पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/३९८

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भोगक भागानुप्रविष्टक स० . , भागक-संज्ञा पुं० [सं०] भाग । भाजक | भागभरा-वि० [हिं० भाग+भरना ] [ वि० भागभरी ] भाग्य- भागकल्पना-संज्ञा खो. [ सं० ] हिस्से बाँटना । बंटवारा। वान् । खुशकिस्मत। भागजाति-संज्ञा सी० [ स०] विभाग के चार प्रकारों में से एक भागभाज-वि० [ ] हिस्सेदार (को०] । जिसमे एक हर ओर एक अंथ होता है, चाहे वह सम भिन्न भागभुज-संज्ञा पु० [स०] नरेश । राजा [को॰] । हो वा विषम भिन्न हो । जैसे,७,१३। भागभोगकर-सञ्ज्ञा पु० [सं० भाग+भुज+कर ] एक प्रकार का भागड़-संश[स्त्री० हिं० भागना+ड़ (प्रत्य॰)] भागने, विशेषतः बहुत भूमिकर । उ०-चेदि, गहड़वाल, परमार तथा पालवंशी से लोगो के एक साथ घबराकर भागने की क्रिया या भाव । लेखों में इस कर (भूमिकर) के लिये भागभोग कर या क्रि० प्र०-पड़ना।-मचना । राजभोग कर का नाम मिलता है। संभवतः यह भूमि की भागत्याग-संज्ञा पुं० [सं०] दे॰ 'जहदजहल्लक्षणा'। उपज पर टैक्स था जो साधारणतः छठा हिस्सा होता था। 1-पू० म० भ०,१०११२ । भागदौड़-संज्ञा स्त्री॰ [हिं० भागना+दौड़ना ] दे० 'भागड़' । भागरा-संज्ञा पुं॰ [देश॰] एक संकर राग जो किसी किसी के मत से भागधान-संज्ञा पु० [ सं०.] खजाना । श्रीराग का पुत्र माना जाता है । भागधेय-संज्ञा पुं० [सं०] १. भाग्य । तकदीर । किस्मत । २. भागलक्षणा-सज्ञा स्त्री॰ [सं०] जहदजहल्लक्षणा । सौभाग्य। अच्छी किस्मत (को०)। ३. खुशकिस्मती। प्रसन्नता । प्रफुल्लता (को०)। ४. संपत्ति ।"चल और मचल भागवत-वि० [स० भाग्यवान् ] जिसका भाग्य बहुत अच्छा हो । संपत्ति (को०)। ५. भाग। हिस्सा (को०)। ६, वह कर जो खुशकिस्मत । भाग्यवान् । राजा को दिया जाता है । ७. दायाद । सपिंड । भागवत'-संज्ञा पु० [सं०] १. अठारह पुराणो मे से सर्वप्रसिद्ध एक पुराण जिसमे १२ स्कध, ३१२ अध्याय और १८००० श्लोक भागना-क्रि० प्र० [स०/भाज् ] १. किसी स्थान से हटने के लिये हैं। श्रीमद्भागवत । दौड़कर निकल जाना। पीछा छुड़ाने के लिये जल्दी जल्दी विशेष—इसमे अधिकांश कृष्ण संबंधी प्रेम और भक्ति रस की चले जाना । चटपट दूर हो जाना | पलायन करना। कथाएं हैं और यह वेदात का तिलकस्वरूप माना जाता जैसे,—महल्लेवालों की आवाज सुनते ही डाकू भाग गए। है। वेदांत शास्त्र में ब्रह्म के संबंध में जिन गूढ़ बातो का संयो॰ क्रि०-जाना। -निकलता।-पड़ना । उल्लेख है, उनमें से बहुतों की इसमे सरल व्याख्या मिलती मुहा०-सिर पर पैर रखकर भागना = बहुत तेजी से भागना । है । साधारणतः हिंदुप्रो में इस ग्रंथ का अन्यान्य पुराणों की जल्दी जल्दी चले जाना। अपेक्षा विशेष मादर है और वैष्णवो के लिये तो यह प्रधान २. टल जाना। हट जाना जैसे,—अव भागते क्यों हो, जरा धर्मग्रंथ है। वे इसे महापुराण मानते हैं। पर शावत लोग सामने बैठकर बातें करो। देवीभागवत को ही भागवत कहते और महापुराण मानते संया०क्रि०-जाना । हैं पौर इसे उपपुराण कहते हैं । ३. कोई काम करने से बचना। पीछा छुड़ाना। पिंड छुड़ाना २. देवीभागवत । ३. भगवद्भक्त । हरिभक्त । ईश्वर का भक्त । जैसे,—(क) माप उनके सामने जाने से सदा भागते हैं। ४..१२ मात्रामो के एक छंद का नाम । (ख) मै ऐसे कामों से बहुत भागता हूँ। '४. युद्ध में हार भागवत-वि० भागवत संबंधी। जाना। पीठ दिखाना। भागवतो-सञ्ज्ञा स्त्री० [स० ] वैष्णवो की गले में पहनने को गोल भागनिधि-संज्ञा स्त्री० [प्रा० भाग (= भाग्य) + निधि] भाग्य रूपी - । दानो की एक प्रकार की कठी। निधि । उ०-जसुद कूख भागनिधि खानि । प्रगट्यो कुस्न भागवान-वि० [हिं० भाग + वान ] दे० 'भाग्यवान् । रतन सुखदानि |-घनानंद, पृ० ३१६ । भागसिद्ध-संज्ञा पु० [सं०] एक प्रकार का हेत्वाभास । भागनेय- -सञ्ज्ञा पुं० [सं० भगिनेय ], बहिन का बेटा । भानजा । भागहर-वि० [स०] भाग या अश लेनेवाला । हिस्सेदार । भागफल-संज्ञा पुं॰ [सं०] वह संख्या जो भाज्य को भाजक से भाग भागहार-सञ्ज्ञा पु० [स०] गणित में किसी राशि को कुछ निश्चित देने पर प्राप्त हो। लब्धि । जैसे,यदि १६ को ४ से भाग थशो मे विभक्त करने की क्रिया । भाग । तकसीम । दें ४) १६ (४ तो यहाँ ४ भागफल होगा। भागहारी-वि० [स० भागहारिन् ] [वि॰ स्त्री० भागहारिणी ] हिस्सेदार । X भागहारों-संज्ञा पुं० उत्तराधिकारी । २. विभाग । हिस्सा [को०] । भागबस-क्रि० वि० [हिं० भाग+बस] भाग्यवश । सौभाग्यतः । भागानुप्रविष्टक-संज्ञा पु० [ स० ] कौटिल्य के अनुसार गायों की उ.-बागुर विषम तोराइ मवह भाग मृग भागवस । रक्षा करनेवाला वह कर्मचारी जो गाय के मालिकों से दूध -मानस, २।७५॥ की मामदनी का दसवां भाग लेता था। L. []