पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/४००

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३६३९ भाड़ भाजन भाजन-संज्ञा पु० [सं०] १. बरतन । उ०-मनी संख सुती घरी ३. खुशामद करनेवाला पुरुष । खुशामदी । ४. राजदुत । मरकत भाजन माहिं। -स० सप्तक, पृ० ३६५। २. प्राधार भाट-संज्ञा पुं० [सं०] भाला। किराया। ३. पाढक नाम की तौल जो ६४ पल के बराबर होती है। भाट --संज्ञा स्त्री० [हिं० भाठ ] १. वह भूमि जो नदी के दो करारों ४. योग्य । पात्र । जैसे, विश्वास भाजन । उ०-लखन कहा के बीच में हो। पेटा। २. बहाव की वह मिट्टी जो नदी का जसभाजन सोई। नाथ कृपा तव जापर होई।-तुलसी चढ़ाव उतरने पर उसके किनारों पर की भूमि पर वा कछार (शब्द०)। ५. विभाग। पंश (गणित)। 4. विभाजन में जमती है। ३. नदी का किनारा । ४. नदी का बहाव । करना। अलग अलग करना। वह रुख जिधर को नदी बहकर दूसरे बड़े जलाशय में गिरती भाजनता-सज्ञा श्री० [स०] भाजन होने का भाव । पात्रता । है। उतार । चढ़ाव का उलटा। योग्यता। भाटक-संज्ञा पु० [स०] भाड़ा। भजना-क्रि० प्र० [सं० प्रजन, प्रा. वजन पु०हिं० भजना ] भाटा-संज्ञा पु० [हिं० भाट ] १. पानी का चढ़ाव की ओर से दौड़कर किसी स्थान से दूसरे स्थान को निकल जाना । उतार की ओर जाना । चढ़ाव का उतरना। २. समुद्र के भागना । उ०—(क) शूरा के मैदान में कायर का क्या काम । चढ़ाव का उतरना। ज्वार का उल्टा। दे० 'ज्वार भाटा'। कायर भाजै पीठि दै सूर करे संग्राम ।-कबीर (शब्द०)। ३. पथरीली। भूमि। (ख) प्रावत देखि अधिक रव बाजी । चलेट बराह मरुत गति भाटि-संज्ञा स्त्री॰ [सं०] १. किराया। भाड़ा। २. वेश्या की भाजी।-तुलसी (शब्द) । (ग) पौर मल्ल मारे शल तो- कमाई [को॰] । शल बहुत गए सब भाज । मल्ल युद्ध हरि करि गोपन सों लखि फूले ब्रजराज । —सूर (शब्द॰) । (घ) भाल लाल बेंदी भाटिया-संज्ञा पुं० [सं० भट्ट] एक उपजाति जो गुजरात में रहती है। इस जाति के लोग अपने को क्षत्रियों के अंतर्गत मानते हैं। ललन पाखत रहै विराजि । इंदु कला कुज में बसी मनौं राह पंजाबियों में भी 'भाटिया' नाम की एक उपजाति है। भय भाजि ।-बिहारी (शब्द०)। भाटी-संज्ञा पुं॰ [ देश०] क्षत्रिय जाति की एक शाखा का नाम । भाजित-वि० [सं०] १. जिसको दूसरी संख्या से भाग दिया उ०-फुरमान गए जैसलमेर । भेम्या सब भाटी भए गया हो । २. जो अलग किया गया हो । विभक्त । ( जेर। पृ० रा० १४२३ । भाजी-संज्ञा स्त्री॰ [ स०] १. भांग । पीच । २. तरकारी, साग विशेष-राजपूतों की एक जाति जो ईस्वी सन् १४ में गजनी से प्राई और पंजाब में बसी तथा वहां से हटकर राजपूताना प्रादि । उ०- -(क) तुम तो तीन लोक के ठाकुर तुमते कहा दुराइय। हम तो प्रेम प्रीति के गाहक भाजी क चखाइय ।—सूर (शब्द॰) । (ख) मीठे तेल चना की भाजी । भाटयौल-संज्ञा पुं० [हिं० भट ] भाट का काम। भटई । यश- एक मकूनी दै मोहिं साजी ।—सूर (शब्द॰) । ३. मेथी। कीर्तन । उ०—कहूँ भाट भाटयो कर मान पावै । कहूँ लोलिनी बेड़िनी गीत गावै ।-केशव (शब्द०)। भाजी २-सञ्ज्ञा पुं० [सं० भाजिन् ] सेवक । भृत्य । नौकर । भाठा-संज्ञा स्त्री० [हिं० भाठना चा भरना ] १. वह मिट्टी जो नदी भाजी-वि० [सं० भाजिन् ] भाग लेनेवाला । शरीक होनेवाला । अपने साथ चढ़ाव में बहाकर लाती है और उतार के समय संबद्ध। कछार में ले जाती है। यह मिट्टी तह के रूप में भूमि पर भाज्य-संज्ञा पुं० सं०] वह अंक जिसे भाजक पंक से भाग दिया जम जाती है और खाद का काम देती है। २. दे० 'भाट- जाता है। १ भौर ३' । ३. धारा । बहाव । भाज्य–वि० विभाग करने के योग्य । भाठा--संज्ञा पुं० [हिं० भाठ ] १. दे० 'भाटा' । २. गर्त | गड्ढा । भाट'-संज्ञा पु० [सं० भट ] [ स्त्री० भाटिन ] १. राजामों का यश ३. पत्थर । प्रस्तर । उ०-प्रन दिन उण री प्राथ ज्यू अटो वर्णन करनेवाला कवि । चारण | बंदी। उ०-सुभग द्वार भाटो देर ।-बांकी० ग्र, भा२, पृ० ३४ । सब पुलिस कपाटा । भूप भीर नठ मागध भाटा ।-तुलसी भाठी-संज्ञा स्त्री० [हिं० भाठा ] पानी का उतार । भाटा । (शब्द०) । २. एक जाति का नाम । ३०-चलो लोहारिन भाठीg२-- संज्ञा स्त्री० [सं० भनी] १. भट्ठी । उ०-भवन मोदि बांकी नैना। भाटिन चली मधुर अति बैना।-जायसी भाठी सम लागत मरति सोच ही सोचन । ऐसी गति मेरी तुम (शब्द०)। मागे करत कहा जिय दोचन |-सूर (शब्द०)। २. वह स्थान जहाँ मद्य चुलाया जाता है । भट्ठी। उ०-कबिरा विशेष-इस जाति के लोग राजामों के यश का वर्णन और भाठी प्रेम की, बहुतक बैठे प्राय । सिर सौंपे सो पीवही और कविता करते हैं। यह लोग ब्राह्मण के अंतर्गत माने और पै पिया न जाय ।-कबीर (शब्द०)। दसौधी आदि के नाम से पुकारे जाते हैं। इस जाति की भनेक शाखाएं उत्तरीय भारत मे बंगाल से पंजाब तक फैली भाड़-संज्ञा पु० [ सं० भ्राष्ट्र, पा० भट्टो ] भड़भुजों की भट्ठी जिसमें वे अनाज भूनने के लिये वाल गरम करते हैं। में बसी।