पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/४२४

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भीतरी टाँग ३६६३ भीम' जातियाँ कितनी मुई। तब हुमा क्या बाहरी अखेि बचे, जब कि आँखें भीतरी अधी हुई।-चुभते०, पृ० ४६ । २. छिरा हा । गुप्त । जैसे,-भीतरी बात, भीतरी वैमनस्य । ३. दे० 'भीतरी टोग'। भोतरी टाँग-संज्ञा स्त्री० [हिं० भीतरी+टाँग] कुश्ती का एक पेंच । विशेप-जब शत्रु पीठ पर रहता है, तब मौका पाकर खिलाडी भीतर से ही टांग मारकर विपक्षी को गिराता है। इसी को भोतरी टांग कहते हैं। भीति-सज्ञा सी० [सं०] १. डर। भय। खाफ। उ०- वानरेंद्र व यों हंसि बोल्यो। भौति भेद जिय को सब खोल्यो। केशव (शब्द०)। २. कंप। भीति-पज्ञा स्त्री॰ [मं० भित्ति हिं० भीत] दीवार । उ०-रही मिलि भोति पै सभोति लोक लाज भोजी ।-घनानंद, पृ० २०७ । भीतिकर-वि० [सं०] भयंकर । भयावना | डगवना । भीतिकारी-वि० [सं० भीतिकारिन् ] भयानक । डरावना । भया- वना । खौफनाक। भीतिच्छिद्- वि० [सं०] भय को दूर करने वाला [को०] । भीती-संज्ञा स्त्री॰ [सा भित्ति ] दीवार । उ०—परम प्रेम मय मदु मसि कीनी। चारु चित्त भोती लिखि दीनी।-तुलसी (शब्द०)। भीती-संज्ञा स्त्री० [सं० भौति ] डर। भय । उ०-चंद्र की दुति गई पहें पीरी भई सकुच नाही दई अति ही भंती।-सूर (शब्द०)। भीती-संज्ञा स्त्री० [सं० कार्तिकेय की एफ अनुचरी या मातृका का नाम। भोन+-सज्ञा पु॰ [हिं० बिहान ] सवेग। प्रात.काल । उ०- काहू सो न कहो यह गहो मन माँझ एरी तेरी सो मुनगी जो पै पात रहे भोन है ।-प्रियादास (शब्द॰) । भीनना-क्रि० अ० [हिं० भींगना] भर जाना । समा जाना । पैवस्त हो जाना । जैसे,-जहर रग रग मे में न गया है। उ०-(क) कौन ठगौरी भरी हरि प्राजु बजाइ है वासुरिया रंगभीनी । -रसखान (शब्द०)। (ख) रुकमिनि असुवन भीनी पुनि हरि सुवन भीनी ।-नद. J०, पृ० २०५। भीना-संज्ञा स्त्री॰ [ भिन्न ] भिन्नता । अलगाव । उ-मैं हूँ जीव करम बहु कीना। कैसे, यम सो करि हो भीना। -बीर सा०, पृ० ५४६ । भीनी-वि० [हिं० भींगना] १. प्राई। सिक्त । २. हल्ली और मीठी (खुशबू) । जैसे,—कैसी भीनी भीनी खुशबू पा रही है । भीमंग-वि० [सं० भीमाङ्ग] भयंकर अगवाला । भयस्वरूप । उ०- जनु कि भीम भामग दत दंतीय उछारन । जनु कि गलगज्जि बज्जि पनग गरुड़ बहु पारन ।-पृ० रा०, ८/३१ । भीम-सवा पु०॥ ] १. भयानक रस । २. शिव । ३. विष्णु। ३. अम्लवेत । ५. महादेव की आठ मूर्तियों के अंतर्गत एक मूत्ति । ६. एक गंधर्व का नाम । ७. पांचो पांडवों में से एक जो वायु के संयोग से कुती के गर्भ से उत्पन्न हुए थे। (जन्मकथा के लिये दे० 'पाडु') । विशेष-ये युधिष्ठिर से छोटे और अर्जुन से बड़े थे । ये बहुत बड़े वीर भोर बलवान् ये। कहते हैं, जन्म के समय जब ये माता की गोद से गिरे थे, तब पत्थर टूटकर टुकड़े टुकड़े हो गया था। इनका और दुर्योधन का जन्म एक ही दिन हुआ था । इन्हे बहुत बलवान देखकर दुर्योधन ने ईष्या के कारण एक बार इन्हे विष खिला दिया था और इनके बेहोश हो जाने पर लताओं प्रादि से बांधकर इन्हे जल में फेंक दिया था । जल में नागों के उसने के कारण इनका पहला विष उतर गया और नागराज ने इन्हे अमृत पिलाकर और इनमें दस हजार हाथियो का बल उत्पन्न कराके घर भेज दिया था। घर पहुंचकर इन्होंने दुर्योधन की दुष्टता का हाल सबसे कहा । पर युधिष्ठिर ने इन्हे मना कर दिया कि यह बात किसी से मत कहना; और अपने प्राणों की रक्षा के लिये सदा बहुत सचेत रहना । इसके उपरांत फिर कई बार कर्ण और शनि की सहायता से दुर्भाधन ने इनकी हत्या करने का विचार किया पर उसे सफलता न हुई । गदायुद्ध में भीम पारगत थे। जब दुर्योवन ने जतुगृह में पाडवों को जलाना चाहा था, तब भीम ही पहले से समाचार पाकर माता और भाइयो को साथ लेकर वहां से हट गए थे। जगल में जाने पर हिडिब की बहन हिडिंबा इनपर प्रासक्त हो गई थी। उस समय इन्होंने हिडिंब को युद्ध मे मार डाला था और भाई तथा माता की प्राज्ञा से हिडिबा से विवाह कर लिया था। इसके गर्भ से इन्हें घटोत्कच नाम का एक पुत्र गी हुआ था। युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ के समय ये पूर्व और वंग देश त दिग्विजय के लिये गए थे और अनेक देशों तथा राजानों पर विजयी हुए थे। जिस समय दुर्योधन ने जूए में द्रौपदी को जीतकर भरी सभा में उसका अपमान किया था, और उसे अपनी जांघ पर बैठाना चाहा था; उस समय इन्होने प्रतिज्ञा की थी कि मैं दुर्योधन की यह जांच तोड डालूगा और दुःशासन से लड़कर उसका रक्तपान करूंगा। बनवास में इन्होंने अनेक जगली राक्षसों और असुरों को मारा था । अज्ञातवास के समय ये वल्लभ नाम से सूरकार बनकर विराट के घर में रहे थे। जब कीचक ने द्रौपदी से छेडछाड़ की थी, तब उसे भा इन्होने मारा था। महाभारत युद्ध के समय कुरुक्षेत्र मे इन्होने अपनी प्रतिज्ञा का पालन किया था। दुर्जेवन के सब भाइयों को मारकर दुर्योधन की जांघ तोडी थी और दु शासन की भुजा तोडकर उसका रक्त पीया था। महाप्रस्थान के समय भी ये युधिष्ठिर के साथ थे और सहदेव, नकुल तथा अर्जुन तीनो के मर जाने के उपरांत इनकी मृत्यु हुई थी। भीमसेन, वृकोदर प्रादि इनफे नाम हैं। मुहा०-भीम के हाथी - भीमसेन के फेंकें हुए हाथी । विशेप-कहा जाता है, एक बार भीमसेन ने सात हाथी प्राकाश मे फेंक दिए थे जो आज तक वायुमंडल में ही घूमते मा स०