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पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/४८३

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मत्रसंहिता ३७२२ मथ २. तंत्रानुसार मत्रों का वह संस्कार जिसके करने का विधान मांत्रिक-वि० [सं० मन्धि क ] मंत्रियोंवाला । जैसे, बहुमंत्रिक । मत्रग्रहण के पूर्व है और जिसके विना मंत्र फलप्रद नहीं होते। मत्रिणी-संज्ञा स्त्री० [सं० मन्त्रिणी ] १. मंत्री का काम करनेवाली विशेप-ऐसे संस्कार दस हैं जिनके नाम ये हैं- स्त्री। २. मंत्री की पत्नी। (१) जनन-मंत्र का मातृका यंत्र से उद्धार करना। इसे मत्रित-वि० [सं० मन्त्रित ] १. मंत्र द्वारा संस्कृत । अभिमंत्रित । मंत्रोद्धार भी कहते हैं। निर्णीत । अवधारित (को०)। २. जिसपर मंत्रणा हो चुकी (२) जीवन-मंत्र के प्रत्येक वर्ण को प्रणव से संपुट करके हो (को०)। ३. कथित । फहा हुमा (को०)। ४. निश्चित । सौ सौ बार जपना। म त्रिता-संज्ञा स्त्री० [सं० मन्त्रिता] १. मंत्री का भाव वा पद । (३) ताडन-मय के प्रत्येक वर्ण को पृथक पृथक् लिखकर लाल मंत्रित्व । २. मंत्री को क्रिया। मंत्री का काम । मंत्रित्व । कनेर के फूल से वायुवीज पढ़ पढ़कर प्रत्येक वर्ण को सौ सौ मनित्व-मंज्ञा पु० [स० मन्त्रित्व ] मत्री का कार्य वा पद । मत्रिता। बार मारना। मत्रीपन । (४) बोधन- मत्र के लिखे हुए प्रत्येक वर्ण पर 'र' बीज से सौ मनिधुर-वि० [ स० मन्धिधुर ] १. मत्रियों में श्रेष्ठ । २. मंत्री सौ बार लाल कनेर के फूल से मारना । का कार्य करने में समर्थ । जो मनो का कार्य कर सकता (५) अभिपे-मत्र के प्रत्येक दणं को लाल कनेर के फूल हो को। से 'र' धीज द्वारा अभिमत्रित कर यथाविधि अभिषेक मंत्रिपति-मज्ञा पुं० [सं० मधिपति ] प्रधान अमात्य । करना। (६) विमलीकरण-सृपुम्ना नाड़ी में मनोयोगपूर्वक मत्र की पर्या-मत्रिपद । मविप्रधान । मंत्रिप्रमुख । मत्रिमडल । चिता करफे मत्रों के प्रत्येक वर्ण के ऊपर अश्वत्थ के पल्लव मंत्रिमुख्य । मत्रिवर । मनिश्रेष्ठ । से ज्योति मंत्र द्वारा जल सीचना । म त्रिपद-संशा पु० [ स० मन्त्रि+पद ] दे० 'मंत्रित्व' । उ.- (७) अध्यायन-ज्योतिमंत्र द्वारा सोने के जल, कुशोदक वा निर्वाचन के पश्चात् काग्रेस ने मविपद ग्रहण करने का पुष्पोदक से मंत्र के वर्णो को सीचना । निश्चय किया।-भारतीय०, पृ० १२४ । (८) तपंण-ज्योतिमंत्र द्वारा जल से मंत्र के प्रत्येक वर्ण का मनिमडल-संज्ञा पुं० [सं० मन्त्रिमण्डल] मंत्रियो की परिषद् । तर्पण करना। उ०-प्रत्येक प्रांत में एक मंत्रिमडल की व्यवस्था थी। (१) दीपन-ज्योतिमंत्र से दीप्ति साधन करना । -भारतीय०, पृ० १३ । (१०) गोपन-मंत्र को प्रकट न करके सदा गुप्त रखना मंत्री-संज्ञा पुं० [सं० मन्धिन् ] १. परामर्श देनेवाला । सलाह और अोठो के वाहर न निकालना। देनेवाला । २. वह पुरुष जिसके परामर्श से राज्य के काम- मनसंहिता-संज्ञा स्त्री॰ [सं० मन्त्र संहिता] वैदिक संहितामों के मंत्रों काज होते हों। सचिव। का ऐसा संकलन जिसमें केवल 'मंत्रभाग' का संग्रह फिया पर्या-अमात्य । सचिव । धीसख । स मवायिक । गया है। ३. शतरंज की एक गोठी का नाम । मनसाधन-संज्ञा पु० [सं० मन्त्रसाधन ] मत्रसिद्धि का यत्न विशेष-यह गोटी राजा से छोटी मानी जाती है पौर पक्ष की करना । मंत्र को सिद्ध करना [को० । शेष सब गोटियो से श्रेष्ठ होती है। यह टेढ़ी सीधी सव मत्रसिद्ध-वि० [स० मसिद्ध ] [वि० सी० मत्रसिद्धा ] जिसका प्रकार की चालें चलती है। इसे वजीर या रानी भो प्रयोग किया हुआ कोई मत्र निष्फल न जाता हो । कहते हैं। मत्रसिद्धि-- संज्ञा स्त्री० [सं० मन्त्रसिद्धि ] मत्र का सिद्ध होना । मला-वि० [सं० मन्त्र + एना (प्रत्य०) ] मंत्र का प्रयोग करने- मंत्र की सफलता। मत्र में प्रभाव पाना । वाला। उ०-प्रापै मंत्र प्रापै मंत्रेला। प्रापै पूजै माप मत्रसन्न-संज्ञा पुं० [सं० मन्त्रसूत्र] वह रेशम या सून का तागा पूजेला ।-कबीर , पु० २४४ । जो मंत्र पढ़कर बनाया गया हो । गंडा । मथ-संज्ञा पु० [सं० मन्थ ] १. मथना । बिलोना। मत्रस्नान-सञ्ज्ञा पु० [स० मन्त्रस्नान ] वह स्नान या मार्जन जो यौ०-मंथगिरि दे० 'मंथपर्वत' । मंथगुण = मथनी की रस्सी। केवल मंत्रों द्वारा किया जाय [को०] । मंथदंड, मंथदंडक = मथानी का डंडा जिसमें रस्सी लगाकर मनहोन-वि० [ स० मन्त्रहीन ] १. मंत्र से रहित । विना मंत्र का मथते हैं। मंथविष्कंभवह खंभा या डंडा जिसमें मथानी २. मत्र या दीक्षा से रहित । संस्कारविहीन (को०] । फी रस्सी बाँधी जाती है । मंथशैल-दे० 'मयपर्वत' । मालय-संज्ञा पुं० [स० मन्त्र+श्रालय ] शासन के किसी मंत्री २. हिलाना। क्षुब्ध करना । ३. मदन | मलना | ४. मारना । वा उसके विभाग का कार्यालय । जैसे,—उद्योग मंत्रालय का ध्वस्त फरना। ५. कंपन । ६. एक प्रकार की पीने की वस्तु अनुदान स्वीकृत। जो कई · द्रव्यों को एक साथ मथकर बनाते हैं। ७. दूध वा त्रि-संञ्चा पु० [ स० मन्त्रिः ] दे० 'मंत्री' [को॰] । जल में मिलाकर मथा हुमा सत्त । ८. मथानो। वह पोजार -- . !!