पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/४१९

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भिड़न ३६५८ भिनभिनाहट नजदीक होना। सटना। ४ प्रसंग करना। भैथुन करना। भित्तिचौर-संज्ञा पुं० [सं०] घोर जो दीवार में सेंध लगाकर (वाजारू)। चोरी करे। संयो.क्रि०-जाना-पड़ना। भित्तिपातन-संज्ञा पुं० [सं०] १. चूहा । मूषक । २. एक प्रकार का बड़ा चूहा [को०)। भिड़ज-सज्ञा पु० [हिं० भिड़ना ? ] १. शूर । वीर पुरुष । २ घोडा। अश्व । (डि.)। उ०-भिल चहुर मृचा भुहर भिद-संज्ञा पुं॰ [सं० भिद् ] भेद । अंदर । उ०—(क) सम सरूप भर वज पखर गूघर भिडज वर -रघु० रू०, पृ० २१६ । के माहिं जहाँ समरू जु निकर। सो सारूप्य निबध नाहि (ख) भिड़ज वारण रयां भारी, तडी सारी हुई त्यागे, भिद पहिलो उफरै ।-मतिराम (शब्द॰) । (ख) मोक्ष काम सजे सावंत सूर ।-रघु० रू०, पृ० ११७ । गुरु शिष्य लखि ताको साधन ज्ञान | वेद उक्त भाषण लगे भिड़ज्जाँ-संज्ञा पुं॰ [ ? ] घोड़ा (डि०) । जीव ब्रह्म भिद भान'।-निश्चल (शब्द॰) । भिदफ-सज्ञा पु० [ स०] १. असि । तलवार । २. वन। ३. भिड़हा-मा पु० [स० वृक हिं० भेडिया ] दे० 'भेड़िया' । उ०- हीरा [को०] । वृक पावक को कहत कवि, वृक भिडिहा को नाम । बृक दानव दलि देव शिव, राखे सुंदर स्याम ।- नद० प्र०. पृ० ६० । भिदना-कि० अ० [ स० भिद् ] १. पैवस्त होना। धस जाना । घस जाना । २. छेदा जाना। ३. घायल होना। उ.-बन भित-संज्ञा स्त्री० [सं० भित, हिं० भीत] दीवार । भीत । उ०- सरिम वर वान, हन्यो स्वहि रिपुदमन पुनि । मिदि तासो देखि भवन भित लिखल भुजगपति जसु मने परम तरासे । बलवान, कियो क्रोध सिय पुत्र प्रति । -श्यामविहारी -विद्यापति, पृ० ३३७ । (शब्द०)। भितरिया-वि० [हिं०] १. अंतरंग। भीतर माने जानेवाला । भिदा-सज्ञा स्त्री० [सं०] १. टूटना । फटना। २. पार्थक्य । २. (पुजारी) वल्लभकुल के मंदिरों के भीतर रहनेवाला। प्रलगाव। ३ किस्म | भेद । प्रकार। ४ धान्यक या भितल्ला'-संज्ञा पुं० [हिं० भीतरी+तल ] दोहरे कपड़े में भीतरी जीरा (को॰) । पोर का पल्ला । कपड़े के भीतर का परत । अस्तर । भिदि, भिदिर, भिदु-सञ्ज्ञा पु० [स] इंद्र का वज्र को०] । भितल्ला-वि० भीतर का । अंदर का । भिदुर'-सञ्ज्ञा पुं० [म.] १. वज्र । उ०-प्रशनि कुलिस पवि भिदुर भितल्ली-संज्ञा स्त्री० [हिं० भीतरी+तल] चक्की के नीचे का पाट । पुनि वज्र हादिनी प्राहिं । —नंददास (शब्द०)। २. भिदना । भिताना-क्रि० स० [स० भीति ] डरना। भयभीत होना । फटना । ३. नष्ट होना। ४. पाकर का पेड़ । ५. हाथी के खौफ खाना । उ०- (क) जानि के जोर करो परिनाम पैर का सिक्कड। तुम्है पद्धतेही पै मैं न मितहों। -तुलसी (शब्द०) । (ख) ही भिदुर'-वि० १. भेदने या छेदनेवाला । २. जो आसानी से टूट सनाथ वही सही तुमहु अनाथ पति जो लघुतहिं न मितेही । जाय । तनुक । ३. मिश्रित । मिला जुला [को०] । -तुलसी (शब्द०)। भिदेलिम-वि० [सं० प्रासानी से टूट जानेकाला [को०] । भित्त-संज्ञा पु० [सं०] १. टुकड़ा । शकल । खंड । २. घंश । भाग । भिद्य–वि० [सं०] भेदनीय । ३. दीवाल । भित्ति (को० । भिद्य-ज्ञा पु० तीव्र प्रवाह द्वारा कगारों को काटने हुए बहने- भित्ति--संशा स्त्री० [सं०] १. दीवार । भीत । २. अंश । विभाग । वाला नद। हिम्सा (को०)। ३. कोई टूटी वस्तु (को०)। ४. चटाई। भिद्र-शा पुं० [सं०] वन्न । नरकुल के सीक की चटाई (को०)। ५. दोष । त्रुटि (को०)। भिनकना-क्रि० प्र० [अनु० ] १. भिन भिन शब्द करना । १. मोका । अवसर (को०)। ७. डर । भय । भीति । ८. (मक्खियों का)। खंड । टुकड़ा। (डिं०)। ह.चित्र खीचने का प्राधार । यह पदार्थ जिसपर चित्र बनाया जाय । मुहा०-किसी पर मक्खियाँ भिनकना = (१) किसी का इतना १०. भेदन । अशक्त हो जाना कि उमपर मक्खियाँ भिनभिनाया करें और तोड़ना (को०)। वह उन्हें उड़ा न सके । नितांत असमर्थ हो जाना । (२) भित्तिक-वि० [सं०] भेदन करने या तोड़नेवाला । बहुत गंदा होना । अत्यंत मलिन रहना । भित्तिक-संज्ञा पुं० दीवाल । भीत [को०] । २. किसी काम का अपूर्ण रह जाना । ३. घृणा उत्पन्न होना । भित्तिका- स्त्री० [स०] १. छिपकली जो भीत पर रहती है। जैसे,-प्रब तो उनकी सूरत देखकर जी भिनाता है। २. दीवाल । मीत को०)। भिनभिन-सञ्ज्ञा पुं० [अनु० ] मिन भिन की ध्वनि । भित्तिखातन-संज्ञा पुं० [स० ] चूहा । मूस [को०] । भिनभिनाना-कि० प्र० [अनु०] भिन भिन शन करना । भित्तिचित्र-नंग पुं० [स०] भीत पर बनी तसवीर । दीवार पर भिनभिनाहट-संज्ञा श्री० [ अनु० भिनभिनाना+श्राहट (प्रत्य॰)] वना चिय (को०)। भिनभिनाने की क्रिया या भाव ।