पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/५१६

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३७५५ मत्स्यकरंडिका मत्स्योदरी निकालकर समुद्र में छोड़ दिया। समुद्र में पहुंचते ही उस जिसका ऊपरी भाषा भाग नारी का और निचला भाग मछली ने हंसते हुए कहा कि शीघ्र ही प्रलयकाल पानेवाला मछली जैसा हो [को०] | है। इसलिये आप एक अच्छी और इन नाव वनवा लीजिए मत्स्यनाशक, मत्स्यनाशन-संञ्चा पुं० [सं० ] कुरर पक्षो। और सप्तषियों सहित उसीपर सवार हो जाइए। सब चीजों के बीज भी अपने पास रख लीजिएगा; और उसी नाव पर मत्स्यनी-मश स्त्री० [सं०] पांच प्रकार की सीमानों में से वह सीमा मेरी प्रतीक्षा कीजिएगा। वैवस्वत मनु ने ऐसा ही किया। जो नदी या जलाशय मादि के द्वारा निर्धारित होती है । जब प्रलयकाल आया और सारा संसार जलमग्न हो गया, मत्स्यपुराण-संज्ञा पुं० [सं०] दे० 'मत्स्य'-६ । तव वह विशाल मछली उन्हें दिखाई दी। उन्होंने अपनी मत्स्यवंध-सज्ञा पुं॰ [स० मत्स्यबन्ध ] धीवर । मल्लाह । • नाव उस मछली के सीग से वधि दी। कुछ दिनों बाद मत्स्यबंधन-संज्ञा पुं॰ [सं० मत्स्यवन्धन ] मछली पकड़ने की वंशी । वह मछली उस नाद को सोचकर हिमालय के सबसे मत्स्यबंधी-सञ्ज्ञा पुं० [सं० मत्स्यबन्धित् ] दे० 'मत्स्यबंध' । ऊचे शिखर पर ले गई । वहाँ वैवस्वत मनु और सप्तर्षियों मत्स्यमुद्रा-संज्ञा पुं॰ स्त्री० [सं०] तांत्रिको की एक मुद्रा जो सभी चे उस- मछली के कहने से अपनी नाव उस शिखर में पूजामों में आवश्यक होती है । वीव दी। इसी लिये वह शिखर मात्र तम नौवंधन' कहलाता है। उस समय उस मछली ने कहा कि मैं स्वयं विशेप-इसमें दाहिने हाथ के पिछले भाग पर बाएं हाथ की प्रजापति ब्रह्मा हूँ। मैंने तुम लोगों की हथेली' रखकर अंगूठा हिलाते हैं । यह मुद्रा अभीष्ट सिद्ध रक्षा करने और संसार की फिर से सृष्टि करने के लिये मत्स्य का करनेवाली मानी जाती है । इसे कूम्म मुद्रा भी कहते हैं। अवतार धारण किया है। अब यहो मनु फिर से सारे मत्स्यरंक-संशा पु० [सं० मत्स्यरङ्क ] दे० 'मत्स्यरंग' । संसार को सब्धि करेंगे। यह कहकर वह मछली वहीं मत्स्यरंग-संज्ञा पु० [सं० मत्स्यरङ्ग ] मछरंग नामक पक्षी (को॰] । घंतर्धान हो गई। मत्स्य पुराण में लिखा है कि पायीन मत्यराज-सज्ञा पुं० [सं०] १. रोहू मछली। २. विराटनरेश काल में मनु नामक एक राजा ने घोर तपस्या करयो ब्रह्मा (को॰) । से वर पाया था कि जब महाप्रलय हो, तब मैं ही फिर मत्स्यवेधन-संज्ञा पुं० [सं० ] वंसी । दे० 'मत्स्यवेधनी' । से सारी सृष्टि की रचना करू । और तब प्रलय काल आने मत्स्यवेधनी--संक्षा स्त्री० [सं०] बंसी। मछली मारने की कटिय, से कुछ पहले विष्णु उक्त प्रकार से मछती का रूप धरकर (को०] । उनके पास भाए थे। इसी प्रकार भागवत आदि पुराणों में भी इससे मिलती जुलती अथवा भिन्न कई कथाएं पाई मत्स्यसंतानिक-संज्ञा पुं० [सं० मत्स्यसन्तानिक ] व्यंजन के साथ विशिष्ट प्रकार से पकाई हुई मछली (को०] । ८. पुराणानुसार सुनहरे रंग की एक प्रकार की शिला विसका मत्स्याक्षक-सज्ञा पुं॰ [सं०] सोमलता। पूजन करने से मुक्ति होती है । ६. मत्स्य देश का राजा । मत्स्याक्षी-शा स्त्री॰ [सं०] १. सोमलता । २. ब्राह्मी बूटी। ३. मत्स्यकरंडिका-संशा क्षी० [स० मत्स्यकरयिडका ] मछली रखने या गाडर दूव । पकड़ने का भावा [को०] । मस्याधानी-सञ्ज्ञा स्त्री० [सं०] १. मछली रखने की झाँपी। २. मत्स्यगंधा-सञ्चा त्री० [सं०] १. जलपायल | २. व्यास की माता बडिश । बंसी।-अनेकार्थ० पृ० ६२ । सत्यवती का एक नाम । वि० ० 'व्यास' । मत्स्यायिनी-संज्ञा स्त्री० [सं०] १. जलपीपल । २. दे० मत्स्याक्षी'। मत्स्यघात-संज्ञा पुं० [सं० दे० 'मत्स्पघाती'। मत्स्यावतार-संचा पुं० [सं०] दे० 'मत्स्य'-७ । मत्स्वघाती-मज्ञा पु० [सं० मत्स्यवातिन् ] मछुपा [को०] । मत्स्याशन--संज्ञा पुं० [स०] मछली खानेवाला पक्षी | मछरंग [को०] । मत्स्यजाल-तंज्ञा पुं० [सं०] मछली फंसाने का जाल (को०] । मत्स्यासन-संज्ञा पुं० [सं०] तांत्रिकों के अनुसार योग का मत्स्यजीवी-संञ्चा पु० [स० मत्स्यजीदिन् ] निपाद जाति का एक एक आसन। मत्स्यासुर-सज्ञा पुं॰ [सं० ] पुराणानुसार एक असुर का नाम । मत्स्यदेश-संज्ञा पुं० [सं०] प्राचीन विराट देश का नाम । मत्स्यिनी सीमा-संज्ञा स्त्री० [सं०] स्मृति के अनुसार दो गांवों के दे० 'मत्स्य-२। बीच में पड़नेवाली नदी जो सीमा के रूप मे हो । मत्स्यद्वादशी- -पसा स्त्री॰ [सं०] अगहन सुदी द्वादशी। मत्स्येंद्रनाथ -संज्ञा पुं० [सं० मत्स्येन्द्रनाथ ] एक प्रसिद्ध साधु और मत्स्यद्वीप-संज्ञा पु० [सं०] पुराणानुसार एक द्वीप का नाम । हठयोगी जो गोरखनाथ के गुरु थे। नेपाल में ये पद्मपाणि मत्स्यधानी-संज्ञा स्त्री० [सं०] मछनी रखने की झांमी [को॰] । नामक वोषिसत्व के अवतार माने जाते हैं। मत्स्यनाथ-सज्ञा पुं० [सं० मत्स्य + नाय ] दे० 'मत्स्येंद्रनाथ' । मत्स्योदरी-सञ्ज्ञा पुं० [सं० मत्स्योदरिन् ] विराटनरेण का एक मत्स्यनारी-संज्ञा स्त्री० [सं०] १. सत्यवती। २. जीव की प्राकृति नाम [को॰] । जाती है। नाम।