पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/५१३

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मतली ३७५२ मतिभ्रंश मतली-सा स्त्री० हिं० मिचली ] जी मिचलाने की क्रिया या मताधिकारी-संश्चा पुं० [स० मताधिकारिन् ] मतदान करने का भाव । के होने की इच्छा। हकदार। मतदाता। मतलूब-वि० [अ० मत्लूब ] अभोप्मित । अभिप्रेत | कांक्षित । मतानुज्ञा-पंज्ञा स्त्री॰ [स० ] न्याय दर्शन के अनुसार २१ प्रकार के उ०-तालिब मतलूब को पहूँचै तोफ फरै दिल अंदर । निग्रह स्थानो में से एक जिस मे अपने पक्ष के दोष पर विचार -बीर सा०, पृ० ८८ । न करके वार बार विपक्षी के पक्ष के दोप का ही उल्लेख किया जाता है। मतलूचा 1-वि० [अ० मालू यह ] प्रेमिका । माशूका । कांक्षिता । मतवार, मतवारा-वि० [सं० मत्त+हिं० वाला ] दे० मतानुयायो-संज्ञा पु० [स० मतानुयायिन् ] किसी के मत के 'मतवाला'। 30-(क)तोरे पर भए मतवार रे नयनवा । अनुसार प्राचरण करनेवाला। किसी के मत को माननेवाला । -भारतेंदु न०, भा० २, पृ० ५०१ । (ख) ह्र गयो हुतो मतावलबी। निपट मतवारो।-नंद० ०,१० ३१३ । मतारी -सज्ञा स्त्री० [सं० मातृ+मातर् हिं० माता] दे० 'महतारी'। मतवाला'-वि० पुं० [स० मत्त हिं०+ वाला (प्रत्य०) [वि॰ स्त्री० उ०-अटल कस्द की, हम मतारी किया । -दक्खिनी०, मतवाली ] १. नशे प्रादि के कारण मस्त । मदमस्त । नशे मे पु०१४०। चूर । २. उन्मत्त । पागल । ३. जिसे भिमान हो। व्यर्थ मतावलंबी-संज्ञा पु० [स० मतावलम्बिन् ] किसी एक मत, सिद्धांत प्रहकार करनेवाला। या संप्रदाय आदि का अवलवन करनेवाला। जैसे, जनमता- मतवाला'-संज्ञा पु० १. वह भारी पत्थर जो किले या पहाड पर से वलबी। उ.-परतु वह विदेशी और अन्य मतावलबी है। नीचे के शत्रुपों को मारने के लिये लुढ़काया जाता है। प्रेमघन०, मा०२, पृ. २०४ । २. कागज का बना हुमा एक प्रकार का गावदुमा खिलौना मतावना -क्रि० स० [हिं० मताना ] मत्त बनाना। उन्मत्त कर जिसके नीचे का भाग मिट्टो प्रादि भरी होने के कारण भारी देना । मतवाला कर देना । उ०-कुबुद्धि कलवारिनी होता है और जो फेंकने पर सदा खड़ा ही रहता है, जमीन बसेले नगरिया हो रे। उन्हि रे मोर मनुप्रा मतावल पर लोटता नहीं। -संत० दरिया, पृ० १७६ । मतवाला-वि० पु० [सं० मत+हिं० वाला (प्रत्य॰)] किसी मति'-सञ्चा स्रो० स०] १. बुद्धि । समझ । अक्ल । २. राय । मत, संप्रदाय या सिद्धांत को माननेवाला । उ-उसे काव्य सलाह | संमति । ३. इच्छा । ईहा। स्वाहिश । ४. स्मृति । क्षेत्र से निकलकर मतवालों (सांप्रदायिकों) के बीच अपना मुहा०-मति भारी जाना = निर्बुद्धि की तरह कार करना । हाव भाव दिखाना चाहिए।-चितामणि, भा० २, पृ० ६३ । बुद्धिनाश होना। मतांतर-संज्ञा पुं० [स० मतान्तर ] १. अन्य मत | भिन्न मत । मत मति-वि० बुद्धिमान् । चतुर । गा विचार का विभेद [को०] । मति-कि० वि० [सं० मा ] नहीं। दे० 'मत'। उ०-जाते मता-संज्ञा ॰ [स० मत ] दे॰ 'मत' । उ-(क) पलटू चाहै तुम और भाव मन में मति लामो ।--दो सो बावन०, हरि भगति ऐसा मता हमार |-पलटू० भा० १. पृ० २७ । भा०१, पृ०१०६॥ ( ख ) केचित मता अघोरी लिया। अंगीकृत दोऊ का मति:--प्रव्य० [स० मत् या वत् ] सण | समान । उ०- किया।-सुदर० प्र०, भा १, पृ० ६६ । धूम समूह निरखि चातक ज्यों तृषित जानि मवि घन की। मता-संज्ञा स्त्री० [सं० मति ] दे० 'मति' । उ०-यही मता हम -तुलसी (शब्द०)। तुम वह दोन्हा । दूसर कोई न पावै चीन्हा ।--कवीर० सा०, मतिगर्भ-संक्षा पु० [स०] बुद्धिमान् । चतुर । होशियार । पृ० १०१७ ॥ मतिगति-संज्ञा स्त्री० [सं०] बुद्धि की गति । विचारतरणि (को॰] । मता" ३ - वि० [सं० मतक ] दे० 'मत्त' । उ०—कंठगी रंमता । मतिचित्र-संज्ञा पु० [सं०] अश्वघोष का एक नाम । वारुनी पी मता-पृ० रा०, ११६५० । मतिदर्शन-संज्ञा पुं॰ [स०] वह शक्ति जिसके द्वारा दूसरे की मताना-कि० अ० [सं० मत्त ] १. मदमत्त होना। २. पात्मविभोर योग्यता या भावो का पता लगता है। होना । बेसुध होना । उ०-पाइ बहे कंज मैं सुगंध राधिका मतिदा-संञ्चा स्त्री० [सं०] १. ज्योतिष्मती नाम की लता । २. सेमल । को मजु, ध्याए कदलीवन मतंग लौ मताए हैं।-रत्नाकर, मतिदा-वि० सी० बुद्धि देनेवाली । वृद्धिप्रदा [को०] । भा० १, पृ० १२० । मताधिकार-पशा पुं० [स० मत + अधिकार ] वोट या मत देने का मतिद्वध-सञ्ज्ञा पुं० [ सं० मतिद्वध] विचारों की भिन्नता [को॰] । अधिकार जो राजा या सरकार से प्राप्त हो । व्यवस्थापिका मतिना-श्रव्य. [ सं० मत् या वत् ] सहश । समान । (पूरक०) । परिषद्, व्यवस्थापिका सभा आदि प्रातिनिधिक कहलानेवाली मतिपूर्वक-प्रव्य० [सं०] उद्देश्यतः । सोच समझकर । जान- संस्थानों के सदस्य या प्रतिनिधि निर्वाचित करने में वोट या बूझकर। मत देने का अधिकार मतिभ्रंश-संज्ञा पुं॰ [सं०] उन्माद रोग । पागलपन ।