पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/३५७

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भंगास्वन भंडार भंगास्वन-संज्ञा पु० [सं० भङ गास्वन ] महाभारत के अनुसार एक भंजनागिरि-संग पु० [सं० भजनागिरि ] एक पर्वत का नाम । राज जिसने पुत्र की कामना से पग्निष्टुत् यज्ञ किया था भंजा-सा सो० [ स० भञ्जा ] अन्नपूर्णा का एक नाम । और जिसे सौ पुत्र हुए थे। भंजिका-वि० [सं० भन्जिका ] भग करनेवाली | तोड़नेवाली। भंगि-सज्ञा स्त्री० [१० ढिग] १. विच्छेद । २. कुटिलता। टेढ़ाई । उ०-प्रेजुडीस लेश मात्र भजिका । मद्यपान घोर रंग ३. विन्यास । अंगनिवेश। अदाज । ४. वल्लोल । लहर । रजिका |-भारतेंदु ग्र०, भा० ३, पृ० ८४५ । ५. भंग। ६. व्याज। वहाना । ७. प्रतिकृति । ८. तरीका। भंजिता-सा पुं० [म० भजन ] भग करनेवाला । नाशक । दूर युक्ति । ढग । सपाय । उ०-जोग किए का होय भंगि जो करनेवाला । उ०-दाटू मैं भिखारी मंगिता, दरसन देह प्राव नाही।-पलटू वानी, पृ० १७ । दयाल । तुम दाता दुख भजिता, मेरी करहु संभाल ।-दादू. भंगिमा-शा सी० [स० भंङ गिमन् ] कुटिलता । वझता । वानी, पृ० ५६ । भगि [को०] | भंझा-मा पु० [देश॰] वह लकड़ी जो कुएं के किनारे के खंभे वा भंगी'-संज्ञा पु० [सं० भङ्गन् [ सी० भगिनी ] १. भंगशील । प्रोटे के ऊपर माड़ी रखी जाती है और जिसपर गड़ारी नष्ट होनेवाला । २. भग करनेवाला। भगकारी। उ०- लगाकर धुरे टिकाए जाते हैं। रसना रसालिका रसत हस मालिका रतन ज्योति जालिका भंटक-सशा पु० [ स० भण्टक ] मरसा नामक साग । सो देव दुख भगिनी ।-देव (शब्द०)। ३. रेखापो के भंटा -पहा पुं० [सं० वृन्ताक ] बैगन । काव से खीचा हुषा चित्र वा बेलबूटा आदि । भंटाको संज्ञा स्त्री० [सं० भण्टाकी ] बैगन | भंटा को०] । भंगी२--संवा पु० [सं० देश० ] [स्त्री० भंगिन ] एक पिछड़ी जाति जिसका काम मलमूत्र प्रादि उठाना है । भंटुक, भंटूक-मज्ञा पुं० [सं० भएटु, भएटूक ] श्योनाक । भंड-संज्ञा पु० [सं० भण्ड] १. मोड़ । वि० दे० 'ड' । २. भाट । भंगी-वि० [हिं० भांग ] भांग पीनेवाला । भगेड़ो । ३. उपकरण । सामान । बर्तन भाड़ा। लोग निकम्में भंगी गंजड़ लुच्चे वे बिसवासी ।-भारतेंदु भंड-वि० १. अश्लील या गदी बातें बकनेवाला । २. पूर्त पाखंडी। मं, भा० १, पृ० ३३३ । उ.-बैठा हूँ मैं भंड साधुता चारण करके । -साकेत, भंगील-मंशा पुं० [सं० भङ गील ] ज्ञानेंद्रिय की विफलता या दोष । पृ० ४०२। भंगुर -वि० [सं० भङ्ग र ] १. भग होनेवाला । नाशवान् । जैसे, भंडन-संज्ञा पु० [सं० भण्डन ] १. हानि । क्षति । २. युद्ध । ३. क्षणभगुर । २. कुटिल । ३. टेढ़ा | वक्र । कवच । उ०-सेल सोधकर रग बिनु, पाए भडन जूद । बहुरि भंगुर-संज्ञा पुं० नदी का मोर या घुमाव । सुभट जे सुभट सौ सिंह रूप है कूद । -हिं० प्रेमगाथा०, भंगुरा-संशा स्त्री० [सं० १. प्रतिविषा । प्रतीस । २. प्रियंगु । पृ० २२३ । भंग्य-वि० [सं० भङ ग्य ] जो भंग किया या तोड़ा जाय । भंडना-क्रि० स० [सं० भण्डन ] १. हानि पहुंचाना । बिगाड़ना । तोड़ने लायक । मंजन के योग्य [को०] । २. भंग करना। तोड़ना । ३. गड़बड़ करना। नष्ट भ्रष्ट भंग्य-सञ्ज्ञा पु० भांग का खेत । वह खेत जिसमें भांग वोई हो [को०] । करना। ४. बदनाम करना। अपकीति फैलाना। भंजक-वि० [म० भञ्जक] [स्त्री० भंजिका] भंगकारी। तोड़नेवाला। भंडपना-संज्ञा पुं० [हिं० भांड+पना ] १. भाँडो की क्रिया या भंजन'-संवा पुं० [सं० भञ्जन] १. तोड़ना। भंग करना । २. भंग । भाव । भंड़ती। २. भ्रष्टता । उ०-भला भौर क्या चाहेंगे, ध्वंस । ३. नाश । ४. मंदार । माक । ५. भांग । ६. दांत हमारा भडपना जारी ही रहा।-भारतेंदु नं०, भा० १, पृ० ३६७। गिरने का रोग। दे० 'भंजनक'। ७. व्रण को वह पीड़ा जो वायु के कारण होती है। ८, दूर करना। हटाना। जैसे, मंडरा-तज्ञा पुं॰ [ स० भदृ ] दे० 'भहुर' । पीड़ा या दुःख। भंडरिया-संज्ञा स्त्री॰ [हिं० भंडार+इया (प्रत्य॰)] दीवाल में बनी हुई छोटी अलमारी। भंडारी । भंजन-वि० भंजक । तोड़नेवाला। जैसे, भवभंजन, दुःखभंजन । उ०-राजिव नयन धरे धनु सायक । भगत बिपति भंजन भंडा-सज्ञा पुं० [सं० भाण्ड ] १. वर्तन । पात्र । भाँडा । उ०- हम गृह फोरहिं शिशु बहु भंडा। तिनहि न देत नेक कोउ सुखदायक ।-मानस, १६१८ । दंडा ।-गोपाल (शब्द०)। २. भंडारा । ३. भेद । रहस्य । भंजनक-नशा पुं० [सं० भजनक ] एक रोग जिसमें मुंह टेढ़ा हो जाता है जिससे दांत गिर जाते हैं। लकवा । भंग । मुहा०-भंडा फूटना = गुप्त रहस्य खुलना। भेद खुलना । भंडा फोड़ना= गुप्त रहस्य खोलना । भंजना-हरी० [सं० भञ्जना] विवृति । स्पष्टीकरण । विव रण को०] । ४. वह लकडी वा बल्ला जिसका सहारा लगाकर मोटे और भंजना-कि० भ० [सं० भञ्जन] तोड़ना । टुक टुकड़े करना । भारी बल्लों को उठाते वा खसकाते हैं। उ०-उठहु राम मंजहु भवचापा । मेटहु तात जनक भंडाकी-संज्ञा स्त्री॰ [सं० भण्डाकी ] भंटा । भंटाकी [को॰] । संतापा ।-तुलसी (शब्द०)। भंडार-संज्ञा पुं० [सं० भाण्डागार ] १. कोष । खजाना । २.