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पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/३११

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बेड़ा बेतकल्लुफा मुहा०—बेड़ा बाँधना = बहुत से प्रादमियों को इक्ट्ठा करना । दौरि बेंढ़ सिरीज को कीन्हों । कुंदा के गिरि डेरा दीन्हो ।- लोगों को एकत्र करना। लाल (शब्द०)। २. बोया हुमा वह बीज जिसमे प्रकुर वेडा-वि० [हिं० श्राड़ा का अनु०, या स० बलि ( = टेदा) ] १. निकल पाया हो । ३. दे० 'बेड' । मेड़ । बाढ । जो आँखों के समानांतर दाहिनी ओर से बाई और प्रथवा वेढ़ई-संज्ञा स्त्री० [हिं० बढ़ना (= घेरना) ] वह रोटी या पूरी बाई पोर से दाहिनी ओर गया हो। आड़ा। २. कठिन । जिसमें दाल, पीठो मादि कोई चीज भरो हो । कचौड़ी। मुशकिल । विकट । वेढ़का-संज्ञा पुं० [सं० वर्धन (= काटना) ] काटनेवाला अर्थात् बेड़िचा-संज्ञा पु० [ देश० ] बास की कमाचियों की बनी हुई एक लड़नेवाला । योद्धा । सुभट । उ०-वेढक डेरे बज्जिए पड़िया प्रकार की टोकरी जो थाल के आकार की होती है पौर सुहह पचास ।-रा० रू., पृ०२५६ । जिससे किसान लोग खेत सीचने के लिये तालाब से पानी निकालते हैं। वेदना-संज्ञा पुं० [सं० वेष्ठन ] वह जिससे कोई चीज घेरी हुई हो। बेठन । घेरा। बेडिन, बेड़िनी-पज्ञा स्री० [ ? ] नट जाति की स्त्री जो नाचती गाती हो । उ०—(क) जाने गति वेडिन दिखराई। वाह वेदना'-क्रि० स० [सं० वेष्ठन ] १. वृक्षों या सेतो पादि को उनकी रक्षा के लिये चारो पोर से टट्टी बांधकर, काटे डुलाय जीव लेइ जाई । —जायसी (शब्द॰) । (ख) कहूँ भाट भाटयो कर मान पावें । कहूँ लोलिनी बेड़िनी गोत गावें।- बिछाकर या पौर किसी प्रकार घेरना । रूंधना । २. चौपायों को घेरकर हाक ले जाना। केशव (शब्द०)। २. नीच जाति की कोई स्त्री जो नाचती गाती मौर कसब कमाती हो । वेदना –क्रि० स० [सं० वर्धन ] छिन्न करना । काटना । उ०- दग वाण तिणरा भुजा दोन्यू वेढिया सुघ बघिनै ।-रघु०, वेड़िया -संज्ञा पुं० [हिं० ] वेडिन की जाति का व्यक्ति । नट । रू०, पृ.१२६॥ वेडी'-सज्ञा स्त्री॰ [स० वलय] १. लोहे के फड़ों की जोड़ी या जंजीर वेढब'–वि० [हिं० वे+ठय ] १. जिसका ढव या ढंग अच्छा न जो कैदियों या पशुओं प्रादि को इसलिये पहनाई जाती है हो। २. जो देखने में ठीक न जान पड़े। वेढगा। भद्दा । जिसमें वे स्वतंत्रतापूर्वफ घूम फिर न सकें। निगड । उ०- (क) पहुंचेंगे तब कहेंगे वेही देश की सीच । प्रवहिं कहाँ ते वेढप'-क्रि० वि० बुरी तरह से। अनुचित या अनुपयुक्त रूप से । गाड़िए बेडी पायन बीच ।-फबीर (शब्द०)। (ख) पायन बेतरह। गाढ़ी बेड़ी परी। सांकर ग्रीव हाथ हथकड़ी।-जायसी वेढ़ा-संशा पुं० [ हिं• वेदना (= घेरना)] १. हाप में पहनने का (शब्द०)। एक प्रकार का कड़ा (गहना)। उ.-तोरा कंठीमाल रतन क्रि० प्र०-डालना ।-देना ।-पड़ना ।-पहनना चोकी बहु साकर । बढ़ा पहुँची कटक सुमरनी छाप पहनाना। सुमाकर । --सूदन (शब्द०)। २. घर के पासपास वह २. बांस की टोकरी जिसके दोनो ओर रस्सी बंधी रहती है छोटा सा घेरा हुमा स्थान जिसमे तरकारियां प्रादि बोई पौर जिसकी सहायता से पानी नीचे से. उठाकर खेतों में डाला जाता है । ३. सांप काटने का एक इलाज जिसमे काटे हुए वेढाना-क्रि० स० [हिं० वेढना का प्रे०रूप ] १. घेरने का स्थान को गरम लोहे से दाग देते हैं। काम दूसरे से कराना। घिरवाना । २. मोढ़ाना । वेडी --संज्ञा स्त्री॰ [हिं० वेढा का सी० अल्पा• ] १. नदी पार करने वेढुआई-संशा पुं॰ [ देश० ] गोल मेथी। का टट्टर मादि का बना हुआ छोटा वेडा । २. छोटी नाव । वेणी-संज्ञा स्त्री० [सं० वेणी ] दे० 'वेनी' । (क्व०)। वेणीफूल-संशा पुं० [सं० वेणी + हिं० फूल ] फूल के माकार का बेडौल-वि० [हिं० बे+डौल (= रूप) ] १. जिसका डौल या सिर पर पहनने का एक गहना । सोसफूल । रूप अच्छा न हो । भद्दा । २. जो अपने स्थान पर उपयुक्त बेत-संज्ञा पुं० [सं० वेतस् ] दे० 'वेत'। न जान पड़े। वेढगा। यो०-बेतपानि बेत्रपाणि । वेंत लिए हुए । दंडधारी । उ०- वेढंग-वि० [हिं० ] दे० 'बेढंगा' । बेतपानि रक्षक पहुंपासा ।—मानस, ६।१०७ । वेढंगा-वि० [फा० बे+हिं० ढंग+पा (प्रत्य॰)] [ वि० स्त्री० वेतकल्लुफ'-वि० [फा० बे+म० तकल्लुफ़ ] १. जिसे तकल्लुफ घेढंगी ] १. जिसका ढंग ठीक न हो। बुरे ढगवाला । २. को कोई परवा न हो। जिसे ऊपरी शिष्टाचार का कोई जो ठीक तरह से लगाया, रखा या सजाया न गया हो। ध्यान न हो बल्कि जो अपने मन का व्यवहार करे। सीधा बेतरतीव । ३. भद्दा । कुरूप । सादा व्यवहार करनेवाला। २. जो अपने हृदय की बात बेढंगापन-संञ्चा पु० [हिं० बेढंगा+ पन (प्रत्य॰)] वेढंग होने साफ साफ कह दे | मंतरगता का भाव रखनेवाला। का भाव। वेतकल्लुफ-क्रि० वि० १. बिना किसी प्रकार के तकल्लुफ के । बेद-संज्ञा पु० [सं०/वृध् (= वर्धन) ] नाथ । वरवादी। उ०- बेषड़क । निस्संकोच । - जाती हैं। ।