पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/४६१

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भोक्ता २७०० भोगवती भोक्ता-संज्ञा पु० १. विष्णु । २. भर्ता । पति । ३. एक प्रकार का भोगपाल-मंशा पु० [स० ] अश्वरक्षक । सारथि । साईस [को॰] । प्रेत । ४. राजा। नरेश । ५. प्यार करनेवाला। वह जो भोगपिशाचिका- स्त्री० [ स० ] बुभुक्षा | भूब (को०] । प्यार करता हो। (को०)। भोगप्रस्थ-सज्ञा पु० [स०] वृहत्साहता के अनुसार एक देश जो उत्तर दिशा में माना गया है। भोक्तृत्व-सज्ञा पुं० [सं०] भोक्ता का धर्म या भाव । भोगबंधक-सचा पु० [ स० भोग+हिं० बंधक (रेन) ] बंधक भोक्तृशक्ति-प्रज्ञा स्त्री० [ स० ] बुद्धि । या रेहन रखने का वह प्रकार जिसमें उधार लिए हुए रुपए भोग-सञ्ज्ञा पु० [सं०] १. सुख या दुःख प्रादि का अनुभव करना का व्याज नहीं दिया जाता और उस व्याज के बदले मे या अपने शरीर पर सहना । २. सुख | विलास । ३. दु.ख । रुपया उधार देनेवाले को रेहन रखी हुई भूमि या मकान वष्ट । ४. स्त्रीसभोग | विषय । ५ सांप का फन । ६. साप । आदि भोग करने अथवा किराए धादि पर चलाने का ७. धन | संपत्ति । ८. गृह । घर । ६. पालन । १०. भक्षण । अधिकार प्राप्त होता है | दृष्टबंधक का उलटा । माहार करना । ११. देह । १२. मान । परिमाण । १३. पाप भोगभुज-वि० [स० भोगभुक् ] १. भाक्ता । भोग करनेवाला । या पुण्य का वह फल जो सहन किया या भोगा जाता है। २. धनी । सपत्तिवाला [को०] । प्रारब्ध । १४. पुर | १५. एक प्रकार का सैनिक व्यूह । १६. भोगभूमि-स -सज्ञा स्त्री० [स०] १. भोग का स्थान । उपभोग का क्षेत्र । फल । अर्थ। उ०-क्योकि गुण वे कहाते हैं जिनसे कमंकाडादि स्वर्ग । पानंद करने की जगह । उ०-प्रानंद की सिद्धावस्या मे उपकार लेना होता है । परतु सर्वत्र कर्मकार में भी इष्ट या उपभोग पक्ष फा प्रदर्शन करने वाली काव्यभूमि, दीप्ति, भोग की प्राप्ति के लिये परमेश्वर का त्याग नही होता।- माधुर्य और कोमलता की भूमि है जिसमे प्रवर्तक या वीज दयानद (शब्द०)। १७. मानुष प्रमाण के तीन भेदो मे से भाव प्रेम है। काव्य की इस भोगभूमि में दुखात्मक भावों एक । भुक्ति । ( फजा)। १८. देवता आदि के आगे रखे को वेवड़क चले पाने की इजाजत नहीं।-रस०, पृ० ८१ । जानेवाले खाद्य पदार्थ । नैवेद्य । उ०-गयो ले महल माफ २. विष्रगुपुराण के अनुसार भारतवर्ष के अतिरिक्त अन्य टहल लगाए लोग लागे होन भोग जिय का तनु छीजिए । वर्ष क्योकि भारतवर्ष को कर्मभूमि कहा गया है। ३. जनो के -नाभा (शब्द०)। अनुसार वह लोक जिसमे किसी प्रकार का कर्म नहीं करना क्रि० प्र.-लगना-लगाना। पड़ता और सब प्रकार की आवश्यकताओं की पूर्ति केवल १६. भाड़ा। किराया | २० सूर्य आदि ग्रहों के राशियों में रहने कल्पवृक्ष के द्वारा हो जाती है। का समय । २१. प्राय । आमदनी (को०) । २२. वेश्या को भोग भोगभृतक-सा पुं० [स०] केवल भोजन वस्स लेकर काम करने- के निमित्त प्रदत्त शुल्क । वेश्या का शुल्क (को०) । २३. भूमि वाला नौकर [को॰] । या संपत्ति का व्यवहार । भोगलदाई। -सञ्ज्ञा स्त्री० [हिं० भोग+लदाई ? ] खेत में कपास भोगकर-वि० [सं०] आराम देनेवाला । आनंददायक [को०] । का सबसे बड़ा पौधा जिसके पासपास वैठकर देहाती लोग भोगगुच्छ-सज्ञा पुं॰ [ स० ] वेश्या का शुल्क (को०] । उसकी पूजा करते हैं। भोगगृह-सज्ञा पु० [सं०] अतःपुर । जनानखाना [को॰] । भोगलाभ-संज्ञा पुं० [सं०] १. प्रानंद वा लाभ की प्राप्ति वा भोगजात-वि० [सं०] भोग से उत्पन्न । मजन (को०)। २. वृद्धि । सौभाग्य (को०)। ३. दिप भोगतृष्णा-संज्ञा स्त्री० [स०] १. भोग की तीन या बलवती अन्न के बदले में व्याज के रूप में कुछ अधिक अन्न जो फसल इच्छा । २. किसी स्वार्थ के वश किया गया भोग । तैयार होने पर लिया जाता है। भोगदेह-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [स०] पुराणानुसार वह सूक्ष्म शरीर जो भोगलिप्सा-सच्चा स्त्री० [सं०] व्यसन । लत । मनुष्य को मरने के उपरात स्वर्ग या नरक प्रादि में जाने भोगलियाल-सज्ञा सी० [डिं. ] कटारी नाभ का शस्त्र । के लिये धारण करना पड़ता है । भोगली-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [देश॰] १. छोटी नली। पुपली। २. नाक में मोगधर-संज्ञा पु० [सं०] साँप । पहनने का लोग। ३. टेटका या तरकी नाम का कान में भोगना-क्रि० प्र० [सं० भोग+हि. ना० (प्रत्य॰)] १. सुख दुःख पहनने का गहना। ४. वह छोटी पतली पोली कील जो शुभाशुभ या कर्मफलों का अनुभव करना । पानंद या कष्ट लौग या कान के फूल आदि को भटकाने के लिये उसमें आदि को अपने ऊपर सहन करना। भुगतना। २. सहन लगाई जाती है। ५. चपटे तार या बादले का बना हुआ करना । सहना। ३. स्त्रीप्रसग करना। सलमा जिससे दोनों किनारों के बीच की जंजीर बनाई जाती है। कंगनी। भोगनाथ-सञ्ज्ञा पु० [सं०] पालन पोषण करनेवाला। भोगपति-संज्ञा पु० [सं०] किसी नगर या प्रांत आदि का प्रधान भोगवती- संज्ञा स्त्री० [सं०] १. पातालगंगा। २. गंगा। ३. पुराणानुसार एक तीर्थ का नाम । ४. महाभारत के अनुसार शासक या अधिकारी। एक प्राचीन नदी का नाम । ५. नागों के रहने का स्थान । भोगपत्र-संज्ञा पुं॰ [सं०] शुक्रनीति के अनुसार वह पत्र जो राजा नागपुरी। ६. एक नागिन (को०)। ७. कार्तिकेय की एक को डाली या उपहार भेजने के संबंध में लिखा जाय । मातृका का नाम ।