पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/४८५

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मदऊ २७५४ मदा-पञ्चा पु० [देश॰] घोड़े का एक रोग जिसमें उसके गले के श्रकलवाला । उ०-सकुहि कहत श्रुति सेप सारद मदमति पास की हड्डी में सूजन आ जाती है। तुलसी कहा।-मानस, १११००। मदक-वि० [ स० मन्दक ] १. मूर्ख । निर्वाध । २. जो राग, द्वेष, मदयंतो-तंश स्रो॰ [ स० मन्दयन्ती ] दुर्गा । मान, अपमान आदि विकारो से शून्य हो (को०) । मदर-मशा पुं० [सं० मन्दर] १. पुराणानुसार एक पर्वत जिससे मदकर्णि-ज्ञा पुं० [सं० मन्दकर्थि ] एक ऋषि का नाम । देवतानो ने समुद्र को मया था। मय पर्वत । मदगचल | मदकर्मा-वि० [स० मन्दकर्मन् ] धीरे धीरे काम करनेवाला । उ.-धारन मदर सुदर सांवरे, प्राय वयो मन मदिर बालसी [को०] मेरे । -प्रेमघन॰, भा॰ १, पु० २८६ । २. मदार। मदकांति-संज्ञा पु० [सं० मन्दकान्ति ] चंद्रमा को०) । ३. स्वर्ग। ४. मोती का वह हार जिसमें आठ वा सोलह लड़ियां हो। -वृहत्यहिता, पृ० ३८५ । ५. मुकुर । मदकारो-वि० [स० मन्दकारिन् ] १. मूर्खनापूर्ण कार्य करनेवाला । दर्पण । पाईना। ६. कुशद्वीप के एक पर्वत का नाम । २. धीरे धीरे काम करनेवाला । पालसी (को०) । ७. वृहत्संहिता के अनुसार प्रासादो के बीच भेदो में मदग-वि० [सं० मन्दग] [ सी मदगा] धीमा चलनेवाला । दूसरा । वह प्रासाद जो छ कोना हो और जिसका मदग-सज्ञा पुं० १. महाभारत के अनुसार शक द्वीप के अंतर्गत चार विस्तार तीस हाथ हो। इसमें दस भूमिकाएं और अनेक जनपदो में से एक । २. मदग्रह। शनि जिनकी गति धीमी कंगूरे होते हैं । ८. एक वणं वृच का नाम जिसके प्रत्येक है (को०)। चरण मे एक भगण (1) होता है। मंदगति-सज्ञा स्री० [ स० मन्दगति ] ग्रहों की गति की वह मदर'-वि० १. मंद । घीमा । २. मना । अवस्था जब वे अपनी कक्षा मे घुमते हुए सूर्य से दूर निकल मदरशा पु० [स० मन्दिर ] दे० 'मदिर' । उ०---पुरति जाते हैं। गही जब मदर घीना ।-प्राण, पृ० ३१ । मदगतिः-वि• धीमी चालवाला (को०] । मदगिरि-संज्ञा पुं० [स०] १, मंदराचल पर्वत । २. एक छोटे मदगमन, मंदगामी-वि-[मन्दगमन, मन्दगामिन् ] दे० 'मंदगति'। पहाद का नाम जो मुगर के पास है। मदचेता-वि० [सं० मन्दचेतस् ] वेवकूफ । मदबुद्धि (को० विशेष-इस पर्वत पर हिंदुओं, जैनो मोर बौद्धों से भनेक मदिर मदच्छाय-वि० [सं० मन्दच्छाय] धुधला । हृत्तेज [को०) । हैं और सीताकुंड नामक प्रसिद्ध गरम जल का कुंड है। मंदट-संज्ञा पुं० [सं० मन्दट ] देवदारु । मदरवासिनी-संग मी० [सं० मन्दवासिनी ] दुर्गा [को०] | मदता-संज्ञा स्री० [ स० मन्दता] १. मालस्य । २. धीमापन । ३. मदरा-वश पुं० [स० मण्डल ] एक वाद्य। ९०-मंदरा तबल क्षीणता। सुमरू खंजरी ढोलक घामक ।-सूदन (शब्द०)। मदत्व-सञ्ज्ञा पु० [ स० मन्दत्व ] दे० 'मंदता। मंदता'-संशा पुं० [सं० मण्डल ] ३० मंद।। मदधी-वि० [सं० मन्दधी ] कमअक्ल । मोटो बुद्धिवाला [को०] । मदल-रशा पु० [फा० ] घेरा । महाता ! मंडल (को०] । मदधूप-स्वा पुं० [हिं० मद+धूप ] काला धूप । काला डामर । मंदलाल-संज्ञा पु० [ दि० मदरा ] दे० 'मदरा' । उ०-सुनि दे० 'डामर'। मंडल में मंदला वाजै । वहाँ मेरा मन नाचे ।-कवीर ग्रं, मदन-सज्ञा पु० [हिं० मंद+न (प्रत्य॰)] धीमापन । उ०- पृ० ११०। ऊपर जाते समय वेग का मदन होता है ।-भौतिक०, मदविभव-वि० [स० मन्दविभव] गरीव । दरिद्र । अकिंचन [को०] । पु.४६ । मदवीर्य-वि० [२० मन्दवीय ] दुवैल । कमजोर [को०] । मदपरिधि-संज्ञा स्त्री॰ [सं० मन्दपरिधि ] मंदोच्च वृत्ति । मंदसमोर, मदसमीरण-सा पुं० [५० मन्दसमोर, मन्दसमीरण ] मदफल-संज्ञा पुं॰ [सं० मन्दफल ] १. गणित ज्योतिष में ग्रहगति हलकी हलकी एवं सुखदायिनी वायु [फो०] । का एक भेद । २. वह जिसका फल या परिणाम विलंब से मंदसान-सज्ञा पुं॰ [सं० मन्दसान ] १. अग्नि । प्राग । २. प्राण । मिले (को०)) ३. निद्रा। नीद। मंदबुद्धि-वि० [ स० मन्दबुद्धि ] दे० 'मंदधी' । मदसानु-संज्ञा पु० [स० मन्दसानु] १. स्वप्न । २. जीव । ३. मदभागो-वि० [स० मन्दभागिन् ] [वि० सी० मंदभागिनी ] दे० 'मंदसान' (को०)। अभागा । हतमाग्य । उ०-नातरु हम मंदभागी मापके स्वरूप मदस्मित-संश पुं० [ स० मन्दस्मित ] हलकी मुसकान । उ०- फों कहा जानते?-दो सौ वावन०, भा० १, पृ० २६६ । प्रतिमा का मंदस्मित परिचय खस्मारक ।-तुलसी०, पु०६। मदभाग्य-वि० [सं० मन्दभाग्य ] दुर्भाग्य | प्रभाग्य । मदहास, मदहास्य-संग पुं० [सं० भन्दहास, मन्दहात्य ] दे॰ मदमद-क्रि० वि० [स० मन्दम्मन्दम् ] धीमी गति से । धीरे धीरे । 'मंदस्मित' को। मंदमति-वि० [सं० मन्दमति ] कम अकल । हतबुद्धि । मोटी मदा-संज्ञा स्त्री॰ [सं० मन्दा] १. सूर्य की वह संक्रावि जो उत्तरा फाल्गुनी, उत्तरापाढ़ा, उत्तराभाद्रपद योर रोहिणी नक्षत्र