पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/४०२

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भादों ३६४१ भाना विशेप-यह चमड़े की होती है जो फैलती पौर सिकुड़ती है। भंग करना । उ०—(क) तीन लोक मह जे भट मानी । सब जव इसमें वायु भरना होता है, तो इसे खीचकर फैलाते हैं कै सकति शंभु धनु भानी । - तुलसी (शब्द०) । (ख) प्रापुहि और फिर दबाकर इसमें से वायु निकालते हैं। वायु एक करता प्रापुहि धरता आपु बनावत प्रापुहि भाने । ऐसो सूरदास छोटे छेद वा नली से होकर भट्ठी में पहुँचती है जिससे पाग के स्वामी ते गोपिन के हाय विकाने । —सूर (शब्द०)। (ग) सुलगती है। सहसु बाहु अति बली बखान्यो । परशुराम ताको बल भान्यो । भादौ-संज्ञा पुं० [सं० भाद्रपद, भ दअश्र, भादउँ, भादों पा० भद्दो] -लल्लू (शब्द०)। २. नष्ट करना। नाश करना। एक महीने का नाम जो वर्षा ऋतु में पड़ता है। इस महीने मिटाना । ध्वंस करना । उ० -(क) प्रारत दीन अनाथन की पूर्णमासी के दिन चंद्रमा भाद्रपदा नक्षत्र में रहता है । को हित मानत लौकिक कानि हो। है परिनाम भलो तुलसी सावन के बाद और कुपार के पहले का महीना । उ०-बरषा को सरनागत भा भानिहो । -तुलसी (शब्द०)। (ख) ऋतु रघुपति भगति तुलसी शालि सुदास । राम नाम वर माने मठ कूप वाय सरवर को पानी । गौरीकंत पूजत जहैं नव- बरन जुग सावन भादों मास —तुलसी (शब्द०)। तन दल पानी । तुलसी (शब्द०)। (ग ) जै जै जै पर्या-भाद्र । भाद्रपद । प्रौष्ठपद । नभस्थ । जगदीस तूतू' समर्थ साई । सकल भवन भानै घडै दूजा को भादौ@-संज्ञा पुं॰ [ सं० भाद्र ] ३० भादों'। नाही ।-दादू०, पृ० ५५० । ३. हटाना । दूर करना । उ०- भाद्र-संज्ञा पु० [सं० ] एक महीने का नाम जो वर्षाऋतु में सावन ( क ) ढोटा एक भए कसेहु करि, कौन कौन करवर विधि भानी। कर्मम करि पालो उबरयो ताको मारि पितर दे और कुमार के बीच में पड़ता है। इस महीने की पूर्णमासी को दिन चंद्रमा भाद्रपदा नक्षत्र में रहता है। वैदिक काल में पानी । —सूर (शब्द०)। (ख) नाक मे पिनाक मिसि इस महीने का नाम नभस्य था। इसे प्रौष्ठपद भी कहते हैं। बामता विलोकि राम रोको परलोक लीक भारी भ्रम भाद्रपद | भादों। भानिक ।-तुलसी (शब्द०)। (ग ) मो सों मिलवति भाद्रपद-संज्ञा पुं० [सं०] १. भाद्र । भादों। २. बृहस्पति के एक चातुरी तू नहिं भानत भेद । हे देत यह प्रगट ही प्रगट्यो वर्ष का नाम जब वह पूर्व भाद्रपदा वा उत्तर भाद्रपदा में पूस प्रस्वेद ।-बिहारी (शब्द०)। ४. काटना । उ०- उदय होता है। (क) अति ही भई अवज्ञा जानी चक्र सुदर्शन मान्यो । करि भाद्रपदा-संज्ञा दी० [सं०] एक नक्षत्रपुरेज का नाम । निज भाव एक कुश तनु में क्षणक दुष्ट शिर भान्यो।-सूर विशेष-इसके दो भाग किए गए हैं-पूर्वा भाद्रपदा और उत्तरा (, शब्द )। (ख) अजहँ सिय सीपु नतरु बीस भुजा भाने । रघुपति यह पैज करी भूतल धरि प्रानै । -सुर (शब्द०)। भाद्रपदा । पूर्वा भाद्रपदा यमल प्राकृति की है। यह उत्तर ओर अक्षाण से २४° पर है और इसमें दो तारे हैं। उत्तरा भानना-क्रि० स० [स० भान ( = प्रतीति), हिं०भान+ ना(प्रत्य॰)] भाद्रपदा की प्राकृति शय्या के प्राकार की है और यह अक्षांश समझना । भनुमान, करना । जानना । उ०-भूत अपंची कृत से ३६° उत्तर प्रोर है। इसमें भी दो तारे हैं। पूर्वा भाद्रपदा श्रो कारज, इतनी सूछम सृष्टि पछान । पंचीकृत भूतन ते का देवता अजएकपात् पौर उत्तरा भाद्रपदा का अहिर्बुध्न्य उपजेउ थुल पसारो सारो मान । कारण सूछम थूल देह अरु, है। पहली कुंभ राशि में और दूसरी मीन में मानी जाती है। पंचकोश इनहीं में जान । करि विवेक लखि पातम न्यारो, भाद्रपदी-सज्ञा स्त्री० [सं०] भादो महीने की पूर्णिमा । भाद्री [को०] । मूज इा काते ज्यों भान । निश्चलदास (शब्द०)। भाद्रमातुर-संज्ञा पु० [सं०] भद्रमाता अर्थात् सती का पुत्र | वह भानमती-संज्ञा बी० [सं० भानुमती ] वह नदी जो जादू का खेल जिसकी माता सती हो। करती हो। लाग का खेल करनेवाली स्त्री। जादुगरनी । उ०- भाद्री-संज्ञा ली० [सं० ] दे॰ 'भाद्रपदी'। जब वह भानमती का पेटारा खोल देता है तव सव कौतुक प्रगट होने लगते हैं। कबीर मं०, पृ० ३३८ । भान'-~सभा पु० [सं०] १. प्रकाश । रोशनी। २. दीप्ति । चमक । ३. ज्ञान । ४. प्रतीति । पाभास । उ०-बाटिका उजारि अक्ष मुहा०--भानमती का कुनया = बेमेल उपादानों से बनी वस्तु । धारि मारि जारि गढ़ मानुकूल भानु को प्रताप भानु भान भानमती का पिटारा = जिसमें तरह तरह की चीजें हों। सो-तुलसी (शब्द०)। भानव-वि० [सं०] भानु संबंधो । सूर्य संबंधी [को॰] । भान-संज्ञा पुं० [सं० भानु ] दे० 'भानु' । भानवी-संज्ञा स्त्री० [सं० भानवीया ] जमुना । उ॰—देवी कोउ भान-संज्ञा पु० [ देश० ] तुग नामक वृक्ष । दे० 'तुग' । दानवी न मान हान होइ ऐसी, भानवी नहाव भाव भारती भानजा-सज्ञा पु० [हिं० बहिन+जा ] [ स्रो० भानजी ] बहिन का पठाई है ।-केशव । ( शब्द०)। लड़का । उ०-यह कन्या तेरी भानजी है । इसे मत मार - भानवीय-वि० [सं०] भानु संबंधी । लल्ल (शब्द०)। भानवीय-संज्ञा पुं० दाहिनी आँख । भानना@:--क्रि० स० [स० भञ्जन, मि० पं० भन्नना] १. तोड़ना । भाना@-क्रि० स० [सं० भान (= ज्ञान )] १. जान पड़ना। ७-४६ ---