पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/५२४

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पृ०४७। भदिया ३७६३ मदूर मदिया-संज्ञा स्त्री॰ [फा० मादा पशुग्नों में स्त्री जाति । स्त्री की एक स्त्री का नाम । ५. बाइस अक्षरों के वरिक छद जाति का जानवर । जैसे, मदिया कबूतर । मदिया कौवा । का नाम जिसके प्रत्येक चरण में सात भगण शौरसत में मदिर'- संज्ञा सी० [सं० ] लाल खैर । एक गुरु होता है। इसे मालिनी, उमा और दिवा भी मदिर'-वि० [सं०] नशीला । मदभरा । मदकारक । मस्त करने- कहते हैं। जैसे,—तोरि शरासन संकर के शुभ सीय स्वयंवर वाला । उ०-पलकें मदिर भार से थी झुकी पड़ती।-लहर, मांझ बरी।-केशव (शब्द॰) । मदिराक्ष-वि० [सं०] [ स्त्री० मदिराक्षी] जिसकी आँखें मदभरी मदिरता-संञ्चा स्त्री० [सं० मदिर+ता (प्रत्य॰)] मादकता। हो । मस्त आँखोंवाला । मत्तालोचन । मदोन्मत्तता । ७०-रात की इस चांदनी की रोप्यता कुछ खो मदिराक्षो-वि० [सं०] मदभरी या मस्त माखौवाली। गई है। और, कोकिल की मदिरता भो तिरोहित हो गई मदिरागृह-सज्ञा पुं० [सं०] दे० 'मदिरालय' [को०] । है।-अपलक, पृ० ८६। मदीराभ-वि० [स०] १. मादकता से युक्त । मादक । २. समन के मदिरनयना-संज्ञा स्त्री० [सं०] आकर्षक मस्त आँखोंवाली स्त्री [को० । समान विस्तृत वा आयत । १०-खोलता लोचन दल मदिरलोचना-संज्ञा स्त्री० [सं०] मदिरनयना । मदिराभ, प्रिये, चल अलिदल से वाचाल । -गुजन, मदिरा-संज्ञा स्त्री० [सं०] भबके से खीच या सड़ाकर बनाया हुपा प्रसिद्ध मादक रस । वह अकं जिसके पीने से नया हो। मदिरायतनयन-वि० [स०] [वि॰ स्त्री० मदिरायतनयना ] संजन के शराब। दारू! मद्य। समान बड़े शोर मदभरे नेत्रोवाला [को॰] । विशेष-मदिरा के प्रधान दो भेद हैं। एक वह जिसे आग पर मदिरालय-संज्ञा पुं० [सं०] मधुशाला। शराबखाना । मद्यगृह [को०] । चढ़ाकर भयके से खीचते हैं, जिसे अशिनवित कहते हैं । दूसरा मदिरावला-सञ्ज्ञा पुं० [सं० मदिरा ] मद्य । मदिरा। उ.- वह जिसमे सड़ाकर मादकता उत्पन्न की जाती है और जिसे नीझर झरे अमीरस निकसै तिहि मदिरावल छाका- पर्युषित कहते हैं। दोनों प्रकार की मदिराएं उत्तेजक, कबीर ग्र०, पृ० १३६ । दाहक, कषाय और मधुर होती हैं । वैदिक काल से ही मादक मदिरासख-संधा पु० [सं०] ग्राम का वृक्ष (को०] । रसों के प्रयोग की प्रथा पाई जाती है। सोम का रस भी, मदिरोत्कट-वि० [ ]६० 'मदिरोन्मत्त' (को०] । जिसकी स्तुति शायः सभी संहितानों मे है, निचोड़कर कई स०] शराब के नशे में चूर [को०] । दिन तक ग्राहों में रखा जाता था जिससे खमीर उठकर मदिरोन्मत्त-वि० [ मदिष्ठा-सञ्ज्ञा ली। उसमें मादकता उत्पन्न हो जाती थी। यजुर्वेद मे यवसुरा तीखी शराब । नशीली मदिरा [को०] । शब्द आया है, जिससे यह पता चलता है कि यजुर्वेद के मदो-सञ्चा लो. [ सं० मदि ] दे० 'मदि' । काल में यव की मदिरा खीचकर बनाई जाती थी। स्मृतियों मदोद-वि० [म. ] लबा । दीघं । में सुरा के तीन 'भेदों गौड़ी, पेष्ठी भौर माध्वी-का यौ०-शदीदो मदीद = कठिन और लंवा । उ०-वाद इन्तजार निषेध पाया पाता है। वैद्यक मै सुरा, वारुणी, शीधु, भासव, शदीदो भदीद इनायतनामे के दर्शन हुए। प्रेम० चौर गोर्की, माध्वीक, गौड़ी, पेष्टी, माध्वी, हाखा, कादबरी आदि के पृ०६२ । नाम मिलते हैं। जटाधर ने मध्वीक, पानास, द्राक्ष, उर्जूर, मदीना-सचा पु० [ म० ] अरब के एक नगर का नाम । यहा सुसल- ताल, ऐक्षव, मैरेय, माक्षिक, टांक, मधूक, नारिफेलज, मानी मत के प्रवर्तक मुहम्मद साहब की समाधि है। अन्नविकारोस्थ, इन बारह प्रकार की मदिरानो का उल्लेख किया है। इनमे खजूर और ताल आदि युषित गौर शेष मदीय-वि० [सं०] [ खो० मदीया ] मेरा । उ०—जो नाम मात्र ही स्मरण मदीय करेंगे, वे भी भवसागर बिना प्रयास अभिनवित हैं। इन दोनों के अतिरिक्त एक प्रकार की और तरेंगे।-साकेत, पृ०२१६ । मदिरा होती है, जिसे घरिष्ट कहते हैं । यह क्वाथ से बनाई जाती है। पान या चावल की मदिरा को सुरा, यव की मदीयून--संशा पु० [फा० ] वह जो देनदार हो । कर्जदार । भणी । मदिरा को कोहल, गेहूँ की मदिरा को मधुलिका, मीठे रस की मदीला-वि० [हिं० मद+ ईला (प्रत्य०) ] नशे से भरा हुमा । मदिरा को शीधु, गुरु की मदिरा को गोड़ो, और दाख की नशीला । ७०-गजन मदीले चढ़ि चले चटकीले ।- मदिरा को मध्वीक कहते हैं। धर्मशास्त्रो में गौड़ी, पेष्टी रघुराज (शब्द०)। भोर माध्वी को सुरा कहा गया है। वैद्यक ग्रथों में भिन्न मदुकल-सञ्ज्ञा पुं॰ [ देश० ] दोहे के एक भेद का नाम जिसमें रह भिन्न प्रकार की मदिरामों ; गुण लिखे हैं और उनका गुरु और वाईस लघु मात्राएं होती हैं । इसे गयंद भी कहते प्रयोग भिन्न भिन्न अवस्थाओं के लिये लाभकारी बतलाया है। उ०-राम नाम मणि दीप धरु, जीह देहरी द्वार । गया है। तुलसी भीतर बाहिरै, जो चाहसि उजियार । तुलसी क्रि० प्र०-खींचना ।-पीना।-पिलाना | (शब्द०)। २. मत्त खंजन (को०) । ३. दुर्गा का एक नाम (को०)। ४. वसुदेव मदूरा--संज्ञा पुं॰ [ फा० मजदूर ] दे० 'मजदुर' । उ०—-रले घमवा स० go ।