पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/४१८

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भिड़ना FO याचक। भिक्षाह ३६५७ भिताह-वि० [सं०] भिक्षा देने के योग्य । करना । पानी में इस प्रकार डुबाना जिसमें तर हो जाय । भिक्षाशन-रनी पु० [सं० ] भिक्षा में प्राप्त भोजन । गोला करना । भिगाना । जैसे,—यह दवा पानी में भिगो दो। भिक्षाशी-वि० [सं०] दे॰ 'भिक्षाजीवी'। संयो० कि०-ढालना-देना। भिक्षावास-संज्ञा पु० [सं० भिक्षावासस् ] भिखारी फा पहनाया । भिच्छा-शा श्री० [ मं० भिक्षा ] ३० 'भिक्षा 1 30-जोगी बार घाव सो जेहि मिच्या के मास ।-जायसी पं०, पु. ६५ भिक्षित-वि० [स०] भिक्षा मे मिला हुमा । याचना द्वारा प्राप्त (को०)। भिच्छु-संशा पु० [ भित्] - भि' । उ०-भिच्छु जानि भिती-वि० [स० भितिन् ] भीख मांगनेवाला। जानकी सु भीख को बुलाइयो ।केशव (शब्द०)। भिक्षु-सशा पु० [सं०] १. भीख मांगनेवाला । भिखारी । २. गोरख- भिच्छुक-अक्षा पुं० [ स० भिक्षुक ] दे० 'भिक्षु' । उ०-मपन मुडी । मुंडी। ३. संन्यासी। [स्त्री० भिक्षुणी] : ४. बौद्ध भिच्छुक भूप भए ।-भूपण ग्रं॰, पृ० २६७ । संन्यासी । भिजवना-क्रि० स० [हिं० भिगोना ] भिगोने में दूसरे को भितुफ'-प्रज्ञा पुं॰ [सं०] [ भिक्षुकी ] भिखमंगा | भिखारी । प्रवृत करना । पानी से तर कराना। उ०-(क) सर सरोज प्रफुलित निरखि हिय लखि अघि अधीर । भिजवति भिनुक--वि० [सं० ] भोख गगनेवाला । से मजुल फरनि भरि भरि घंजलि नीर । -प्रताप कवि भिक्षुचर्या-संश स्त्री० [स०] भिक्षावृत्ति [को०)। (शब्द०)। (ख) बिननी सुनि सानद हेरि हाँस करुना बारि भूमि भिजई है । —तुलसी (शब्द०)। भिक्षुणी-तच्या मी० [ ] बौद्ध मंन्यासिनी। भिक्षुरूप-सा पु० [ सं०] महादेव । भिजवाना-क्रि० स० [हिं० भेजना का प्रे०रूप] किसी को भेजने में प्रवृत करना । भेजने का काम दूसरे से कराना। भिक्षुसंघ-संज्ञा पुं० [ स० भिक्षुसद्ध ] बौद्ध भिक्षुषों का संघ । जैसे,—(क) जरा अपने नौकर से यह पत्र भिजवा भिक्षुसंघाती-सज्ञा स्त्री॰ [ स० भिक्षुसङ बात ] चीवर । दीजिए । ( ख ) उन्होंने सब रूपया भिजवा दिया है। भिक्षुसूत्र-पञ्ज्ञा पु० [स०] भिक्षुषों के लिये नियमो का संग्रह। भिजवावरी-संशा स्त्री० [ देश० ] दे० 'भजियाउर' । भिखमंगा-संशा पु० [हिं० भीख + माँगना ] [ मी० भिखमंगन, भिजाना-कि स० [सं० अभ्यञ्ज ] भिगोना। तर करना । मिखमंगिन] जो भीख मांगे । भिखारी । भिक्षुरु । उ० गीला करना । 30-मुख पखारि मुहर भिजे सोस मजल हो पदमावत्ति कर भिखमगा। दिस्टि न भाव समुद भी कर छ वाइ । मौरि उचे बूटेनि ने नारि सरोवर न्हाइ ।- गंगा । —जायसी , पृ० २१७ । विहारी ( शन्द०)। भिखार~-संज्ञा पु० [हिं० भोख +पार ( प्रत्य० ) ] भीख मांगने भिजाना-क्रि० स० [हिं० भेजना ] ३० भिजवाना' । वाला । जो भीख मांगे । भिक्षु । भिजोना, भिजोवना-श्र० स० [हिं० भिगोना ] दे० भिगोना' । भिखारी-पंज्ञा पुं० [हिं० ] भिक्षुक । भिखारी। भिज्ञ-वि० [ सं० अभिज्ञ या विज्ञ ] जानकार | वाकिफ । भिखारिणी-संज्ञा स्त्री० [हिं० भिखारी] वह स्त्री जो भिक्षा मांगे। भिटका-सञ्ज्ञा पु० [हिं० भीटा] वमीठा । वामी । मीख मांगनेवाली बी। भिटना-संज्ञा पुं० [देश॰] छोटा गोल फल । जैसे, कपास का भिखारिन, भिखारिनी-शा सी० [हिं० भिखारिणी'। भिखारी-सक्षा पु० [हिं० भीख+ श्रारी (प्रत्य॰)] [ सी० भिटनी-पशा स्त्री० [हिं० भिटना ] स्तन के प्रागे का भाग। भिखारिणी, भिखारिन, भिखारिनी] भीख मांगनेवाला कुचाग्र । चूची। चूवुक । व्यक्ति । भिक्षुरु । भिखमंगा। भिटाना:-क्रि० स० [ देखी भिट ( = भेटना)] दे० 'गेंटाना' । भिखारी-वि० जिसके पास कुछ न हो । कगाल । भिट्टि-सभा सी० [ देशी ] दे० 'मेंट'। उ०-करिय भिट्टि मन भिखिया -संज्ञा श्री [H० भिक्षा ] दे० 'भिक्षा'। मोद बढ़ाइय |-१० रासो, पृ० १५५ । मिखियारो-संज्ञा पुं० [हिं० भीख ] दे० 'भिखारी'। भिड़त-संश सी॰ [ देशी भिड, भिड़त ] भिड़ने की स्थिति, भिख्या - त्री० [ स० भिता ] ६० 'भिक्षा' । उ०-तुम्ह जोगी क्रिया या भाव। वैरागी कहत न मानहु कोहु । मौगि लेहु कछु भिख्या सेलि भिड़-जमा सी० [हिं० वरै ] वर । ततैया । प्रनत कई हो।-जायसी० ग्रं० (गुम), पु० २६७ । भिड़ना-कि० अ० [हिं० भद अनु० ? ] १. एक पीज का भिगाना-क्रि० स० [हिं०] दे० 'भिगोना'। वदकर दूसरी चीज से टक्कर साना । टकराना। २. लड़ना । भिगोना-कि० स० [सं० अभ्यञ्ज ] किसी चीज को पानी से तर झगड़ना । लदाई करना । ३. समीप पहुंचना । पास पहुँचना । भिटना।