भोगवना ३७.१ भोज भोगवना-क्रि० अ० [सं० भोग] भोगना । उ०-(क) कला भोगिभुज-से -संज्ञा पुं० [सं०] मोर । मयूर [को॰] । सपूरण भोगवई चोवा चदन तिलक सोहाई ।- बी० रासो, भागिराज-सज्ञा पु० ॥ स०] शेषनाग का नाम [को० । पु. ४७ । (ख) सनि कज्जल चख झख लगनि उपज्यो सुदिन भोगिवल्लभ-संज्ञा पुं० [सं०] चदन । सनेह । क्यो न नृपति ह्व भोगवै लहि सुदेसु सब देह । भोगींद्र-सञ्ज्ञा पुं० [ स० भोगीन्द्र ] १. शेषनाग । २. वासुकी। ३. -बिहारी (शब्द०)। पतंजलि का एक नाम । भोगवस्तु-संज्ञा स्त्री० [स०] भोग की वस्तु या सामग्री । भोगी-सञ्ज्ञा पु० [ सं० भोगिन् ] १. भागनेवाला। यह जो भोगवान्'-सज्ञा पुं० [सं०] १. साँप । २ नाट्य । ३. गान । भोगता हो। २. साप । सप। ३. जमीदार। ४. ना। गीत । ४. एक पवंत का नाम (लो०)। राजा। ५. नापित । नाऊ । नाई। ६. शेषनाग । (डि.)। भोगवान्-वि० भोगयुक्त । भोगवाला। आनंददायक [को०] । ७०-बीजा दीपवरण जपे गुर प्रादि संजोगी। विसरग भोगवाना-क्रि० स० [हिं० भोगना का प्र० रूप ] भोगने में प्रगसिर बिंदु भणे तारष सो भागी।- रघु० रू०, पु० ५। दूसरे को प्रवृत्त करना । भोग कराना। भोगी-वि० १. सुखी। २. इंद्रियो का सुख चाहनेवाला। ३. भोगविलास-सज्ञा पु० [सं० ] आमोद प्रमोद । सुख चैन । भुगतनेवाला । ४. विषयासक्त । ५. प्रानद करने वाला। ६. भोगवेतन-संज्ञा पुं० [सं०] वह धन जो किसी धरोहर रखी हुई विषयी । भोगासक्त। व्यसनी। ऐयाश । ७. खानेवाला । ८. वस्तु के ध्यवहार के बदले मे स्वामी को दिया जाय । फनवाला । कुंडली या फणयुक्त (को०) । भोगव्यूह-संज्ञा पुं० [सं०] कौटिलीय अर्थशास्त्रानुसार वह व्यूह भोगीश-सञ्चा पु० [ स०] दे० 'भोगींद्र' । जिसमें सैनिक एक दूसरे के पीछे खड़े किए गए हों। भोगेश्वर-संज्ञा पुं० सं० ] पुराणानुसार एक तीर्थ का नाम । भोगशील-वि० [सं०] भोगी । विलासी [को०] । भोग्य-वि० [सं०] [ वि० सा. भोग्या ] १. भोगने योग्य । काम भोगसद्म-संज्ञा पु० [सं० भोगसमन् ] अत.पुर । जनानखाना । में लाने योग्य । २. जिसका भोग किया जाय । ३. खाद्य भोगस्थान-सज्ञा पुं० [सं०] १. शरीर, जिससे मोग किया जाता (पदार्थ )। है। २. अंत.पुर। भोग्य-संक्षा पु० १. धन सपति । २. घान्य । ३. भोगबंधक । भोगांतराय-संज्ञा पु० [सं०] वह अंतराय जिसका उदय होने से मनुष्य के भोगों की प्राप्ति में विघ्न पड़ता है। वह पाप कम भोग्यभूमि-मंज्ञा स्त्री० [सं०] १. विलास की भूमि । मा स्थान । २. वह भूमि जिसमें किए हुए पाप पुण्यो से सुख दुःख जिनके उदित होने पर मनुष्य भोगने योग्य पदार्थ पाकर भी प्राप्त हो । मत्यलोक। उनका भोग नहीं कर सकता (जैन)। भोग्यमान-वि० [सं०] जो भोगा जाने को हो, अभी भोगा न भोगाना-क्रि० स० [हिं० भोगना का प्रे० रूप ] भोगने मे दुसरे गया हो । जैसे, भोग्यमान नक्षत्र । को प्रवृत्त करना । भोग कराना। भोग्या-संज्ञा स्त्री० [ स०] वेश्या । रडी। भोगाई'- वि० [सं० ] भोग के योग्य । भोग्याधि-सज्ञा स्त्री० [सं०] धरोहर की वह रकम या वस्तु जो भोगाह-संज्ञा पुं० संपत्ति को भोगाह्य-संज्ञा पुं० [सं०] अन्न धान्य (को०] । कागज पर लिख ली गई हो । भोगावति-संवा स्त्री॰ [सं० भोगती ] नागपुरी। उ०- भोगा. भोज-संज्ञा पुं॰ [सं० भोजन या भोज्य ] १. बहुत से लोगों का वति जसि अहिकुल वासा !-मानस, १११७८ । एक साथ बैठकर खाना पीना । जेवनार । दावत । भोगावली-संज्ञा स्त्री० [सं० १. स्तुतिपाठकों द्वारा की जाने यौ०-भोजभात - कच्ची पक्की रसोई का ज्योनार । वाली स्तुति । २. नागों की नगरी [को०] । २. भोज्यपदार्थ । खाने की चीज । ३. ज्वार और भोग के योग भोगावास- सज्ञा पुं० [सं० ] अंत:पुर । से बनी हुई एक प्रकार की शराब जो पूने की ओर मिलती भोगिक-संज्ञा पुं० [सं०] १. अश्वरक्षक । सारथी। साईस । २. गांव या प्रात का पाासक । उ-प्रांतीय शासकों को भोगिक, भोजर--संज्ञा पु० [सं०] १. भोजक्ट नामक देश जिसे आजकल भोगपति, गोप्ता, उपरिक, महाराज, राजस्थानीय प्रादि की भोजपुर कहते हैं । २. चंद्रवंशियो के एक वंश का नाम । उपाधियां मिलती थी।-प्रादि०, पृ० ४०१ । ३. पुराणानुसार शाति देवी के गर्भ से उत्पन्न वसुदेव के एक भोगिकांत-सज्ञा पुं० [सं० भोगिकान्त ] भौगियों अर्थात् सों के लिये पुत्र का नाम | ४. महाभारत के अनुसार राजा द्रुह्य, के एक प्रिय अर्थात वायु (को॰] । पुत्र का नाम । ५. श्रीकृष्ण के सखा एक ग्वाल का नाम । भोगिगंधिका-संज्ञा सी० [स० भोगिगन्धिका ] लघुमंगुष्ठा [को०] । उ०-अर्जुन भोज अरु सुवल श्रीदामा मधुमंगल इक भोगिन-संज्ञा स्त्री० [सं० भोगिन् ] दे० 'भोगिनी' । ताक -सूर (शब्द०)। ६. कान्यकुब्ज के एक प्रसिद्ध भोगिनी-संज्ञा स्त्री० [सं०] १. राजा की वह पत्नी जिसका पट्टा राजा जो महाराज रामभद्र देव के पुत्र थे। इन्होने काश्मीर भिषेक न हुपा हो। राजा की उपपत्नी। राजा की रखेली तक अधिकार किया था। ये नवी शताब्दी में हुए थे। ७. स्ली। २. नागिन । मालवे के परमारवंशी एक प्रसिद्ध राजा जो संस्कृत के बहुत बड़े 1
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