भूगंधा भूटानी' भृगंधा-मंग ली [सं० भूगन्धा ] मुरा नामक गंधद्रव्य । भूचक्र-संज्ञा पु० [ स०] १. पृथ्वी की परिधि । २. विपुवत् रेखा । भमर-संज्ञा पु० [ म०] विष । जहर । ३. अयनवृत्त । ४. क्रांतिवृत्त । भूगर्भ तशा पुं० [सं०] १. पृथ्वी का भोतरी भाग । २. विष्णु । भूचर-मक्षा पु० [सं०] १. शिव । महादेव । २. दीमक । ३. वह जो पृथ्वी पर रहता हो। भूमि पर रहने ताता प्राणो . ४. भूगभगृह-सज्ञा पु० [स०] तहखाना । तलघर । तंत्र के अनुसार एक प्रकार की सिद्धि । भूगर्भशास्त्र -संज्ञा पु० [सं०] वह शास्त्र जिसके द्वारा इस बात का ज्ञान होता है कि पृथ्वी का संघटन किस प्रकार हुमा है, विशेष-कहते हैं, यह सिद्धि प्राप्त हो जाने पर मनुष्य के लिये उसके ऊपरी पोर भीतरी भाग किन किन तत्वों के बने हैं, न तो कोई स्थान अगम्य रह जाता है, न कोई पदार्थ अप्राप्य उसका प्रारंभिक रूप क्या था और उसका वत्त मान विकसित रह जाता है और न कोई बात अप्रत्यक्ष रह जाती है। रूप किस प्रकार और किन कारणो से हुआ है। भूचरी- -सञ्चा सौ. [ स०] योगशास्त्रानुसार समाधि अग को एक विशेप-इसमें पृथ्वी की आदिम अवस्था से लेकर अब तक का मुद्रा जिसका निवास नाक में है और जिसके द्वारा प्राण और अपान वायु दोनों एकत्र हो जाती हैं। 30-दुसरी एक प्रकार का इतिहास होता है जो कई युगों में विमक्त होता मुद्रा भूवरी नासा जामु निवास । प्राण प्रधान जुड़ी जुदो करि है और जिनमें से प्रत्येक युग की कुछ विशेषताप्रो का विवेचन देव एक पास -विश्वास (शब्द०)। होता है। बड़ी बड़ी चट्टानो, पहाड़ों तथा मैदानों के भिन्न भिन्न स्तरो की परीक्षा इसके अंतर्गत होती है। और इसी भूचर्या- -सञ्ज्ञा स्त्री॰ [स०] १. पृथ्वी की छाया जिसे लोग राहु परीक्षा के द्वारा यह निश्चित होता है कि कौन सा स्तर या कहते हैं । २. घंधकार। भूभाग किस युग का बना है। इस शास्त्र मे इस बात का भो भूचाल-इंशा पु० [सं० भू+हिं० चाल (= चलना) ] भूकप । विवेचन होता है कि पृथ्वी पर जलवायु पोर वातावरण प्रादि भूडोर। का क्या प्रभाव पड़ता है। भूची 1-सभा पु० [ स० भूचर ] पृथ्वी पर निवास करनेवाला । दे० भूगृह-ज्ञा पु० [सं०] भूगर्भगृह । तहखाना [को०] । 'भूवर' । उ०-निसा एक रचा असो जंग धायो । पलं श्रोन षोचीन भूची अघायो।-पु० रा०, १२।३०६ । भगेह-संज्ञा पु० [स०] तहखाना । भूगोल -सशा पु० [सं०] १. पृथ्वी । २. वह शास्त्र जिसके द्वारा भूच्छाय-संज्ञा पुं० [सं०] १. दे० 'भूवर्या' । २. तम । पृथ्वी के कारी स्वरूप और उसके प्राकृतिक विभागों यादि भूच्छाया-संज्ञा स्त्री० [सं०] १. पृथिवी की छाया । भूचर्या । २. (जैसे, पहाड़, महादेश, देश, नगर, नदी, समुद्र, झोल, डमरू- अंधकार (को० । मध्ध, उपत्यका, अपित्यका, वन प्रादि) का ज्ञान होता है । भूछितg -वि० [सं० भूपित ] दे० 'भूपत' । उ०-गति देन . विशेष-विद्वानो ने भूगोल के तीन मुख्य विभाग किए हैं। जन विभव भूर भूछित तन सोभित । बिपुर दहन कवि पहले विभाग में पृथ्वी का सौर जगत् के अन्यान्य ग्रहों और चद केन कारन ऋत लोकित ।-पृ० रा०,७८ । उपग्रहों पादि से सवध वतलाया जाता और उन सबके साथ भूजंतु -संज्ञा पु० [ स० भूजन्तु ] १. सीसा। २. हाथी। ३. एक उसके सापेक्षिक संबध का वर्णन होता है । इस विभाग का प्रकार का घोघा। वहुत कुछ संबध गरिणत ज्योतिष से भी है। दूसरे विभाग भूजंबु --सज्ञा पुं॰ [सं० भूजम्बु ] १. गेहूँ । २. वनजामुन । मे पृथ्वी के भौतिक रूप का वर्णन होता है और उससे यह जाना जाता है कि नदी, पहाड़, देश, नगर आदि किसे कहते भूजना-कि० म० [ स० भोग ] भोगना | भोग करना • उपभोग हैं और अमुक देश, नगर, नदी या पहाड़ प्रादि फहीं हैं। करना । उ०-मों उर निकट वेठि अब साई । भूगहु राज साधारणत: भूगोल से उसके इसी विभाग का अर्थ लिया इंद्र की नाई।-चित्रा०, पृ० २०७॥ जाता है। भूगोल का तीसरा विभाग राजनीतिक होता है भूजात--संज्ञा पुं॰ [ स० ] पृथिवी से उत्पन्न, वृक्ष । और उस में इस बात का विवेचन होता है कि राजनीति, भूजो -
- -मंज्ञा स्त्री० [हिं०] दे० भुजिया' ।
शासन, भाषा, जाति और सभ्यता मादि के विचार से भूटा -सञ्ज्ञा पुं० [हिं० ] दे० 'भुट्टा' । उ०-होइ निबीन निंदा तें पृथ्वी के कौन कौन विभाग हैं और उन विभागो का विस्तार साधु, अघ क्रम जरि भे भूटा।-जग० बानी०, पृ० १६ । और सीमा यादि क्या है। ३. वह ग्रंथ जिसमे पृथ्वी के ऊपरी स्वरूप और प्राकृतिक विभागों भूटान--संज्ञा पुं० [सं० भोटस्थान या भोटायन ] हिमालय का आदि का वर्णन होता है। एक प्रदेश जो नेपाल के पूर्व और प्रासाम के उचर मे है । इस देश के निवासी बहुत बलवान और साहसी होते हैं और भूगोलक-संज्ञा पु० [२०] पृथ्वीमंडल । घोड़े बहुत प्रसिद्ध हैं। भूधन-संज्ञा पुं० [म.] शरीर । भूटानी-वि० [हिं० भूटान+ ई (प्रत्य॰)] भूटान देश का। भूघ्नो-मया स्त्री० [स० ] स्फटिक मिट्टी की स्लेट या पट्टिका । भूटान संबंधी।