पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/३५५

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ब्राह्मीअनुष्टुप् ३५९४ ब्लाक बंधात्री। ब्रह्ममंडूवी कहते हैं, उसकी पत्तियों और छोटी होती हैं। वैद्यक में ब्राह्मी शीतल, कसेली, कड़वी, बुद्धि दायक, मेधाजनक सारक, कठशोधक, स्मरणशक्तिवर्धक, रसायन तथा कुष्ठ, पाडुरोग, खाँसी, सूजन, खुजली, पिच, प्लीहा प्रादि को दूर करनेवाली मानी जाती है। पर्या०- वयस्था । मत्स्याक्षी । सुरसा। ब्रह्मचारिणी। सोम- वल्लरी । सरस्वती। सुवर्चला । कपोतवेगा। दिव्यतेजा । ब्रह्मकन्यका | मंडूकमाता। दिव्या । शारदा । ब्राहीअनुष्टुप्-सा पु० [स०] एक वैदिक छद जिसमें सब मिला- कर ४८ वणं होते हैं। ब्राह्मोउप्णिक-सज्ञा पु० [स०] एक वैदिक छद जिसमे सब पिला- कर ४२ वर्ण होते हैं। ब्राहीकंद-सज्ञा पुं॰ [ स० ब्राह्मीकन्द ] बाराही कंद । ब्राह्मागायत्री-संज्ञा सो. [ स०] एक वैदिक छद जिसमें सब मिला- कर ३६ वर्ण होते हैं। ब्राह्मीजगतो-संज्ञा स्त्री॰ [ सं० ] एक प्रकार का वैदिक छद जिसमें सब मिलाकर ७२ वर्ण होते हैं। ब्राह्मीत्रिष्टुप-सज्ञा पु० [ स०] एक प्रकार का वैदिक छद जिसमें कुल मिलाकर ६६ वणं होते हैं । ब्राह्मोपक्ति-संज्ञा सी० [ स० ब्राह्मोपक्ति ] एक वैदिक छद जिसमे सब मिलाकर ६० वर्ण होते हैं। ब्राह्मीवृहती-सज्ञा स्त्री० [स०] एक प्रकार का वैदिक छद जिसमें सब मिलाकर ५४ वणं होते हैं । ब्राह्य-वि० [सं०] दे० 'ब्राह्म। त्रिंदावन-सज्ञा पुं० [स० वृन्दावन ] दे० 'वृदावन' । उ०- निदावन को चल जाऊँगी भक्तबछन को रिझाऊँगी मैं |-- दक्खिनी०, पृ० १३१ । त्रिख@--सज्ञा पु० [स० वृक्ष, पू० हिं० बिरिख] वृक्ष । पेड़ । उ०- जल बेली बिहु बाग निख ते जिन भए अलोप ।-पृ० रा०, ११४९५ । त्रिख-संज्ञा पु० [सं० वृप] एक राशि । दे० 'वृष' । उ०-विछिक सिंघ त्रिख कुभ पुनीता।-संत० दरिया, पृ० २८ । ब्रिगेड-संज्ञा पु० [अं॰] सेना का एक समूह । ब्रिगेडियर-सञ्ज्ञा पु० [अं॰] दे० 'विगेडियर जनरल' । यौ०-ब्रिगेडियर जनरल । ब्रिगेडियर जेनरल-सज्ञा पुं॰ [ ] एक सेनिक कर्मचारी जो एक निगेड भर का संचालक होता है। विछिक-सशा पु० [सं० वृश्चिक ] वृश्चिक राशि । उ०—विछिक सिंघ निख कुभ पुनीता। चारिउ रासि चंद कर हीता।- संत० दरिया, पृ० २८ । ब्रिज-- सञ्चा पु० [सं०] १. पुल । सेतु । जैसे, सोन ब्रिज, हबढ़ा निज । २. ताश का एक खेल । ब्रिटिश-वि० [१०] १. उस द्वीप से संबंध रखनेवाला जिसमें इगलैंड और स्काटलैंड प्रदेश हैं। २. इगलिस्तान का । अगरेजी। यौ०- ब्रिटिश राष्ट्रमंडल = समान हितों और समान म्वार्थों की रक्षा के लिये संघटित वह राष्ट्रममूह जो पहले ब्रिटिश अधिकार में था। ब्रिटेन-सा पु० [4] इंगलैड गौर वैल्म | श्रीखा-संज्ञा ५० स० वृषभ ] दे० 'वृषम' उ०-वहे दग्यिा ब्रह्मभेद नहीं नीर वेद वहा नोखब हुथा।-संन० दरिया, पृ०६६ । ब्रोछ-सज्ञा पु० [सं० वृत] ३० वृक्ष' । उ०-प्रोक्ष एक न्हें मुंदर छाया। चौका चयन तहाँ बनाया ।-मंत०, दरिया, पृ० २ । ब्रीड़ना-मि०प्र० [ स० ब्रीदन] लज्जिन होना । लजाना । उ०-कुरल भनक कपोलनि मानहुँ मीन सुधारस कोढ़त । अकुटी धनुष नैन सजन मनु उड़त नही मन प्रोटत -सूर०, १०।१७६१ ॥ ब्रीड़ा-सा मो. [ स० ब्रीडा ] दे० 'ब्रीडा' । उ०-मोहि मन करहिं विविध विधि क्रीड़ा। वरनन मोहि होति प्रति बीड़ा।- मानस, ७१७७ । ब्रीद-सज्ञा पु० [सं० विरुद, हिं० विरद ] दे० 'विरघ' । उ०- श्रीद मेरे माइयां को 'तुका' पलाये पाम । सूरा सो हमसे लरे छोरे तन की प्राम 1-दविखनी०, पु० १०६ । ब्रीवियर-सशा पु० [अं॰] एक प्रकार का छोटा टाहप जो पाठ प्वाइंट फा अर्थात पाइका का होता है । ब्रोवियर टाइप । ब्रीहि-संज्ञा पुं॰ [सं० बोहि ] दे० 'बीहि । ब्रश-सा पं० [अ० ] वालो का बना हुप्रा कूचा जिससे टोपी या जूते इत्यादि साफ किए जाते हैं। ब्रहम-ज्ञा स्त्री० [ अ.] एक प्रकार की घोडा गाडी जिसे बहम नामक डाक्टर ने ईजाद किया था। इसमें एक प्रोर डाक्टर के बैठने का और उसके सामने दूसरी पोर येवल दवाओं का वेग रखने का स्थान होता है। ब्रेक-ज्ञा पु० [अ० ] १. रोक । रुकाव । वह यंप्र जो गाडियो को रोकता है । २. रेल में बह डव्या जिसमे रोष यंत्र लगा रहता है। इसे वकवान भी कहते है। उ०-वेक मे सव सामान निकलशकरमैं मनिया का हाथ पकड़कर उसे बाहर ले गया ।-जिप्पी, पृ० २७६ । ब्रेवरी--सा सी० [ देण० ] एक प्रकार का कामोरी तंबाकू जो बहुत अच्छा होता है । ब्रोकर-सत्रा पुं० [अं० ] वह व्यक्ति जो दूसरे के लिये सौदा खरीदता और जिसे सौदे पर सैकड़े पीछे कुछ बंधी हुई दलाली मिलती है। दलाल । जैसे, शेयर ब्रोकर; पीस गुड्स ब्रोकर। व्लाउज-सज्ञा पु० [पं० व्लाउज़ ] १. विलायती ढंग या काठ की बनी हुई औरतो की कुरती । 0-ठलाउज पोस= कुरती का कपड़ा । ब्लाक-मज्ञा पु० [अ०] १. ठप्पा जिसपर से कोई चित्र छापा जाय । बैठाए हुए अक्षर, चित्र, लिखावट ग्रादि का जस्से तांबे आदि का बना हुषा ठप्पा जिससे वह वस्तु छापी जाय । २. भुमि का थ