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पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/५०

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फाइदा ३२८६ फालिज . डालकर मार डालना। फॉसी पाना = पाश द्वारा प्राणदंड पाना। किसी अपराध मे गले में फदा डालकर मार डाला जाना। फाइदा-संशा पुं० [ ५० फाइदइ ] दे॰ 'फायदा' । उ०-जिस तरह हो सके हम अपनी जन्मभूमि को कुछ फाइदा पहुंचा सकें।- भारतेंदु म, भा० ३, पृ० ७८ । फाइन' -संज्ञा पुं० [६० फ़ाइन ] जुर्माना। पर्थदंड । जैसे,- उसपर १००) फाइन हुमा। फाइन-वि० [अ० फाइन] सुदर । अच्छा । बढ़िया । फाइनल-वि० [सं० फाइनल ] आखिरी । प्रतिम । जैसे, फाइनल परीक्षा। फाइनांस-संज्ञा पु० [अ० फाइनान्स ] सार्वजनिक राजस्व प्रौर उसके प्रायव्यय की पद्घति । अर्थव्यवस्था । फाइनानशल-वि० [सं० फाइनान्शल ] १. सार्वजनिक राजस्व या अर्थव्यवस्था संबंधी। मालगुजारी के मुताल्लिक । माली । जैसे, फाइनानशल कमिश्नर । २. प्रायिक । अर्थ संबंधी । माली। फाइनानशल कमिश्नर-संज्ञा पुं० [अं० फाइनान्शल कमिश्नर ] वह सरकारी अफसर जिसके अधीन किसी प्रदेश का राजस्व विभाग या माल का महकमा हो । फाइल-संज्ञा स्त्री० [पं० फाइल ] १. मिसिल । नत्थी। २. लोहे का तार जिसमें कागज या चिट्ठियाँ नत्थी की जाती है । ३. सामयिक पत्रों आदि के कुछ पूरे अंकों का समूह । फाइलेरिया-सज्ञा पु० [अं फाइलेरिया ] श्लीपद रोग । फाउटेन-संज्ञा पु० [40 फ़ाउन्टेन ] १. निझर । सोता । घश्मा । स्याही रखने का पात्र । यौ०-फाउन्टेन पेन = लेखनी जिसमें स्याही भरकर लिखा जाता है जिससे बार बार उसे दावात मे डुवाने की जरूरत नहीं होती। फाउंड्री-संज्ञा स्त्री० [अ० फाउन्ड्री ] वह कल या कारखाना जहाँ धातु की चीजें डाली जाती हो। ढालने का कारखाना । जैसे, टाइप फाउंड्री। फाउड़िा-संज्ञा स्त्री० [हिं० पाँवढ़ी] दे० 'पावेडी'। उ०-तजो कहरि नजिर भभूत, वटवा फाउड़ि जिनि लेउ हाथ । एता प्रारंभ परिहरी सिद्धो, यो कथत जती गोरखनाथ ।- गोरख०, पृ०२३८ । फाका-संज्ञा पुं० [अ० फाकट् ] उपवास । निराहार रहना । उ०- फे फाके का गुन यही राजिक करे यादा ।-चरण वानी, पृ० ११२। यौ०-फाकाकशी । फाकेमस्त । क्रि० प्र०-करना ।—होना । मुहा०-फाका पड़ना = सपवास होना । फाकों का मारा: भोजन न मिलने से अत्यंत शिथिल । भूख से मरता हुपा । फाकों मरना = भूखों मरना । उपवास का कष्ट सहना । फाकामस्त, फाकेमस्त-वि० [अ० फाकह (ए) + फा० मस्त, हिं० फाके + फ़ा० मस्त ] जो खाने पीने का कष्ट उठाकर भी कुछ चिंता न करता हो । जो पैसा पास न रखकर भी बेपरवा रहता हो। फाखतई'-वि० [अ० फाखतह + फा० ई (प्रत्य०) या फ़ाख्तह + ई (पत्य०) ] पंडुक के रग का । भूगपन लिए हुए लाल । फाखतई २-संज्ञा पुं० एक,रंग का नाम । विशेष—यह रंग ललाई लिए भूरा होता है। पाठ माशे वायोलेट को आध सेर मजीठ के काढे में मिलाकर इसे बनाते हैं। फाखता-संज्ञा स्त्री० [अ० फ़खतह ] [ वि० फाखतई ] पडुक । धर्वरखा। मुहा०-फाख्ता उड़ जाना = (१) घबरा जाना | व्याकुल होना । (२) बेहोश होना। फाग - सज्ञा पुं० [हिं० फागुन ] १. फागुन के महीने में होनेवाला उत्सव जिसमें लोग एक दूसरे पर रंग या गुलाल डालते पौर वसत ऋतु के गीत गाते हैं। उ०-तेहि सिर फूल चढ़ाहवै जेहि माथे मन भाग । पाछंद सदा सुगंध वह जनु बसंत श्री फाग ।-जायसी (शब्द०)। क्रि० प्र०-खेलना । उ०-निकस्यो मोहन सांवरों हो फागु खेलन व्रज मांझ-नंद० ग्रं॰, पृ० ३८२ । २. वह गीत जो फाग के उत्सव में गाया जाता है। फागुन-सना पु० [ स० फाल्गुन ] शिशिर ऋतु का दुसरा महीना । माघ २ बार का महीना। फाल्गुन । उ०-भतु फागुन नियरानी, कोई पिया से मिलावे। -कवीर श०, भा० १, पृ० ६८ । विशेप-यद्यपि इस महीने की गिनती पतझड़ या शिशिर में है, तथापि वसंत का आभाप इसमे दिखाई देने लगता है। जैसे, नई पत्तियां निकलना प्रारंभ होना, ग्रामों में मंबरी लगना, टेसू फूलना इत्यादि। इस महीने की पूर्णिमा को होलिका. दहन होता है। यह प्रानंद का महीना माना जाता है। इस महीने में जो गीत गाए जाते हैं उन्हें फाग कहते हैं। फागुनी-वि० [हिं० फागुन + ई (प्रत्य॰)] फागुन संबंधी । फागुन का। फाजिर-व० [भ० फाजिर ] [ वि० स्त्री० फाजिरा ] दुष्कर्मी। दुराचारी। फाजिल–वि० [प० फाजिल] १. अधिक । आवश्यकता से अधिक । जसरत से ज्यादा । घर्च या काम से पचा हुमा । क्रि० प्र०-निकलना ।—निकालना ।—होना । २. विद्वान् । गुखी । उ०—(क) सो है फाजिल संत महरमी पूरन ब्रह्म समावै । -भीखा श०, पृ० २५ । (ख) बहुत ही