पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/३८२

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भरथर, भरथरी स० स० . भरतर ३६२१ ४. एक प्रसिद्ध मुनि जो नाट्यशास्त्र के प्रधान प्राचार्य माने भरतवीणा-संज्ञा स्त्री० [ ] एक प्रकार की वीणा जो कच्छपी जाते है। वीणा से बहुत कुछ मिलती जुलती होती है । यह बजाई भो विशेष-संभवत: ये पाणिनि के बाद हुए थे; क्योकि पाणिनि कच्छपी वीणा की तरह ही जाती है। के सूत्रों में नाट्यशास्त्र के शिलालिन् और कृशाश्व दो भरतशाख्न-सञ्ज्ञा पु० [मं०] नाट्यशास्त्र [को०] । श्राचार्यों का तो उल्लेख है, पर इनका नाम नहीं आया है । भरता-सज्ञा पुं० [ देश० ] एक प्रकार का सालन जो वैगन, भालू इनका लिखा हुआ नाट्यशास्त्र नामक ग्रंथ बहुत प्रसिद्ध पौर या अरुई ग्रादि को भूनकर, उसमे नमक मिर्च नादि मिलाकर प्रामाणिक माना जाता है । ' कहा जाता है, इन्होंने नाट्य- और कभी कभी उसे घो या तेल आदि मे छौंककर तैयार कला ब्रह्मा से और नृत्य कला शिव से सीखी थी। किया जाता है । चोखा। यौ०-भरतपुत्र । भरतपुत्रक । भरतवाक्य । भरतवीणा | भरत- भरता-श पु० [ स० भर्तृ } दे० 'भर्चा' । शाननाट्यशास्त्र। भरताग्रज-सज्ञा पुस ] भरत के प्रमज । राम । ५. संगीत शास्त्र के एक प्राचार्य का नाम । ६. वह जो नाटकों भरतार-सज्ञा पु० [ स० भर्ता] १. पति । खसम । खाविंद । २. मे अभिनय करता हो। नट । ७. शवर । ८. तंतुवाय । स्वामी। मालिक | उ०-मेरे तो सदाई करतार भरतार जुलाहा। ६. क्षेत्र । खेत । १०. वह जो शस्त्रादि प्रायुधो से हो।-घनानंद• पृ० १५७ । जीविकार्जन करता हो। सैनिक । आयुधजीवी (को०)। ११. अग्नि (को०)। १२. प्राचीन काल का उत्तर भारत का भरतिया-वि० [हिं० भरत+इया (प्रत्य०) भरत धातु अर्थात् एक देश जिसका उल्लेख वाल्मीकि रामायण में है। १३. कसकुट धातु का बना हुमा । जैनों के अनुसार प्रथम तीर्थंकर ऋषभ के ज्येष्ठ पुत्र भरतिया-संञ्चा पु० कसकुट के बर्तन या घंटे प्रादि ढालनेवाला। का नाम। भरत घातु से चीजें बनानेवाला । भरत-सज्ञा पु० [सं० भरद्वाज ] लवा पक्षी का एक भेद जो प्रायः भरती-सब्जा बी० [हिं० भरना ] १. किसी चीज में भरे जाने का सारे भारत में पाया जाता है। भाव । भरा जाना। विशेष-यह पक्षी लंबा होता है और झुड मे रहता है । जाड़े मुहा०- भरती करना = किसी के बीच में रखना, लगाना या के दिनों में खेतों और खुले मैदानों में इसके झुंड बहुत पाए बैठाना । जैसे,—(क) इसमे ५) की और भरती करो। जाते हैं। इसका शब्द बहुत मधुर होता है और यह बहुत (ख) टांका भरती करना । भरती का= जो केवल स्थान पूरा ऊँचाई तक उड़ सकता है। यह प्रायः अंडे देने के समय करने के लिये रखा जाय । बहुत ही साधारण या रद्दी । जमीन पर घास से घोसला बनाता है और एक बार में ४-५ २. नक्काशी, चित्रकारी या कशीदे आदि मे बीच का खाली अंडे देता है। यह अनाज के दाने या कीड़े मकोड़े खाकर स्थान इस प्रकार भरना जिसमें उसका सौदर्य बढ़ जाय । अपना निर्वाह करता है। जैसे, कशीदे के बूटों में की भरती, नैचे में की भरती । ३. भरत-संज्ञा पुं॰ [ देश०] १. कांसा नामक धातु । कसकुट ! वि० दाखिल या प्रविष्ट होने का भाव । प्रवेश होना । जैसे, लड़को दे० 'कांसा'२. कांसे के बरतन बनानेवाला। ठठेरा । फा स्कूल में भरती होना, फौज में भरती होना । ४. वह नाव भरत-संज्ञा स्त्री० [हिं० भरना ] मालगुजारी । (दिल्ली)। जिसमे माल लादा जाता हो। (लश०)। ५. वह माल भरतखंड- संज्ञा पुं० [सं० भरतखण्ड ] १. राजा. भरत के किए हुए जो ऐसी नाव में भरा या लादा जाय । (लश०)। ६. पृथ्वी के नौ खंडों मे से एक खड। भारतवर्ष । हिंदुस्तान । जहाज पर माल लादने की क्रिया। (लश०)। ७. समुद्र २. भारतवर्ष के अंतर्गत कुमारिका खड । में पानी का चढ़ाव । ज्वार । (लश०)। ८. नदी के पानी भरतज्ञ-वि० [सं०] नाट्यशास्त्र का जानकार | भरत की नाट्य- की बाढ़ । (लश०) । कला का ज्ञाता। भरती-सञ्ज्ञा स्त्री० [ दश० ] १. सांवा नामक कदन्न । २. एक भरतपुत्रक-ज्ञा पुं० [सं०] नाटक में नाट्य करनेवाला प्रकार की घास जो पशुओं के चारे के काम मे पाती है। भरतोद्धता-सञ्ज्ञा पुं० [०] केशव के अनुसार एक प्रकार के छंद ] भरत की माता । कैकेयी [को० । का नाम। भरतभूमि-सञ्चा स्त्री० [ स०] भारतवर्ष (को०] । भरत्थg+-सज्ञा पु० [ म० भरत, प्रा० भरत्थ ] दे० 'भरत' । भरतरी -संज्ञा स्त्री० [हिं० ] पृथ्वी। भरया-संज्ञा पु० [ स० भरत ] १. दे० 'भरत' । २. भारत । भरतर्षभ-वि० [सं०] भरत के वंश मे श्रेष्ठ । अर्जुन । उ०—करि पडो की पैज भरथ को दिया जिताई । भरतवर्ष-संज्ञा पु० [ स० ] दे० 'भारतवर्ष' । -पलटु० बानी, पृ० ११२ । भरतवाक्य-सशा पु० [सं०] नाटकों के अंत में भरत मुनि के भरथर, भरथरी-संज्ञा पु० [ सं० भतृहरि ] दे० 'भर्तृहरि' । सम्मान में गेय 'प्राणीर्वाद पद्य को॰] । उ०-(क) मुणि भरथर नानक एह बाणि । जित पावहिं पुरुष । नट। भरतप्रसू-सज्ञा स्त्री० [ &o