्ञा पुं० [हिं० बाल ] १. कान का एक गहना । बाली। वीर्य उसके मस्तक पर और सूर्य ने अपना वीर्य उसके उ०-बाला के जुग कान मैं वाला सोभा देत ।-भारतेंदु गले में डाल दिया। इस प्रकार उस स्त्री को इंद्र के वीर्य से पं०, भा० १, पृ० ३८८ । २. जो धौर गेहूँ की बाल में लगने- बालि और सूर्य के वीर्य से सुग्रीव नामक दो बंदर उत्पन्न हुए। वाला एक कीड़ा। इसके कुछ दिनों पीछे उस स्त्री ने फिर अपना पूर्व रूप धारण बालाई-सज्ञा स्त्री॰ [फा० ] दे॰ 'मलाई'। कर लिग । ब्रह्मा की प्राज्ञा से उसके पुत्र किष्किंधा बालाई-वि० १. ऊपरी । ऊपर का । २. वेतन या नियत प्राय के में राज्य करने लगे। एक बार रावण ने किष्किंधा पर अतिरिक्त । निश्चित प्राय के अलावा । जैसे, वालाई आमदनी। आक्रमण किया था। उस समय बालि दक्षिण सागर में बाला कुप्पी-संशा सी० [फा० वाला( = ऊँचा) + कुप्पी] प्राचीन संध्या कर रहा था। रावण को देखते ही उसने बगल में काल का एक प्रकार का दह जो अपराधियो को शारीरिक दवा लिया। अंत में उसके हार मानने पर बालि ने उसे कष्ट पहुंचाने के लिये दिया जाता था। छोड दिया। एक बार वालि मय नामक दैत्य के पुत्र मायावी विशेष- इसमे अपराधी को एक छोटी पीढी पर, जो एक ऊँचे का पीछा करने के लिये पाताल गया था। उसके पीछे सुग्रीव खभे से लटकती होती थी, बैठा देते थे; फिर उस पीढ़ी को ने उसका राज ले लिया, पर वालि ने आते ही उसे मार रस्सी के सहारे ऊपर खीचकर एकदम से नीचे गिरा देते भगाया और वह अपनी स्त्री तारा तथा सुग्रीव की स्त्री रूमा थे। इसमे प्रादमी के प्राण तो नहीं जाते थे, पर उसे बहुत को लेकर सुख से रहने लगा। सुग्रीव ने भागकर मतंग ऋपि के आश्रम मे आश्रय लिया। जिस समय रामचद्र सीता को अधिक शारीरिक कष्ट होता था। ढूंढते हुए किष्किधा पहुंचे, उस समय मतंग के आश्रम में बालाखाना- संज्ञा पु० [फा०] कोठे के ऊपर की वैठक । मकान सुग्रीव से उनकी भेंट हुई थी। उसी समय सुग्रीव के कहने से के ऊपर का कमरा। उन्होने वालि का वध किया था, सुग्रीव को राज्य दिलाया था चालान-संज्ञा पुं० [सं०] मकान के बाहर दीवार में बने मोखे और वालि के लडके अंगद को वहाँ का युवराज बनाया जिसमें पंड्डक क्बूतर आदि रहते हैं । था । रावण के साय युद्ध करने में सुग्रीव और अंगद ने बालातप-सज्ञा पुं० [सं०] प्रातःकालीन धूप [को॰] । रामचंद्र की बहुत सहायता की थी। बालादस्त-वि० [फा० पद में श्रेष्ठ । बड़ा [को०] । बालिका संज्ञा स्त्री० [सं०] १. छोटी लड़की । कन्या । २. पुत्री।