पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/४३३

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बचाया था। भुजेल ३६७२ भुयग्गि भुजैल -संज्ञा पु० [ स० भुजङ्ग: हिं० भुजइल ] भुजंगा नामक पक्षी । भुनगा-संज्ञा पु० [ अनु० ] [ श्री भुनगी ] १. एक छोटा उड़ने उ.-वर पतग जरे श्री नागा। कोकिल भुजेल यो सब वाला कीड़ा जो प्रायः फूलो पोर फलो मे रहता है और कागा।-जा सी (शब्द०)। शिशिर ऋतु मे प्राय. उड़ता रहता है। २. कोई उड़नेवाला भुजीना 1-1. पु० [हिं० भूजना ] १. भुना हुआ अन्न । भूना । छोटा कीड़ा । पतिगा। ३. बहुत ही तुच्छ या निवल मनुष्य भूजा । भुजैना। उ०-फेर फेर तन कीन भुजौना। प्रोटि उ०-बड़ा जरार आदमी है। एक मुनगे के लिये इतने ररत रंग हिरदे प्रौना।—जायसी (शब्द०)। २. वह धन सवारो को लाना पड़ा।-फिसाना०, भा० ३, पृ० १०५ । या भन्न जो भूनने के बदले मे दिया जाय । भूनने की भुनगी- जा. [हिं० भुनगा ] एक छोटा कीड़ा जो ईख के मजदूरी। ३. वह इन जो रुपया या नोट आदि भुनाने के पोषों को हानि पहुंचाता है । बदले में दिया जाय। भुनना-क्रि० स० [हिं० भूनना ] १. भूनने का अकर्मक रूप । भुज्यु-सज्ञा पु० [ स०] १. भोजन । २. पात्र । ३. अग्नि | ४. यज्ञ भूना जाना। २. आग की गर्मी से पककर लाल होना। (को०) । ५. वैदिक काल के एक राजा का नाम । यह तुमु पकना । भुनना। को एक पुत्र था और अश्विनी ने इसे समुद्र मे डूबने से भुनना-त्रि० प्र० [स० भञ्जन ] भुनाने का अकर्मक रूप । रूपए आदि के बदले में अठन्नी, चवन्नी, पैसे प्रादि का मिलना । भुटिया-40 सी० [ देरा०] एक प्रकार को धारी जो डोरिए और मवयवी का अवयव में विभाजित वा परिणत होना। बड़े चारखाने के बुनने मे डाली जाती है । (जुलाहे) । सिके प्रादि का छोटे छोटे सिक्को में बदला जाना । भुट्टा-सज्ञा पु० [ म० भृष्ट, प्रा० भुट्टो ] १. मक्के की हरी बाल । भुनभुनाना-क्रि० स० [अनु०] १. भुन जुन शब्द करना । २. वि० दे० 'मा' । २. जुप्रार वा बाजरे की बाल । उ०-श्री किसी बिरोधी वा प्रतिकूल दबाव मे पड़कर मुंह से अव्यक्त कृष्ण चंद्र ने तिरछी कर एक हाथ ऐसा माग कि उसका सिर शब्द निकालना । मन ही मन कुढ़कर अस्पष्ट स्वर में कुछ गुट्टा सा उड गया ।- लल्लू (शब्द०)। ३. गुच्छा । घौद । कहना । वड़बड़ाना। उ०-कही पुखराजो की डडियो से पन्ने के पत्ते निकाल भुनवाई, भुनाई-संज्ञा स्त्री० [हिं० भुनवाना] १. भुनवाने की क्रिया मोतियो के भुट्ट लगाए हैं। -शिवप्रसाद ( शब्द०)। या भाव । २. वह धन जो भुनवाने के बदले में दिया जाय । भुठार-संद्धा पु० [हिं० भूड़ ] वह घोड़ा जो ऐसे प्रदेश में उत्पन्न भुनाई । भोज। हुआ हो जहाँ की भूमि बलुई वा रेतीली हो । भुनाना-क्रि० स० [हिं० भूनना } भूनने का प्रेरणार्थक रूप । भुठौर-संज्ञा पु० [हिं० भूड + ठौर ] घोडो की एक जाति जो गुज- दूसरे को भूनने के लिये प्रेरणा करना । रात आदि मरुस्थल देशो मे होती है। उ० - मुसकी श्री हिरमिजी इराकी । तुरकी कगी भुऔर बुनाकी | जासी भुनाना-क्रि० स० [ म० भञ्जन ] रुपए प्रादि को अठन्नी, चवन्नी आदि में परिणत करना । बड़े सिक प्रादि को छोटे (राब्द०)। भुडली-सज्ञा खा[ देश० ] एक प्रकार का फूल । सिकको पादि से बदलना। उ०—जो इक रतन भुनावं कोई । करे मोई जो सन महं होई । —जायसी (शब्द भुड़ारी-वज्ञा पुं० [हिं० भू+डालना] वह अन्न जो राशि के दाने पर बाल मे उठल के साथ लगा रहता है। लिडू ।। दोबरी । भुनुगा-या पु० [ अनु० ] दे० 'भुन गा'। पकूटी। चित्ती। भुन्नास 1- पु० [श०] पुरुष की इद्रिय । ( वाजा)। विशेप इस शब्द का प्रयोग प्रायः रबी की फसल के लिये भुन्नासी-ज्ञा पु० [देश॰] एक प्रकार का बड़ा देशी ताला जो प्रायः होता है। दूकानो आदि में बंद किया जाता है । भुतनी-पज्ञा स्त्री० [हिं० भूत ] भूतिन । भतिनी। भुविधु-संज्ञा स्त्री० [म० 'भू' शब्द का सप्तमी एकवचन रूप भुतहा -वि० [हिं० भून+हा (१९५०) ] [ वि० श्री. भुतही ] 'भुवि' ] पृथ्वी। भूमि । उ०—जो जनतेउ बिनु भट भुवि भत प्रेन संबंधी । भूत प्रेत यादि का । जैसे, भुतहा मकान, भाई । तो पन करि होते उन हँसाई । —तुलसी (शब्द०)। भुतही इमली। उ०-लोग उसे भुतहा जगल कहते है।- भुमिया - पुं० [ भूमि ] दे० 'भूमिया' । मैला०, पृ० ८। भुमुही-तज्ञा स्त्री० [सं० भ्र , प्रा० भमुह ] दे० 'भौह' । उ०–भुमुहां भुथरा-वि० [हिं० ] ३० 'भोथरा' । ऊरि सोहलो, परिठिउ जाणिक चग ।-ढोला०,दू० ४६५ । भुथराई --सा ली [हिं० भुथरा ] भोथरापन । भोथग होना । भुम्मिg -संज्ञा स्त्री॰ [ स० भूमि ] दे० 'भूमि'। उ०- राजा कर कुंद होना। उ०-पैने कटागि भोज मनोज के बानन बीच भल मानहिं भाई। जे हम कहें यह भुम्मि देखाई। —जायसी बिंधी भुथराई ।-घनानद, पृ० ११० । ग्र० (गुप्त) पृ० ३४५ । भुन-ज्ञा पु० [अनु॰] मक्खी प्रादि का शब्द । अध्यक्त गुजार भयग्गि-शा पो० ( स० भुजङ्ग, प्रा० भुअग्ग, भुयग्ग ] का शब्द। भुजगिनी। सपिणी । उ०-मोहण वेली मारुई पीधी नाग मुहा०-भुन भुन करना= कुढ़कर अस्पष्ट स्वर में कुछ कहना । भुयग्गि!-ढोला०, ६० ६०१ । GO