पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/३६

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३२७५ फरिया वृक्ष । . फराक-संज्ञा पुं० [फा० फराख] मैदान । प्रायत स्थान । उ० चीज दे तो वह तुरंत 'फरामोश' कह दे। यदि चीज पाने उठाय बाग उप्परयो सु विप्फरयो फराक में। महा पराक पर पानेवाला 'फरामोश' न कहे तो वह हार जाता है। अड्डियो धमाक धुघराक में। -सूदन (शब्द०) । क्रि० प्र०-बदना। फराकर-वि० लंबा चौड़ा । विस्तृत । प्रायत । उ०-दूरि फराक फरामोस-व० [फा० फ़रामोश ] दे० 'फरामोश' । उ०- रुचिर सो घाटा। जहँ जल पिअहि बाजि गज ठाटा। फरामोस कर फिकर फेल बद, फहम करे दिल माहीं।- तुलसी (पान्द०)। -कबीर श०, भा०४, पृ० २८ । फराकार-सञ्ज्ञा पुं॰ [अं० फ्राक ] एक प्रकार का छोटी भास्तीन फरार'-वि० [अ० फरार ] भागा हुआ। जो भाग गया हो। का ढीला कुरता जिसे लड़कियां पहनती हैं । जैसे, फरार कैदी। फराकत'-वि० [ फा० फराख ] अायत । विस्तृत । लंबा चौड़ा फरार-संशा पु० भागना । पलायन । और समतल । उ०-कहै पद्माकर फराकत फरसबंद फहरि फरार-संज्ञा स्त्री० [हिं० फैलाव ] दे० 'फराल' । फुहारन की फरस फबी है फाब ।-पद्माकर (शब्द०)। फराकत-वि० [अ० फरागत ] दे॰ 'फरागत' । फरार ---संज्ञा पु० [हिं० फरहार ] दे॰ 'फलाहार' । फराकत-संज्ञा पुं० दे० 'फरागत' । फरारी-संज्ञा क्षी० [अ० फरार + फ़ा०ई (प्रत्य॰) । भागा हुमा । पलायित । फराख-वि० [फा० फराख] विस्तृत । लंबा चौड़ा । प्रायत । उ०- करो फराख दिल फहम टुक कीजिए, फरक संसार से पीठ फराला--संज्ञा स्त्री० [हिं० फैलाव ] १, फैलाव । विस्तार २. तखता। फेरी।-पलटू० बानी, भा०२, पृ० २७ । फरालन-क्रि० स० [हिं० फैलाना ] फैलाना | पसारना। यौ०-फराखदस्त = (१) उदार । (२) धनी। फराखदामन = दे० 'फराखदस्त'। फराखहौसला = (१) हिम्मती। (२) फराश-सञ्ज्ञा पुं॰ [ देश० ] झाऊ को जाति का एक प्रकार का बड़ा धैर्यशाली। धीर। फराखी-संज्ञा स्त्री॰ [फ़ा० फराखी] १. चौड़ाई । विस्तार । फैलाव । विशेष—यह पंजाब, सिंध, अफगानिस्तान और फारस में २. पाढ्यता । संपन्नता। ३. घोड़े का तंग। अधिकता से पाया जाता है। यह गरमी के दिनों में फूलता है। खारी भूमि में यह अच्छी तरह बढ़ता है। विशेष-यह घोड़े की पीठ पर कंबल, गरदनी आदि डालकर उसपर लगाया जाता है। यह चौड़ा तसमा या फोता होता फरास'-सज्ञा पु० [सं० पलाश ] दे० 'पलाश' । है और इसके दोनों सिरों पर कड़े लगे रहते हैं । फरासार-संज्ञा पुं० [फा० फर्राश ] दे० 'फर्राश'। उ०-रूप फरागत-संज्ञा स्त्री० [अ० फरागत ] १. छुटकारा । छुट्टी। चांदनी की गढ़ो स्वच्छ राखिवे हेत। डग फरास हाजिर खड़े वरुनि वहारू देत ।-स० सप्तक, पृ० १८२ । मुक्ति । मुहा०-फरागत करना=समाप्त करना । पूरा करना । उ० फरासीस-संज्ञा पु० [फा०] १. फ्रांस देश । २. फ्रांस का रहनेवाला इतना काम फरागत करके तब उठना। फरागत पाना या व्यक्ति । उ०-फरासीस कोम को फिरंगी एक नामी। जंगी होना = छुटकारा पाना । निश्चित होना । हज्जार वीस फोज का कमामी ।-शिखर०, पृ० १००। ३. २. निश्चितता । बेफिक्री । ३. मलत्याग । पाखाना फिरना । एक प्रकार की छीट। यौ०-फरागतखाना = शौचालय । विशेष-इसका रंग लाल होता है और जिसमें पीली या सफेद मुहा०-फरागत जाना = पाखाने जाना । टट्टी जाना । बूटियां अथवा बूटे बने हुए होते हैं। यह पहले फ्रांस देश से पाया करती थी। फराज-वि० [फा० फ़राज़ ] ऊँचा । यौ०-नशेइफराज =(१) ऊँचा नीचा:। (२) भला बुरा । फरासीसी-वि० [हिं० फरासीस ] १. फास का रहनेवाला। उ०- काव्यसमीक्षा मे फरासीसियों की प्रधानता के कारण फराजी-संञ्चा स्त्री॰ [फा० फराजी ] ऊँचाई । बलंदी। इस शब्द को इसी अर्थ में ग्रहण करने से योरप में काव्य- 'फरानाg+-कि० प्र० [हिं०] दे० 'फहराना' । उ०-सुन गगन दृष्टि इधर कितनी संकुचित हो गई।-रस०. पृ० ५८ । में घजा फराई पुछो सबद भयो प्रकासा।-रामानंद, २. फ्रांस का बना हुआ । ३. फ्रास देश में उत्पन्न । फ्रांस का। पृ० ४६। फरामोश-वि० [फा० फरामोश ] भुला हुआ। विस्तृत । चित्त फराहम-वि० [ फा० फराहम ] इफट्ठा किया हुमा । संचित । से उतरा हुा । उ०—क्या शेख व क्या बरहमन जब फराहमी-संज्ञा स्त्री॰ [फा० फराहमी ] संचय करना या इकट्ठा माशिकी में प्रावे। तसबी करे फरामोश जुन्नार भूल जावे । करना । एकत्र करना। -कविता को०, भा० ४, पृ० १५ । फरिआ-संज्ञा स्त्री० [हिं० फरना ] ओढ़नी। उ०-सासु ननद के फरामोश-संज्ञा पुं० लड़कों का एक खेल जिसमें वे आपस मे कुछ लेहँगा फारे, बढ़ी जिठानी की फरिमा, जच्चा मेरी लड़नों समय के लिये यह वद लेते हैं कि यदि एक दूसरे को कोई न जाने रे ।-पोद्दार अभि० न०, पृ० ६१५ ।