पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/३९९

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। भागापहारी भाजकांश भागापहारी-वि० [सं० भागापहारिन् ] हिस्सा पानेवाला । जिसने का मत है कि हम लोग संसार में पाकर जितने अच्छे या बुरे हिस्सा पाया हो [को०] । कम करते हैं, उन सबका कुछ न कुछ संस्कार हमारी प्रात्मा पर पड़ता है मौर मागे चलकर हमें उन्ही सस्कारो का फल भागाभाग-पञ्ज्ञा स्त्री० [हिं० भागना की द्विरुक्ति ] भागने को मिलता है । यही संस्कार भाग्य या कर्म कहलाते हैं और हमें हलचल । भागदौड़। सुख या दुःख देते हैं। एक जन्म मे जो शुभ या अशुभ कृत्य भागाथा-वि० [सं० भागार्थिन् ] [वि० सी० भागार्थिनी ] मंश या किए जाते हैं, उनमें से कुछ का फल उसी जन्म मे और कुछ हिस्सा चाहनेवाला। का जन्मांतर मे भागना पड़ता है। इसी विचार से हमारे यहाँ भागार्हि-वि० [सं०] १. जो भाग देने के योग्य हो। विभक्त करने के भाग्य को चार विभाग किए गए हैं-सचित, प्रारब्ध, क्रियमाण योग्य । २. हिस्सा पाने का अधिकारी। जो विभाग का गैर भावी। प्रायः लोगों का यही विश्वास रहता है कि हकदार हो। संसार में जो कुछ होता है, वह सदा भाग्य से ही होता है भागासुर-सञ्ज्ञा पुं० [सं० ] पुराणानुसार एक असुर का नाम । मोर उसपर मनुष्य का कोई मधिकार नहीं होता। भागि®-संज्ञा पुं॰ [ स० भाग्य ] ३० 'भाग्य'। उ०—निंदा अपने साधारणतः शरीर मे भाग्य का स्थान ललाट माना जाता है। भागि को चलो करति वह तीय |--शकुंतला, पु० ६६ । पर्या-दैव । दिष्ट । भागधेय। नियति । विधि। प्राक्तन । भागिक'--सञ्ज्ञा पुं० [सं०] वह ऋण जो व्याज पर दिया जाय । कर्म । भवितव्यता । अदृष्ट । भागिकर-वि० मश या भाग संवघी [को०] । यौ०-भाग्यक्रम, भाग्यचक्र = भाग्य का क्रम'या चक्र । भाग्य का फेर भाग्यदोष । भाग्यपंच। भाग्यबल । भाग्यभाव । भागिनेय-संज्ञा पु० [२०] [स्त्री० भागिनेयी ] बहिन का लड़का । भाग्यलिपि । भाग्यवान् । भाग्यशाली | भाग्यहीन | भाग्यो। भानजा। दया भादि। भागो-संश पुं० [सं० भागिन् ] [स्त्री० भागिनी] १. हिस्सेदार । थरीक । साझी । २. अधिकारी। हकदार । ३. शिव । मुहा०-६० 'किस्मत' के मुहा० । २. उत्तर फाल्गुनी नक्षत्र । भागी-वि० भाग या हिस्सावाला । जिसमें भाग या मश हो । भाग्य-वि० जो भाग करने के योग्य हो। हिस्सा करने लायक | भागीरथ'-सञ्ज्ञा पुं० [ स० भगीरथ ] दे० 'भगीरथ'। उ०- भागाई। भगीरथ जब बहु तप कियो। तव गंगा जू दर्शन दियो।- सूर (शब्द०)। भाग्यपंच-सञ्ज्ञा पुं० [सं० भाग्यपञ्च] एक प्रकार का खेमा [को०] । भागीरथ-वि० भगीरथ संबंधी। भगीरथ तुल्य । भाग्यभाव-सज्ञा पु० [सं०] जन्मकुडली में जन्मलग्न से नवा स्थान भागीरथी-सज्ञा स्त्री॰ [सं०] १. गंगा नदी । जाह्नवी । जहाँ से मनुष्य के भाग्य के शुभाशुभ का विचार किया जाता है। विशेष-कहते हैं कि राजा भगीरथ ही इस लोक में गंगा को भाग्ययोग-वि० [सं०] भाग्यवान । भाग्यशाली । लाए थे, इसीलिये उसका यह नाम पड़ा। २. गगा की एक शाखा का नाम जो बंगाल में है। भाग्यलिपि-शा स्त्री० [सं० ] तकदीर को लिखावठ । प्रष्ट रेखा । भाग्यलेख्य पत्र-सञ्ज्ञा पु० [ भागोरथी-संज्ञा पु० गढ़वाल के पास की हिमालय की एक चोटी स०] शुक्रनीति के अनुसार बंटवारे का कागज । वह कागज जिसमें किसी जायदाद के हिस्सेदारों का नाम । के हिस्से लिखे हों। भागुरि-संज्ञा पुं० [सं० सांख्य के भाष्यकर्ता एक ऋषि का नाम । भाग्यवश, भाग्यवशात्-पव्य० [सं०] भाग्य से। किस्मत से । भागू-संज्ञा पुं० [हिं० भागना+ऊ (प्रत्य॰)] वह जो भाग गया भाग्यवाद-सञ्ज्ञा पु० [स०] भाग्य के अनुसार ही शुभाशुभ की प्राप्ति हो। मानने का सिद्धात । भागीत-संज्ञा पुं० [ सं० भागवत ] दे० 'भागवत' । उ०-श्रीधर भाग्यविपर्यय, भाग्यविप्लव-संज्ञा पुं॰ [स०] प्रभाग्य । दुर्भाग्य [को॰] । श्री भागोत में, परत घरम निरने कियौ ।-भक्तमाल, भाग्यसंपद्-संज्ञा स्त्री० [सं० भाग्यसंपत् (-द् ) ] सौभाग्य [को० । पृ० ५३२। भाग्य-संज्ञा पु० [सं०] वह अवश्यंभावी दैवी विधान जिसके अनुसार भाग्योदय-संज्ञा पुं० [स०] भाग्य का खुलना । भाग्याधीन-वि० [सं०] जो भाग्य के अधीन हो । प्रत्येक पदार्थ और विशेषतः मनुष्य के सव कार्य-उन्नति, पवनति नाश प्रादि पहले ही से निश्चित रहते हैं और जिससे भाचक्र-संज्ञा पुं० [सं०] क्रांतिवृत्त । अन्यथा और कुछ हो ही नहीं सकता। पदार्थों और मनुष्यों भाजक:-वि० [सं०] विभाग करनेनाला । बाटनेवाला । आदि के संबंध में पहले ही से निश्चित और अनिवार्य भाजक-संज्ञा पुं० वह पंक जिससे किसी राशि को भाग दिया व्यवस्था या क्रम । तकदीर । किस्मत । नसीब । जाय । विभाजक पंक (गणित)। विशेप-भाग्य का सिद्धांत प्रायः सभी देशों और जातियों में भाजकांश-संज्ञा पुं० [सं०] वह संख्या जिससे किसी राशि को भाग किसी न किसी रूप में माना जाता है। हमारे शास्त्रकारों देने पर शेष कृष भो न बचे । गुणनीयक ।