पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/४४०

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भूत' अनुचर हैं और जिनका मुंह नीचे की ओर लटका हुना या ऊपर की ओर उठा हुआ माना जाता है। ये बालकों को पीड़ा देनेवाले ग्रह भी कहे जाते हैं। १५. मृत शरीर । शव । १६. मृत प्राणी की प्रात्मा। ५७. वे कल्पित आत्माएं जिनके विषय मे यह माना जाता है कि दे अनेक प्रकार के उपद्रव करती और लोगों को बहुत कष्ट पहुंचाती है । प्रेत । जिन । शंतान । भूटानी ३६७१ भूटानी-संज्ञा पुं० १ भूटान देश का निवासी । २. भूटान देश का घोडा। भूटानी' ३-संज्ञा जी० भूटान देश की भाषा । भूटिया घादाम-सज्ञा पुं० [हिं० भूटान + फ़ा० बादाम ] एक पहाड़ी वृक्ष जिसे कपासी भो कहते हैं । विशेष—यह वृक्ष पाँच हजार से लेकर दस हजार फुट तक की ऊंचाई तक पहाड़ों पर होता है। यह मझोले प्राकार का होता है। इसकी लकड़ी मजबूत और रंग मे गुलाबी होती है, जिससे मेज, कुरसी आदि चीजें बनाई जाती है । इस वृक्ष फा फल खाया जाता है। भूड़-संज्ञा सो० [देश॰] एक प्रकार की भूमि जिसमें बालू मिला हुमा होता है । बलुई भूमि । २. कुएं का सोत । झिर । भूडोल-सज्ञा पु- [सं० भू+ हिं० ढोलना ] भूकंप । भूण-संज्ञा पुं॰ [ स० भ्रपण] १. जलयात्रा । समुद्री सफर । २. जल- भ्रमण । जलविहार (डिं.)। भूत-सका पु० [ स०] १. वे मूल द्रव्य जो सृष्टि के मुख्य उपकरण हैं और जिनकी सहायता से सारी सृष्टि की रचना हुई है। द्रब्य । महाभून। विशेष-प्राचीन भारतीयो ने सावयव सृष्टि के पांच मूलभूत या महाभून माने हैं जो इस प्रकार हैं-पृथ्वी, वायु, जल, अग्नि और आकाश । पर अाधुनिक वैज्ञानिकों ने सिद्ध किया है कि वायु धौर जल मूल भूत या द्रव्य नहीं हैं, बल्कि कई मूल भूतों या द्रव्यो के संयोग से बने हैं। पाश्चात्य वैज्ञानिकों ने प्रायः ७५ मुल भूत माने हैं जिनमें से पांच वाष्प, दो तरल तथा शेष ठोस हैं। पर इन समस्त मूल भूनों में भी एक तत्व ऐसा है जो सब में समान रूप से पाया जाता है, जिससे सिद्ध होता है कि ये मूल भून भी वास्तव मे किसी एक ही भून के रूपातर हैं। अभी कुछ ऐसे भूनों का भी पता लगा है जो मूल भून हो सकते हैं, पर जिनके विषय में अभी तक पूर्ण रूप से कुछ निश्चय नहीं हुआ है । वि० दे० 'द्रव्य । २. सृष्टि का कोई जड़ वा चेनन, प्रचर वा चर पदार्थ वा प्राणी। यौ०-भूतदया = जड़ और चेतन सबके साथ की जाने- वाली दया। ३. प्राण। जीव । ४. सत्य । ५. वृत्त। ६. कातिकेय । ७. योगीद्र। ८. वह प्रौपघ जिसके सेवन से प्रेतो और पिशाचो · का उपद्रव शात होता हो। ६. लोध । १०. कृष्ण पक्ष । ११. पुराणानुसार पोरवी के गर्भ से उत्पन्न वसुदेव के बारह पुत्रों में से सबसे बड़े पुत्र का नाम । १२. बीता हुआ समय । गुजरा हुमा जमाना। १३. व्याकरण के अनुसार क्रिया के तीन प्रकार के मुख्य कालों में से एक। क्रिया का वह रूप जिससे यह सूचित होता हो कि क्रिया का व्यापार समाप्त हो चुका। जैसे,- मै गया था; पानी बरसता था। १४. पुराणानुसार एक प्रकार के पिशाच या देव जो रुद्र के विशेष- भूतों और प्रेतों आदि की कल्पना किसी न किसी रूप में प्रायः सभी जातियो और देशो मे पाई जाती है। साधारणत: लोग इनके रूपो और व्यापारो भादि के संबध मे अनेक प्रकार की विलक्षण कल्पनाएँ कर लेते हैं और इनके उपद्रव प्रादि से बहुत डरते हैं। अनेक अवसरों पर इनके उपद्रवों से बचने तथा इन्हें प्रसन्न रखने के लिये अनेक प्रकार के उपाय भी किए जाते हैं। साधारणत: यह माना जाता है कि मृत प्राणियो की जिन प्रात्माओं को मुक्ति नही मिलती, वही प्रात्माएं चारों घोर घूमा करती है और समय समय पर उपद्रव आदि करके लोगो को कष्ट पहुंचाती हैं। इनका विचरणकाल रात और निवासस्थान एकात या भीषण वन आदि माना जाता है। यह भी कहा जाता है कि ये भून कभी कभी किसी के सिर पर, विशेषत: स्त्रियों के सिर पर, प्रा चढ़ते हैं और उनसे उपद्रव तथा बकवाद कराते है। क्रि० प्र०-उतरना । -उतारना । -चढ़ना । --झाड़ना- लगना। मुहा०-( किसी बात का भूत चढ़ना या सवार होना= ( किसी बात के लिये) बहुत अधिक आग्रह या हठ होना । जैसे-तुम्हें तो हर एक बात का इसी तरह भून चढ जाता है । भूत चढ़ना या सवार होना बहुत अधिक क्रोध होना। कुपित होना । जैसे,—उनसे मत बोलो, इस समय उनपर भूत चढ़ा है। विशेष-इन दोनों मुहावरों में 'चढ़ना' के स्थान पर 'उतरना' होने से अर्थ बिलकुल उलट जाता है । मुहा० - भूत यनना = = (१) नशे मे चूर होना । (२) बहुत अधिक क्रोध मे होना । (३) किसी काम मे तन्मय होना। भूत बनकर लगना = बुरी तरह पीछे लगना । किसी तरह पीछा न छोडना । भूत की मिठाई या पकवान = (१) वह , पदार्थ जो भ्रम से दिखाई दे, पर वास्तव मे जिसका अस्तित्व न हो। विशेप-लोग कहते हैं कि भूत प्रेत पाकर मिठाई रख जाते है, जो देखने में तो मिठाई ही होती है, पर खाने या छूने पर मिठाई नहीं रह जाती, राख, मिट्टी, विष्ठा, प्रादि हो जाती है। (२) सहज में मिला हुआ धन जो शीघ्र ही नष्ट हो जाय । उ०-भूत की मिठाई जैसी साधु की झुठाई तैसी स्यार की ढिठाई ऐसी क्षीण छहूँ ऋतु है। केशव (शब्द०)।