पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/४४७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

चोर को०] । भूमिलाम ६५६ भूभ्यालीक भूमिलाम--संज्ञा पुं॰ [स०] १. धरती में पुनः मिलना अर्थात् मृत्यु । भूमिस्पृश-वि० [सं०] १. नेत्रहीन । अंधा। २. लंगड़ा। पंगु । २. भूमि की प्राप्ति । खज [को०] । भूमिलेप-सज्ञा पु० [स०] गोबर । भूमिस्पृश २-पु० [सं०] १. मनुष्प । मानव । २. वैश्य । ३. तस्कर । भूमिलेपन-ज्ञा पु० [स०] १. घरती लोपना। २. गोमय । गोबर [को०] । भूमिस्फोट-सञ्ज्ञा पु० [सं०] कुकुरमुत्ता । छत्रक को०] । भूमिवर्धन-पुज्ञा पु० [म•] मृत शरीर । शव । लाश । भूमिहार-सशा पु० [ स० भूमिहार ] एक जाति जो प्रायः विहार में भूमिवल्लो --संज्ञा खी० [१०] भुई आंवला | और कही कही सयुक्त प्रात मे भी पाई जाती है। भूमिशय'-वि० [म०] १. भूमि पर सोनेवाला । विशेष-इस जाति के लोग अपने पापको 'बाभन' कहते हैं । भूमिशय-सज्ञा पु० १. बालक । शिशु | २. जगली कवूनर । ३. इस जाति की उत्पत्ति के संबध मे अनेक प्रकार की बातें सुनने जमीन मे रहने वाला कोई पशु [को०] । में पाती हैं । कुछ लोग कहते हैं कि जब परशुराम ने पृथ्वी को भूमिशयन-संज्ञा पु० [१०] जमीन पर सोना । क्षत्रियो से रहित कर दिया था, तब जिन ब्राह्मणो को उन्होने भूमिशय्या-पुज्ञा स्त्री॰ [स०] दे॰ भूमिशयन' । राज्य का भार सौग था उन्ही के वंशधर ये भूमिहार या भूमिसंध-सज्ञा क्षी० [स० भूमिसन्धि ] १. वह संघि जो परस्पर बाभन हैं। कुछ लोगों का कहना है कि मगध के राजा मिलकर कोई भूमि प्राप्त करने के लिये की जाय । २. शत्रु के जरासंध ने अपने यज्ञ में एक लाख ब्राह्मण बुलाए थे । पर साय वह सधि जा कुछ भूमि देकर की जाय । जब इतनी संख्या में ग्राह्मण न मिले, तब उनके एक मंत्री ने छोटी जाति के बहुत से लोगों को यज्ञोग्वीत पहनाकर ला विशेष-कौटिल्य ने लिखा है कि इस संघि में शत्रु को ऐसी ही खड़ा किया था, और उन्ही की संतान ये लोग हैं। जो हो, भूमि देनी चाहिए जो प्रत्याया हो या जिसपर शत्रु या असमर्थ और अशक्त बसे हो अथवा जिसके संभालने मे धन पर इसमें संदेह नहीं कि इस जाति में ब्राह्मणों के यजन पाजन पादि कर्मों का नितात प्रभाव देखने में भाता है और प्रायः जन का व्यय अधिक हो। क्षत्रियो की अनेक बातें इनमें पाई जाती हैं। ये लोग दान भूमिसंभव-प्रज्ञा पु० [स० भूमिसम्भव ] १. मंगल ग्रह । २. नहीं लेते और प्रायः खेती बारी या नोकरी करके अपना नरकासुर । निर्वाह करते हैं। भूमिसंभवा-सञ्ज्ञा स्त्री० [सं० भूमिसम्भवा ] सीता । भूमिपुत्री । भुमोंद्र-ज्ञा पुं० [सं० भूमीन्द्र ] राजा । भूमिसमीकृत-क्रि० [सं०] जमीन पर गिराया हुमा [को०] । भृमी-संज्ञा स्त्री० [सं०] दे० 'भूमि' । भूमिसत्र-सञ्ज्ञा पु० [स०] एक प्रकार का व्रात्य स्तोम या यज्ञ । यौ०-भूमीकदव=६० 'भूमिकदव' । भूमीपति, भूमीभुज= भूमिसात्-वि० [सं० भूमिसात् ] जमीदोज | पठपर । जो गिरकर दे० 'भूमिपति' । भूमीरुह = ६० 'भूमिरुह' । भूमोसह % जमीन के साथ मिल गया हो। उ०-केदार ने वह सारा औषष कार्य में प्रयुक्त वृक्षविशेष । खरच्छद । निर्माण भूमिसात् कर दिया था। यामिनी, पृ० २० । भूमिसिज्या-सञ्ज्ञा स्त्री० [सं० भूमि शय्या>हिं० सिज्या ] पृथ्वी भूमींद्र-पंज्ञा पु० [ स० भूमीन्द्र ] 1. राजा । २. पर्वत । की सेज । भूमिशय्या । उ० –सो दिन तीन लो नारायनदास भूमोच्छा-संज्ञा स्त्री॰ [सं०] जमीन पर सोने की इच्छा [को॰] । भूमिसिज्या रहे ।-दो सौ बावन०, पृ० १३४ । भूमोध्र-संज्ञा.पु० [सं० ] महीध्र । पर्वत [को०] । भूमिसुत-नशा पुं० [स०] १. मंगल ग्रह । २. नरकासुर का एक भमोरुह-संज्ञा पु० [ सं०] वृक्ष । पेड़ । नाम । २. वृक्ष । पेड़ । ४. फेवाच । कोच । भूमीश्वर-संज्ञा पु० [ सं०] दे० 'भूमीद्र' । भूमिसुता-सज्ञा स्त्री० [सं०] जानकी जी। भूम्न-वि० [स० ] विराट् । विस्तृत । व्यापक । उ०-श्री वृदावन भूमिसुर-संज्ञा पु० [स०] भूसुर । ब्राह्मण । की लीला एक ही साथ नित्य भी है भोर क्रमिक भी है, भूम्न या ध्यापक भी है और परिच्छिन्न भी है। मोद्दार अभि. भूमिसेन-मज्ञा पुं० [ स० ] पुराणानुसार दसवें मनु के एक पुत्र ग्र०, पृ० ६३७॥ भूमिस्तोम-सा पु० [स० ] एक दिन में संपन्न होनेवाला एक भृभ्यनृत-सज्ञा पु० [सं०] भूमि संबधी भूठा साक्ष्य-। भसत्य गवाही [को०] । भृमिस्थ-वि० [सं०] पृथ्वी पर रहनेवाला । पृथ्वी पर अवस्थित या भूम्याफली-संज्ञा स्त्री० [स० ] अपराजिता लता। खडा हुधा (को०] । भूम्यामलकी-संज्ञा स्त्री॰ [सं०] भुई पावला । भूमिस्नु-संञ्चा पु० [ स० ] भूमिनाग । फेंचुआ (को०] । भूम्याली-सज्ञा स्त्री॰ [ स०] भूम्यामलकी। भुइँ धावला [को०] | भूमिस्पर्श-सद्धा पु० [स०] उपासना के लिये बौद्धो का एक भूम्यालीक-संज्ञा पु० [सं० ] धरती संबधी मिथ्या भाषण । विसो पासन। वनासन।। की जमीन को अपना बताना (जैन)। का नाम । प्रकार का यज्ञ ।