पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/३००

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सुधर रहा है। बुबुद् । बुलेली धू वुलेटिन निकला जिसमें लिखा था कि महाराज का स्वास्थ्य बूंच, दूंछ-संज्ञा स्त्री० [हिं० गूंछ ] एक प्रकार की मछली । दे० 'गूछ'। वुलेली-सञ्ज्ञा पु० [ तामिल ] मझोले आकार का एक पेड़ जो मैसूर बूंद-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [ स० विन्दु ] १. जल या और किसी तरल पदार्थ और पूर्वी घाट मे अधिकता से होता है। का वह बहुत ही छोटा अंश जो गिरने आदि ने समय प्रायः विशेष-इसकी लकड़ी सफेद और चिकनी होती है और छोटी सी गोली या दाने श्रादि का रूप धारण कर लेता है। तस्वीरों के चौखटे, मेज, कुसियां आदि बनाने के काम में कतरा । टोप । जैसे, पानी की बूंद, प्रोस की वूद, खुन की माती है। इसके बीजो से एक प्रकार का तेल निकलता है बूंद, पसीने की वूद। जो मशीनो आदि के पुरजों में डाला जाता है । मुहा०-बूद गिरना या पढ़ना = धीमी वर्षा होना । थोड़ा थोड़ा पानी बुलौआ, बुलौवा-सशा पुं० [हिं० बुलाना ] दे॰ 'बुलावा' । बरसना । बूंद भर=बहुत थोड़ा। यौ०-बूंदाबांदी। बुल्लन-सा पु० [देश॰] १. मुह । चेहरा। (दलाली)। २. २. वीर्य । ३. एक प्रकार का रंगीन देशी कपड़ा। गिरई की तरह को पर भूरे रंग की एक मछली जिसके मूळे नहीं होती। विशेष-इसमे बूदों के प्रकार की छोटी छोटी बूटियां बनी होती है और यह स्त्रियों के लहँगे आदि बनाने के काम में बुल्लन-सञ्ज्ञा पु० [अनु० या हिं० बुलबुला ] पानी का बुलबुला । आता है। बुल्लना-क्रि० स० [ प्रा० घोल्ल, वुल्ल+हिं० ना (प्रत्य॰)] बूंद-वि० बहुत अच्छा या तेज । विशेष-इस प्रर्थ मे इसका व्यवहार केवल तलवार, कटार, दे० 'घोलना'। उ०—(क) बपि कदम सुबन्न चढ़ि लज्जित आदि काटनेवाले हथियारों और शराब के सबंध मे होता है । वह बर चाल । हथ्थ जोरि सम.सो भई प्रभु बुल्ले बछपाल । -पृ० रा०, २१३७८ । (ख) चढ़ि कदम बुल्ले सु प्रभु बूंदा [-सञ्ज्ञा पुं० [हिं०] १. बड़ी टिकुली । २. सुराहीदार मणि या मधुरित मिष्टत वानि ।-पृ० रा०, २१३७६ । मोती जो कान वा नथ मे पहना जाता है। बुल्ला-श पु० [हिं० बुलबुला ] बुदबुदा । उ०-पानी मह जस बूंदाबांदो-स 1-सज्ञा स्त्री० [ हिंबूंद + अनु० बाद ] अल्प वृष्टि । वुल्ला तस यह जग उतराइ । एकहि पावत देखिए एक है हलकी या थोड़ो वर्षा । जात विलाइ ।-जायसी (शब्द॰) । बूंदी-संज्ञा स्त्री॰ [हिं० बद+ई (प्रत्य॰)] एक प्रकार की मिठाई बुष, बुस-संज्ञा पुं० [सं० बुष, वुस ] १. अनाज आदि के ऊपर जो अच्छी तरह फैठे हुए वेसन को झरने में से वू'द वूद का छिलका । भूसी। २. हटा देने योग्य वस्तु (को॰) । टपकाकर और घी मे छानकर बनाई जाती है । बुंदिया । ३. जल (को०)। ४. संपत्ति (को०)। ५. सूखा कहा। सूखा विशेप-यह मीठी और नमकीन दो प्रकार की होती है। गोवर (को०)। नमकीन बूदी बनाने के लिये पहले ही बेसन को घोलते समय बुसतानी-संज्ञा पु० [ फा बुस्तों ] उद्यान । वाटिका । उपवन । उसमे नमक, मिर्च प्रादि मिला देते हैं, पर मीठी बूंदी उ०—सो गुल खिला बुसतान में। बू फैल हिंदुस्तान मे । बनाने के लिये बेसन घोलते समय उसमे कुछ नहीं मिलाया -कबीर मं०, पृ० ३६० । जाता। उसे घो में छानकर शीरे में डुबा देते हैं और तब बुसा-संज्ञा स्त्री० [सं०] बड़ी बहन । (नाटय०) । फिर काम में लाते हैं। छोटे दानों की दूंदी का लड्डू भी बांधते हैं जो 'बूदी फा लड्डू' कहलाता है । ऐसे ही लड्डू पर चुस्त-मशा पुं० [सं०] १. भुने हुए मास का जला हुमा ऊपरी जव कंद या दाने का चूर लपेट देते हैं तब वह मोतीचूर का पर्त । २. फल का छिलका । फल का प्रावरण (को०)। लड्डू कहलाता है। बुहरी -संज्ञा स्त्री॰ [हिं० भौरना (= भूनना)] दे॰ 'बहुरी' । २. वर्षा के जल को वूद। बुहारना-क्रि० स० [सं० यहुकर+हि० ना (प्रत्य०) ] झाड़ से क्रि० प्र०-पढ़ना। जगह साफ करना। झाड़ देना । झाड़ना। उ०-द्वार बुहारत फिरत अष्ट सिधि । कौरेन सथिया चीतति नव बूंबा-सशा स्त्री० [ देश० या अनु० ] पुकार । चिल्लाहट । आवाज । निधि 1- सूर (शब्द०)। उ०-सूव सूव कहै सरव दिन, जाचक पाड़े वूव । सिद्ध दिगंवर बाजही, ज्यू धनवंतो सूब ।-बांकी० म०, भा० 'चुहारा'-सज्ञा पु० [हिं० बुहारना ] ताड़ की सीफों का बना हुमा २, पृ० ३५। घड़ा झाडू। बुहारा मंचा पु० [सं० व्यवहार ] दे० 'व्यवहार'। उ०—ऐसे ऐसे बू-संज्ञा स्त्री० [फा०] १. वास । गंध। महक । २. दुर्गंध । वदवू । ३. तौर तरीका । ढग (को०) । ४. मानवान । ठसक (को॰) । फरत वुहारा । पाए साहिब के हलकारा ।-रामानंद., ५. सुराग (को०)। क्रि० प्र०-बाना ।-निकलना। चुहारी-सशा स्त्री० [सं० बहुकरी, हिं० बुहारना+ई (प्रत्य॰)] झाड़। यौ०- बढ़नी । सोहनी। to-बूबासवू । गंध।