पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/४३१

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मुंच ३६७० मुंजगपति विशेष-इस सन्निपात में रोगी की पोखें टेढ़ी हो जाती हैं । भुजंगा-सञ्चा पु० [हिं० भुजंग] १. काले रंग का एक प्रसिद्ध इस रोग में रोगी का ज्वर अधिक बढ़ जाता है, उन्माद के पक्षी । भुजंटा। कोतवाल । कारण वह बक झक करता है और उसके अवयवो मे सूजन विशेष—इसकी लबाई प्रायः डेढ़ बालिश्त होती है। यह कीड़े या जाती है। यह असाध्य रोग है और इसकी अवधि शास्त्रों मको खाता है और बड़ा ढोठ होता है। यह भारत, चीन में पाठ दिन कही गई है। मोर श्याम देश मे पाया जाता है । यह प्रातःकाल बोलता भुच्च-वि० [हिं० भुच्चड़ ] दे० 'भुच्चड़' । है और इसकी बोली सुहावनी लगती है। यह एक वार भुच्चड़-वि० [हिं० भूत+चढ़ना ] जो समझाने पर भी न समझता में चार पडे देता है। इसकी अनेक अवातर उपजातियाँ हो । मुख । वेवकूफ । होती है; जैसे, केशराज, कृष्ण राज इत्यादि । भुजंग-सञ्ज्ञा पु० [ स० भुजङ्ग] १. सांप । २. स्त्री का यार । जार । २. दे० 'भुजग'। ३. राजा का एक पाश्ववर्ती अनुचर । विदूपक । ४. सीसा भुजंगाक्षी-सधा स्त्री॰ [सं० भुजङ्गाती ] रास्ना। नामक धातु । ५. पति । खाविंद (को०)। ६. पाश्लेषा नक्षत्र भुजंगाख्य-मझा पु० [ स० भुजङ्गाख्य ] नागकेशर । (को०) । ७. पाठ की संख्या (को०) । भुजंगिनी-सज्ञा स्त्री॰ [ स० भुजङ्गिनी ] १. गोपाल नामक छद का भजगघातिनी-सञ्ज्ञा ता. [ स० भुजङ्गघातिनो] काकोली । दूसरा नाम । २. सांपिन । नागिन । भुजंगजिह्वा-सज्ञा स्त्री० [सं० भुजङ्गजिह्वा ] महासमंगा । भुजगी-संज्ञा स्त्री० [ स०] १. सापिन । नागिन । २. एक वणिक कंगहिया । वृत्ति का नाम जिसके प्रत्येक चरण मे ग्यारह वर्ण होते हैं भुजंगदमनी 1-सञ्ज्ञा स्त्री० [स० भुजङ्गदमनी ] नाकुली कंद । जिनमे पहले तीन यगण प्राते है पोर अंत मे एक लघु भुजंगपर्णी-संज्ञा स्त्री० [ म० भुजङ्गपर्णी ] नागदमनी । और एक गुरु रहता है। भुजंगपुष्प-सञ्ज्ञा पु० [ सं० भुजङ्गपुष्प ] १. एक फूल के पेड़ का भुजगेरित-शा पु० [ स० भुजङ्गेरित ] एक छद का नाम । नाम । २. सुश्रुत के अनुसार एक क्षु का नाम । भुजंगेश-सञ्चा पु० [स० भुजङ्गश ] १. वासुकि । २. शेष । ३. भुजंगप्रयात-सज्ञा पु० [ स० भुजङ्गप्रयात ] एक वणिक छंद जिसके पिंगल मुनि का नाम । ४. पतंजलि का एक नाम । प्रत्येक चरण में बारह वण होते है, जिनमें पहला, चौथा, भुज-संञ्चा पु० [ स०] १. वाहु । बाह । सातवां और दसवां वर्ण लघु और शेष गुरु होते हैं; अथवा प्रत्येक चरण चार यगण का होता है । उ०—कहूँ शोभना सुहा०-भुज में भरना = प्रालिंगन करना । अक भरना । गले दुदभी दीह वाजै । कहूँ भीम भकार कर्नाल साजे । कहूं लगाना । उ०—कहा वात कहि पियहि जगाऊं । कसे भुज सुदरी वेनु बीना बजावै । कहूँ किन्नरी किन्नरी लय सुनावै । भरि कठ लगाऊँ। -(शब्द०)। २. हाथ । ३. हाथी का सूड। ४. शाखा । डाली। ५. प्रात । भुजंगभुज-तज्ञा पु० [सं० भुजङ्गभुज् ] १. गरुड़ । २. मयूर । किनारा । मेड़। ६. लपेट । फेंटा। ७. ज्यामिति या रेखा- भुजंगभोगी-सञ्ज्ञा पु० [ स० भुजङ्गभोगिन् ] दे० 'भुजगभोजी' । गणित के अनुसार किसी क्षेत्र का किनारा वा किनारे को रेखा । भुजंगभोजी-सञ्चा पु० [स० भुजङ्गभोजिन् ] [स्त्री० भुजंग- यौ०-द्विभुज । त्रिभुज । चतुर्भुज, इत्यादि । भोजिनी] १. गरुड़ । २. मयूर । मोर । ८. त्रिभुज का प्राधार । ६. छाया का मूल वा माधार । १०. भुजंगम-ज्ञा पु० [ सं० भुजङ्गम ] [बी० भुजंगमी (सपिणी)] समकोणो का पूरक कोण । ११. दो की संख्या का बोषक १. साप । २. सीसा । ३. राहु (को०)। ४. अश्लेषा नक्षत्र शब्दस केत । १२. ज्योतिषशास्त्र के अनुसार तीन राशियो (को०) । ५. पाठ की संख्या (को०)। के अतर्गत ग्रहो की स्थिति वा खगोल का वह अंश जो तीन भुजंगलना-सञ्ज्ञा स्त्री० [सं० भुजङ्गलता ] पान की बेल । राशि से कम हो। ताबूली [को०] । भुजंगविजृ भित-मश पु० [ स० ] एक वणिक छंद जिसके प्रत्येक भुजइला-संज्ञा पु० [हिं० भुजंगा ] भुजगा नामक पक्षी । चरण में २६ वणं इस क्रम से होते हैं -प्रादि मे दो मगण, भुजकोटर-सञ्ज्ञा पु० [सं०] बगल । काख । फिर एक तगण, तीन नगण, फिर रगण, सगण मोर अंत में भुजग-सज्ञा पु० [सं०] १. साप । २. अश्लेषा नक्षत्र | ३. सीसा । एक लघु और एक गुरु । यौ०-भुजगदारण, भुजगभोजी = (१) गरुड़ । (२) मयूर । भुजंगशत्रु-सज्ञा पुं॰ [स० भुजङ्गशत्रु ] सापो का शत्रु-गरुड़ । मोर । (३) नेवला । भुजगपति । भुजगराज । भुजगवला भुजंगशिशु-सञ्ज्ञा पु० स० भुजङ्गशिशु 1 वृहती छद का एक सर्प का ककण। भेद (को० । भुजगनिमृता-संज्ञा स्त्री० [सं०] एक वणिक वृत्त का नाम जिसके भुजंगसंगता-सञ्चा श्री० [सं० भुजङ्गसङ्गता] एक वृत्त का नाम प्रत्येक चरण में नौ अक्षर होते हैं। जिनमें छटा, पाठवा जिसके प्रत्येक चरण में नौ नौ वर्ण होते हैं, जिनमे पहले और नवां अक्षर गुरु और शेष लघु होते हैं। सपण, मध्य मे जगण और अंत मे रगण होता है। भुजगपति-सञ्चा पु० [स०] वासुकि । मनत ।