मकर मक्तव मकड़ियां इतनी बड़ी होती हैं कि छोटे मोटे पक्षियों तक का मकवूल-वि० [ म० मकबूल ] १. सर्वप्रिय । उ०-क्यों वह काबिल शिकार कर लेती हैं। मकड़ियां प्राय: उछलकर एक स्थान है बनता जिसमें पह मकवूल न हो।-भारतेंदु ग्र, भा० २, से दूसरे स्थान पर जाती हैं। इनकी कुछ प्रसिद्ध जातियों पु० ५७० । २. माना हुआ। स्वीकृत । मजूर (को०) । ३. के नाम इस प्रकार हैं-जगली मकडी, जल मकड़ी, राज- रुचिकर (को०)। मकड़ी, कोष्टी मकड़ी, जहरी मकड़ी पादि । यौ०-मकवूले खुदा = ईश्वर का प्यारा। मकबूले वारगाह = २. मकड़ी के विष के स्पर्श से शरीर में होनेवाले दाने, जिनमें (१) ईश्वर का प्यारा । (२) किसी बड़े के यहाँ बहुत जलन होती है और जिनमें से पानी निकलता है। सम्मानित। मकतव-सज्ञा पु० [ ५० ] छोटे बालकों के पढ़ने का स्थान। मकबूलियत-सश सी० [अ० मकबूलियत ] १. सर्वप्रियता । पाठशाला। चटसाल | मदरसा । लोकप्रियता । २. रुचि । पसंद (को०] । मुहा०-मकतव का यार-बचपन का साथी। मकरद-संशा पु० [ स० मकरन्द ] १. फूलों का रस जिसे मधुमक्खियो और भौरे मादि चूसते हैं। २. एक वृत्त का नाम जिसके मकतबखाना-संज्ञा पु० [अ० मकतबखानह ] दे॰ 'मकतब' । उ०-यही ठौर हुतो हाय वह मकतबखाना-प्रेमघन०, प्रत्येक चरण मे सात जगण और एक यगण होता है । इसको 'राम', 'माधवी' और 'मजरी' भी कहते हैं। जैसे,-जुलोक भा० १, पृ० १६ । यथामति वेद पढ़ें सह मागम पो दश पाठ सयाने । ३. ताल विशेष-इसमें 'खाना' शब्द अधिक है क्योंकि मकतब का अर्थ के ६० मुस्य भेदो में से एक । ४. कुंद का पौधा। ५. ही पढाई की जगह है, पर कुछ लोग लिख देते हैं । इसी किंजल्क । फूल का केसर । ६. भ्रमर । भौरा (को०)। ७. तरह 'मकतबगाह' भी है। कोफिल । कोयल (को०)। ८. एक प्रकार का मुगधित मकतबा-संज्ञा पु० [अ० १. किताबों की दुकान । २. पुस्तकालय । पाम (को०)। लायनेरी। मकरंदवत्-वि० [सं० मकरन्दवत् ] [वि॰ स्त्री० मकरंदवतो ] पुष्प- मकतल-सज्ञा ० [अ० मक्तल] कत्ल करने की जगह । वधस्थान । रस या मधु से पूर्ण [को०] । वधभूमि [को०] । मकता-मंज्ञा पुं० [स० मगध ] मगध देश । मकरंदवती-संज्ञा लो० [सं० मकरन्दवती ] पाटला नाम की लता या उसका फूल [को०] | विशेष-माईने प्रकवरी में मगध का यही नाम दिया गया है । मकर-संज्ञा पु० [सं०] १. मगर या घड़ियाल नामक प्रसिद्ध मकता-संज्ञा पु० [भ० मक्तभ] गजल या किसी फविता का जलजतु । यह कामदेव की ध्वजा का चिह्न और गंगा जी अंतिम शैर या छद । तथा वरुण का वाहन माना लाता है। २. बारह राशियो में मकतूब'-वि० [अ० मक्तूब ] लिखित | लिखा हुमा। से दसवी राशि जिसमें उत्तराषाढा नक्षत्र के अंतिम तीन मकत्व-संज्ञा पु० पत्र । चिट्ठी । उ०-य प्रश्फ पाँखों में कासिद पाद, पूरा धवण नक्षत्र और धनिष्ठा के प्रारम के दो पाद हैं। किस तरह यकदम नहीं थमता। दिले वेताब का घायद लिए मकतूब जाता है। -कविता को०, भा० ४, पु० २१ । विशेष-इसे पृष्ठोदय, दक्षिण दिशा का स्वामी, रूक्ष, भूमि- मकदूनिया-संज्ञा पु० [अ० मकदूनियह ] एक प्रदेश जो पहले चारी, शीतल स्वभाव और पिंगल वर्ण का, वैश्य, वातप्रकृति तुर्कों के पास था। सिकंदर यहीं राज करता था। और शिथिल अगोंवाला मानते हैं। ज्योतिष के अनुसार इस मकदूर-सज्ञा पुं॰ [म. मकदूर] १. सामथ्यं । ताकत । शक्ति । जाति में जन्म लेनेवाला पुरुष परस्री का अभिलाषी, धन २. धन दौलत । संपत्ति (को०)। बड़ानेवाला, प्रतापशाली, वातचीत में बहुत होशियार, बुद्धिमान और वीर होता है। मकना-संशा पु० [अ० माना ] एक महीन कपड़ा जो निकाह के ३. फलित ज्योतिष के अनुसार एक लग्न । ४. सुश्रुत के अनुसार समय दूल्हे को पहनाया जाता है (को॰] । कीड़ों और छोटे जीवो का एक वर्ग। ५. कुबेर की नव मकना-संज्ञा पु० [हिं०] दे० 'मकुना' । निधियों में से एक। ६. प्रल शस्त्र को निष्फल बनाने के मनातीस-संज्ञा पुं० [० मकनातीस ] चुबक पत्थर । लिये उनपर पढ़ा जानेवाला एक प्रकार का मंत्र । ७. एक मकफूल-वि० [अ० मकफूल ] रेहन किया हुमा । गिरों रखा हुआ। पर्वत का नाम । ८. एक प्रकार का व्यूह जिसमें सैनिक लोग मकवरा-संज्ञा पु० [अ० मकबरह ] वह मकान या इमारत जिसके इस प्रकार खड़े किए जाते हैं कि उनकी समष्टि मकर के अंदर कोई कवर हो। कवर के ऊपर बनी हुई इमारत । पाकार की जान पड़ती है। ६. माघ मास । मकर संक्राति समाधिमंदिर । रोजा। मजार । का महीना । उ०-अहो हरि नीको मकर मनाए।-भारतेंदु ग्रं॰, भा॰ २, पृ० ४४१। १. मछली। उ०-श्रुति मंडल मकबूजा-वि० [अ० मकबूज़ह ] कब्जा किया हुमा। अधिकृत कुंडल विधि मकर सुविलसत सदन सदाई।-सुर (शब्द०) । (माल, मिल्कियत प्रादि)। ११. छप्पय के उनतीसवें भेद का नाम जिसमे ३२ गुरु,
पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/४९१
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