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पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/४९२

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भकरी मकर पृ०७४। ८८ लधु, १२० वर्ण या १५२ मात्राएँ अथवा ३२ गुरु, ८४ मकरसंक्रांति-संज्ञा स्त्री॰ [ सं० मकर सङ्क्राति ] वह समय जब लघु, १६६ वरणं, कुल १४८ मात्राएं होती हैं। सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है। यह एक पर्व माना मकर-सचा सं० [फा० मकर, मक ] १. छल । कपट । फरेव । जाता है। धोखा । उ०-करह बदगी असल करारा । सो तजि का तुम्ह मकरसप्तमी-पज्ञा स्त्री० [सं०] माघ मास के शुक्ल पक्ष की मकर पसारा।--सत० दरिया, पु० २२ । २. नखरा। सप्तमी [को०]। उ०-काम करते हैं मकर का फिसलिये । इस मकर से प्यार मकरांक-संज्ञा पुं० [सं० मकराङ्क] १. कामदेव । २. समुद्र। ३. प्यारा है कहो।-चोखे०, पृ० २४ । एक मनु का नाम। क्रि० प्र०-रचना।-फैलाना । मकरा'---संज्ञा पुं० [सं० वरक ] मड़ वा नामक अन्न । मकरकर्फट-संज्ञा सं० [सं० ] क्रांति वृत्त की वह सीमा जहाँ से सूर्य मकरा-संञ्चा पुं० [हिं० मकड़ा] १. भूरे रंग का एक कीड़ा जो उत्तरायण या दक्षिणायन होकर लौट जाता है। दीवारों और पेड़ों पर जाला बनाकर रहता है। इसकी टाँगें मकरकुडल-संज्ञा पु० [सं० मकर कुएडल] मकर या मछली की बड़ी बड़ी होती हैं । २. हलवाइयों की एक प्रकार की घोड़िया आकृति का कर्णभूषण । उ०-प्रवण मकरकुंडल लसत मुख या चौघड़िया जिससे सेव बनाया जाता है। सुषमा एकत्र ।-केशव (शब्द०)। विशेष-यह एक चौकी होती है जिसमें छाननी की तरह छेद- मकरकेतन-संज्ञा पुं० [सं०] फामदेव । उ०-प्रेम का चिह्न मकर वाला लोहे का एक पात्र बड़ा होता है । इसी पात्र में घोला है। काम तभी मकरकेतन कहा गया है। -प्रा० भा० ५०, हुप्रा बेसन भरकर ऊपर में एक दस्ते से दबाते हैं जिससे नीचे सेव बनकर गिरता जाता है। मकरकेतु-संज्ञा पुं० [सं० ] कामदेव । मकराकर-संञ्चा पुं० [सं०] समुद्र । (डि०) । मकरांति-संज्ञा स्त्री० [सं० मकरक्रान्ति ] वह अक्षरेखा जो निरक्ष मकराकार-० [सं०] मकर या मछली के माकार का। रेखा से २३ अंश दक्षिण में स्थित है को०] । मकराकृत-वि० [सं०] मकर या मछली के प्राकारवाला। मकरचाँदनी-संज्ञा स्त्री० [अ० मक्र या मकर+हिं० चाँदनी १. यौ०-मकराकृत कुडल - मछली के प्राकार का कुंडल । वह चांदनी जो सबेरा का भ्रम पैदा करे । उ०-पहर एक मकराक्ष-संज्ञा पुं० [स० ] खर का पुत्र और रावण का भतीजा। रजनी जव गई। तब तहाँ मकर चाँदनी भई।-अपं०, पृ० विशेष-रामायण के अनुसार यह कुंभ और निकुंभ के मारे ३८ । २. भ्रामक वस्तु । धोखे की चीज । जाने पर युद्ध में गया था और राम के द्वारा मारा गया था। मकरतेंदुआ-संज्ञा पुं० [सं० मकर+तिन्दुक] पाबतूस । काकतिदुक । मकराज-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [ म० मिकराज ] कैची। मकरवार-संज्ञा पुं० [हिं० मुक्कश ] वादले का तार | उ०-चलु सखि चलु सखि प्रेम विलास ! झूमर खेलो सतगुरु के पास । मकरानन-संज्ञा पुं० [सं०] शिव के एक अनुचर का नाम । श्वेत सिंहासन छत्र मॅजोर । मकरवार पर लागी डोर । मकराना-संञ्चा पुं॰ [देश॰] राजपूताने का एक प्रदेश जहाँ का -~-कवीर (शब्द०)। संगमरमर बहुत प्रसिद्ध होता है। उ०-मारवाड़ के लोग इन्हें मकराने का ब्राह्मण मानते हैं।-मकबरी०, पु० ७८ । मकरध्वज-संशा पु० [सं०] १. कामदेव । कंदर्प । उ०-विद्या सोइ वृहस्पति जानी। रुपु सोई मकरध्वज मानो।-माधवा- मकराराई-संज्ञा स्त्री॰ [ मकरा ? + राई ] काली राई । नल०, पृ० १५८ । २. रससिंदुर । चद्रोदय नामक रस । मकरालय-संज्ञा पुं० [सं० ] समुद्र । उ०-पार किया मकरालय ३. इंद्रपुष्प । लौग । ४. पुराणानुसार अहिरावण का एक मैंने, उसे एक गोष्पद सा मान | -साकेत, पृ० ३८८ । द्वारपाल । मत्स्योदर। मकराश्व-संज्ञा पुं० [सं०] मकर पर सवार होनेवाले, वरुण । विशेष-यह हनुमान का पुत्र माना जाता है। कहते हैं, लंका मकरासन-संज्ञा पुं० [सं०] तात्रिकों का एक प्रासन जिसमें हाथ को जलाने के उपरांत जब हनुमान ने समुद्र में स्नान किया और पैर पीठ की मोर कर लिए जाते हैं। था, तब एक मछली ने उनके पसीने से मिला हुमा जब पीकर मकरिका-प्रज्ञा स्त्री० [सं०] दे० 'मकरिकापत्र' [को॰] । गर्भ धारण किया था जिससे इसका जन्म हुआ। मकरिकापत्र-संज्ञा पुं० [सं०] मछली के पाकार का बना हुमा मकरपति-संज्ञा पुं० [सं० १. कामदेव । २. ग्राह। चंदन का चिह्न जो प्राचीन काल में स्त्रियां अपनी कनपटियों मकरलांछन-संज्ञा पुं० [सं० मकरलाञ्छन ] कामदेव। मकरकेतु पर बनाती थी। [को०] । मकरी-मंज्ञा पुं॰ [सं० मकरिन् ] समुद्र [को०)। मकरवाहन-संज्ञा पुं० [सं०] वरुण । प्रचेता। [को०] । मकरी-संज्ञा स्त्री० [सं०] १. मगर की मादा। मगरी। उ०--- मकरव्यूह-संज्ञा पुं० [सं०] एक प्रकार का व्यूह या सेनारचना पोखरी विशाल बाहुबल वारिचर पीर मकरी ज्यों पकरि के जिसमें सैनिक मकर के माकार में खड़े किए जाते हैं। दे० बदन बिदारिए।-तुलसी (शब्द०)। २. एक प्रकार का 'मकर'-८ वैदिक गीत । ३, चक्की में लगी हुई एक लकड़ी। 1