पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/४४६

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भी मिचल, भूमिचलने ३६५ भूमिलवण लगाया जाता है। इसकी छाल, पत्ते और जड़ आदि का भूमिपक्ष-संज्ञा पुं० [सं०] तीव्र गति का अश्व । तेज घोड़ा [फो० । अनेक रोगों में प्रोषधि के रूप मे प्रयोग होता है। इसको भूमिपति-संज्ञा पु० [स०] भूगति । पीसकर फोडे पर लगाने से फोड़ा बहुत जल्दी पक जाता है । भूमिपाल-सज्ञा पु० [१०] राजाः । भूपाल । छाल का चूर्ण प्राय. घाव भरने में उपयोगी होता है । भृमिपिशाच-संज्ञा पुं० [म०] तालवृक्ष । ताड़ का पेड़ (को०] । भूमिचल, भूमिचलन-संज्ञा पु० [ स०] भूकंप । भूमिपुत्र - सज्ञा पु॰ [स०] १. मंगल ग्रह ! २. नरकासुर का एक भूमिछत्र-सज्ञा पु० [सं०] कुकुरमुत्ता। छत्रक [को०] । नाम । ३. श्योनाक वृक्ष । भूमिजंबु-संज्ञा स्त्री० [सं० भूमिजम्नु ] छोटा जामुन । भूमिपुत्री-संज्ञा स्त्री० [सं०] सीता । भूमिज'- संज्ञा पुं० [ सं०] १. सोना। २. मंगल ग्रह । ३; भूमि- भूमिपुरदर--संज्ञा पु० [ स० भूमिपुरन्दर ] १. राजा । २ दिलीप क्दव । ४. सीसा । ५ चिरायता । भनिन (को०)। ६. का एक नाम [को० ॥ मनुष्य (को०)। ७. नरकासुर का एक नाम । भूमिप्रचल-संज्ञा पु० [ स० ] भूमि का प्रचलन या कंपन । भूमिज-वि० भूमि से उत्पन्न । जो जमीन से पैदा हुआ हो । भूकंप (को०] । भूमिजा-संज्ञा स्त्री० [सं०] सीता जी। भूमिबुध्न-वि० [स०] जिसकी पेंदी या तल घरती हो [को०] । भूमिजात -संज्ञा पु० [ स० ] वृक्ष । पेड़ । भूमिभाग-ज्ञा पु० [ स० ] भूभाग । पृथ्वी कोई भाग या भूमिजात-वि० भूमि से उत्पन्न । जो जमीन से पैदा हुआ हो। अश । प्रदेश [को०] । भूमिजीवी-संज्ञा पुं० [स० भूमिजीवित् ] १. वह जो भूमि जोत भूमिभुज-संज्ञा पु० [सं०] राजा [को०)। बोकर अपना निर्वाह करता हो। कृषक । खेतिहर । २. वैश्य । भूमिभृत्-संज्ञा पुं० [स०] १. पर्वत । पहाड़। २. भूगति । भूमितल-संज्ञा पुं॰ [ स०] पृथ्वी की सतह । राजा [को०] । भूमित्व--संज्ञा पु० [ सं०] भूमि का भाव या धर्म । भूमिभोग-संज्ञा पु० [सं०] वह राष्ट्र या राजा जिसके पास भूमि भूमिदंड-संज्ञा पुं॰ [ सं० भूमि + दण्ड ] साधारण दंड या डंड नाम बहुत हो। की कसरत जो दोनो हाथ जमीन पर टेककर और बार बार विशेष-पुराने प्राचार्य भूमिभोग की अपेक्षा हिरण्यभोग उन्ही हाथों के बल झुक और उठकर की जाती है। वि० (जिसके पास सोना या धन बहुत हो ) को अच्छा मानते थे, दे० 'डंड। क्योकि उसे प्रबंध का व्यय भी कम उठाना पड़ता है और भूमिदंडा-संज्ञा स्त्री॰ [सं०'भूमिदण्दा ] चमेली। काम के लिये धन भी उसके पास पर्याप्त रहता है। पर कौटिल्य ने भूमि को ही सब प्रकार के धन का आधार भूमिदाग -संज्ञा पुं० [ सं० भूमि + हिं० दाग ] शव को भूमि में दवा देने की क्रिया। उ०-सतदास जी प्रादि के शवो का मानकर भूमिभोग को ही अच्छा बताया है । दाह कम न देखकर उनका 'हवादाग' या 'भूमिदाग' देखकर भूमिमडप,पणा-संज्ञा स्त्री० [ स० भूमिमण्डपभूपणा ] माधवी भी अपने शव को 'हवादाग' के लिये आज्ञा क्यो नहीं दे गए। नाम की लता। -सुदर० प्र० (जी०), भा० १, पृ० १२५ । भूमिमंडा-संज्ञा स्त्री० [सं० भूमिमण्डा ] एक प्रकार की चमेली। भूमिदान-संज्ञा पुं० [सं०] १.. जमीन का दान । २. पुन.. वितरण भूमिया-संज्ञा पु० [ स० भूमि + इया (प्रत्य॰)] १. भूमि का के लिये भूस्वामियों द्वारा स्वेच्छया किसी को भूमि देना। अधिकारी। भूमि का असल मालिक | २. जमीदार । ३. ३. भूमिदान संबंधी वह आदोलन जिसके प्रवर्तक विनोवा ग्रामदेवता। उ०-गांव भूमिया हित करि धार्य, जा बटोही भावे जी हैं । इसे 'भूदान' भी कहते हैं । दौरे ।-चरण० बानी०, पृ० ७२ । ४. किसी देश के मुख्य और प्राचीन निवासी। भूमिदेव-संज्ञा पु० [ सं०] १. ब्राह्मण । २. राजा । भूमिधर'-सज्ञा पुं॰ [सं०] १. पर्वत । २. शेषनाग । भमिरक्षक-संज्ञा पुं० [सं०] १. देश की रक्षा करनेवाला । देश का रक्षक । २. तीव्रगामी अश्व (को० । भूमिधर- सज्ञा पु० [ सं० भूमि + हिं० धरना ( = रखना) १. वह काश्तकार वा खेतिहर जिसे भूमि पर स्वामित्व प्राप्त हो। भूमिरुंडी-संज्ञा स्त्री॰ [ स० भूमिरुण्डी ] हरितनी नामक वृक्ष । सीरदार । २. वह काश्तकार जिसने दसगुना लगान जमाकर भूमिरुज-संज्ञा पु० [ स० भूमिरुह ] वृक्ष । भूमि पर स्वामित्व प्राप्त किया हो । भृमिरुह-संज्ञा पु० [सं०] वृक्ष । भूमिनाग-सज्ञा पु० [ सं० ] केंचुमा । उ०-सो मैं कहउ कवन भूमिरुहा-संज्ञा स्त्री० [सं०] दूच । दूर्वा [को० । बरनी। भूमिनाग सिर घरै कि धरनी।- भूमिलग्ना-संज्ञा सी० [स०] सफेद फूल की अपराजिता । भूमिलता-संज्ञा स्त्री॰ [सं०] शखपुष्पी । भूमिप-संज्ञा पुं० [स०] भूप । राजा। भूमिलवण-संज्ञा पु० [स०] गोरा । -विधि मानस, १०३५