झ कोई न हो। जिसकी समता न सके। अद्वितीय। बेट्टा'- संज्ञा पुं॰ [ देशः ] एक प्रकार वा भैसा जो मैसूर देश में निरुपम । होता है। बेम'–वि० [स० विद्ध, प्रा० विज्झ ] १. विक्ष । बिंधा हुआ। बेटा-संश पुं० [हिं० वेटा ] दे० 'बेटा' । २. (लाक्ष०) स्तब्ध । उ०-गहि पिनाक जानहुँ सुर बेठ - सज्ञा पुं॰ [देश॰] एक प्रकार की असर जमीन जिसे बीहड़ गहा । जत कत जगत बेझ होइ रहा।-चित्रा०, पृ० २६ । भी कहते हैं। बेमर--संज्ञा पुं० बेध । लक्ष्य । बेठ-संज्ञा स्त्री० दे० 'बेंट' 'बैंठ' । वेझना-फ्रि० स० [स० वेध + हिं० ना (प्रत्य॰)] निशाना बेठन-संज्ञा पुं० [सं० वेठन ] वह कपड़ा जो किसी चीज को गर्द लगाना । वेधना। प्रादि से बचाने के लिये उसपर लपेट दिया जाय । वह वेझरा-मज्ञा पुं० [हिं० मेझरना ( = मिलाना)] गेहूँ, जौ, मटर, कपड़ा जो किसी चीज को लपेटने के काम में आवे । बंधना। चना, इत्यादि अनाजों मे से कोई दो या तीन मिले हुए अन्न । मुहा०- पोथी का वेठन = पुस्तकों से बराबर संबध रहने पर भी वेझा-संज्ञा पुं० [सं० वेध ] निशाना । लक्ष्य । उ०—(क) वदन जो अधिक पढ़ा लिखा न हो। 30- तू भला कबी झूठ के बेझे पै मदन कमनैती के चुटारी शर चोटन चटा से चमकत बोलबो, तू तो निरे पोथी के बेठन हो।-भारतदु म०, हैं ।-देव (शब्द०)। (ख) तिय कत कमनंती पढ़ी विन भा० १, पृ० ३३५ । जिह भौह फमान । चित चल वेझे चुकति नहिं वक विलोकनि वेठिकाने–वि० [फा० बे+टिकाना ] जो अपने उचित स्थान पर बान ।-बिहारी ( शब्द०)। (ग) मारे नैन वान ऐंचि ऐंचि न हो । स्थानच्युत । २. जिसका कोई सिर पैर न हो। ऊल- स्रवनांत जवे, ताते हते छिद्र से निकट थिर वेझा ज्यो । रावरी जलूल । ३. व्यर्थ । निरर्थक । बियोग आगि जाके खाय खाय दाग ह्व गयो करेजा मेरो बेड -संज्ञा पु० [सं०] १. नीचे का भाग । तल । २. विस्तर । चुनरी को रेजा ज्यों ।-नट०, पृ० ७७ ।। बिछौना । ३. छापेखाने मे लोहे का वह तख्ता जिसपर वेझी-संज्ञा पुं० [हिं० बेझ ] बेघ करनेवाला व्यक्ति । बहेलिया । कपोज और शुद्ध किए हुए टाइप, छापने से पहले, रखकर उ०-तकत तकावत रहि गया, सका न वेझी मारि। कसे जाते हैं। -कबीर० सा० सं०, पृ० ८३ । यौ० - वेद रुम- शयनकक्ष । वेट-संज्ञा पु० [पं०] वाजी। दाँव । शतं । वदान । जैसे,- वेड़ -संज्ञा पुं० [हिं० बाद ] वृक्ष के चारों ओर लगाई हुई बाड़ । कुछ वेट लगाते हो। मेड़ । उ-ये पन पीड़ी सी मीड़ी पिंडुरी उमड़ि मेड़ बेड़न क्रि० प्र०—लगाना। लगावे पेड़पाइन गुझकती ।—देव ( शब्द०)। वेटकी@+-संज्ञा स्त्री० [हिं० बेटा] वेटी। कन्या। पुत्री । लड़की। वेड:--संज्ञा पुं० [हिं० योद ] नगद रुपया। सिक्का । ( दलाल )। उ.-ऊँचे नीचे करम धरम अधरम करि पेट ही को पचत वेदना-क्रि० स० [हिं० बेड़+ना (प्रत्य॰)] नए वृक्षो प्रावि बेचत बेटा वेटकी।—तुलसी (शब्द॰) । के चारो पोर उनकी रक्षा के लिये छोटी दीवार आदि वेटला@t-संज्ञा पुं० [हिं० 'बेटा+ला (प्रत्य॰)] दे॰ 'बेटा' । . खड़ी करना। थाला बांधना। मेड़ या बाढ़ लगाना । उ०- उ.-ई गाव के वेटला मेरे प्रादि सहाई । इनकी हम लज्जा जिसने दाख की बारी लगाई और उसको चहुं ओर बेढ़ नहीं तुम राज बड़ाई । —सूर (शब्द०)। . दिया।-(शब्द०)। वेटवा -संज्ञा पु० [हिं० ] दे० 'बेटा' । बेड़ा'--संज्ञा पुं० [सं० वेष्ट ] १. बड़े बड़े लट्ठों, लकड़ियों या तख्तों वेटा-संज्ञा पुं० [सं० घटु (=ोलक ) ] : [ स्त्री० वेटी ] पुत्र । मादि को एफ में बांधकर बनाया हुआ ढांचा जिसपर सुत । लड़का। बांस का टट्टर बिछा देते हैं और जिसपर बैठकर नदी आदि पार करते हैं। यह घड़ों की बनी हुई घन्नई से बड़ा होता मुहा०-बेटा बनाना= किसी बालक को दत्तक लेकर अपना पुत्र है। तिरना। बनाना । (किसी को) बेटी देना= कन्या का विवाह करना । ( किसी की ) बेटी लेना=किसी फी कन्या से मुहा०-बेड़ा पार करना या लगाना=किसी को संकट से पार लगाना या छुड़ाना। विपत्ति के समय सहायता करके किसी विवाह करना । - बेटे वाला= वर का पिता अथवा वर पक्ष का और कोई बड़ा आदमी। बेटी वाला = वधू का पिता का काम पूरा कर देना । जैसे,—इस समय तो ईश्वर ही बेड़ा पार करेगा। बेड़ा पार होना या लगना=विपत्ति या अथवा वधू पक्ष का और कोई बड़ा प्रादमी। संकट से उद्वार होना । कष्ट से छुटकारा होना । बेड़ा यौ०-बेटा बेटी = संतान । औलाद'। वेटे । पोते = संतान और दूबना=विपत्ति मे पड़कर नाश होना। संतान की संतान । पुत्र, पौत्र, प्रादि । २. बहुत सी नावों या 'जहाजो आदि का समूह । जैसे,- वेटिकट-वि० [हिं० ] विना टिकट का। भारतीय महासागर में सदा एक अंगरेजी वेड़ा रहता है । वेटौना-संज्ञा पुं० [हिं० ] दे० 'बेटा' । ३. नाव । नौका (डि०) । ४. मुड । समूह (पूरव ) । 1
पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/३१०
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