पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/५९

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फिरकैग ३२६८ फिरनी विशेष-जब जोड के दोनों हाथ गर्दन पर हो अयवा एक हाथ संयो॰ क्रि०-भाना ।-जाना |-पढ़ना । गर्दन पर और एक भुजदंड पर हो तब एक हाथ जोड़ की ६. किसी मोल ली हुई वस्तु का अस्वीकृत होकर बेचनेवाले को गर्दन पर रखकर दूसरे हाथ से उसके लँगोटे को पकड़े और फिर दे दिया जाना। वापस होना । जैसे,-जब सौदा हो उसे सामने झोंका देते हुए बाहरी टांग मारकर गिरा दे। गया तव चीज नही फिर सकती। फिर कैयाँ-संशा स्त्री० [हिं० फिरकी ] चक्कर । संयो० क्रि०-जाना। फिरता'-सज्ञा पु० [हिं० फिरना-] [स्त्री० फिरती ] १. वापसी। ७. एक ही स्थान पर रहकर स्थिति वदलना। सामना दूसरी २. अस्वीकार । जैसे, हुंडी की फिरती । तरफ हो जाना । जैसे,-धक्का लगने से मूर्ति का मुह उधर फिरता-वि० वापस | लौटाया हुआ । जैसे,—लिया हुमा माल फिर गया। कही फिरता होता है ? संयो० कि०-ज ना। क्रि० प्र०-करना |- होना । ८. किसी प्रोर जाते हुए दूसरी पोर चल पाना । मुड़ना। फिरदोस-संशा पुं० [५० फिरदौस ] दे० 'फिरदौस' । उ०-जो घूमना । चलने में रुख बदलना । जैसे, कुछ दूर सीधी गली रखी फिरदोस पर टुक इक नजर | गैव का हातिफ ने यूं लाया में जाकर मंदिर की ओर फिर जाना। खबर ।-दविखनी०, पृ० १७८ । संयो० कि०-जाना। फिरदौस - सज्ञा पुं० [अ० फ़िरदौस ] स्वर्ग । उ०-आज वह फिरः महा-किसी थोर फिरना = प्रवृत्त होना । मुकना। मायल दौस सुनसान है पड़ा ।-अनामिका, पृ० ६२ । होना । जैसे,—उसका क्या, जिधर फेरो उपर फिर जाता है। फिरदौसी-सज्ञा पु० [अ० फ़िरदौसो ] ईरान का एक प्राचीन २० तसि मति फिरी महइ जसि भावी । -तुलसी (शब्द०) कवि जिसका नाम अबुल कासिम तुसी था और जिसने फारसी जो फिरना = चित्त न प्रवृत्त रहना । उचट जाना । हट जाना । का प्रख्यात महाकाव्य 'शाहनामा' लिखा था। विरक्त हो जाना। फिरना-क्रि० स० [हिं० फेरना का अक० रूप ] १. इधर उधर ६. विरुद्ध हो पड़ना। खिलाफ हो जाना। विरोध पर उद्यत चलना। कभी इस प्रोर कभी उस घोर गमन करना । इधर होना । लड़ने या मुकाबला करने के लिये तैयार हो बाना । उधर डोलना । ऐसा चलना जिसकी कोई एक निश्चित दिशा जैसे,-बात ही बात में वह मुझसे फिर गया। न रहे । भ्रमण करना । जैसे,—(क) वह धूप में दिन भर फिरा करता है । (ख) पद चदा इकठ्ठा करने के लिये फिर मुहा०-(किसी पर) फिर पहना = विरुद्ध होना। कद होना । बिगड़ना । रहा है । ७०-(क) खेह उड़ानी जाछि घर हेरत फिरत सो खेह । जायसी (शब्द०)। (ख) फिरिहहिं मग जिमि जीव १०.पौर का पौर होना । परिवर्तित होना। बदल जाना। दुखारी । तुलसी (शब्द॰) । (ग) फिरत सनेह मगन सुख उलटा होना । विपरीत होना । जैसे, मति फिरना । उ०- अपने । —तुलसी (शब्द०)। २. टहलना। विचरना। सैर काल पाह फिरति दसा, दयालु ! सव ही फी, सोहि बिनु करना । जैसे,-संध्या को इधर उधर फिर पाया करो। मोहिं कबहूँ न कोउ चहैगो ।—तुलसी (शब्द०)। यौ०-घूमना फिरना। संयो॰ क्रि०-जाना। ३. चक्कर लगाना । बार बार फेरे खाना । लव की तरह एक 'मुहा०-सिर फिरमा = बुद्धि भ्रष्ट होना । उन्माद होना। ही स्थान पर घूमना प्रथवा मंडल बांधकर परिधि के किनारे ११. वात पर दृढ़ न रहना । प्रतिज्ञा पादि से विचलित होना। घूमना । नाचना या परिक्रमण करना । जैसे, लट्ठ का फिरना, हटना । जैसे, वचन से फिरना, कोल से फिरना । घर के चारों ओर फिरना । उ०—(क) फिरत नीर जोजन संयोकि०-जाना। लख वाका। जैसे फिर कुम्हार के चाका ।—जायसी १२. सीधी वस्तु का किसी प्रोर मुड़ना । झुकना । टेढ़ा होना । (शब्द॰) । (ख) फिर पांच कोतवाल सो फेरी । का पांव जैसे,—इस फावड़े फी घार फिर गई है। चपत वह पोरी।जायसी (शब्द०)। ४. ऐंठा जाना। मरोड़ा जाना । जैसे, -ताली किसी मोर को फिरती ही नही संयो॰ क्रि०-जाना । है। ५. लौटना । पलटना। वापस होना। जहां से चले थे १३. चारो पोर प्रचारित होना। घोषित होना। जारी होना। उसी ओर को चलना । प्रत्यावतित होना । जैसे,—(क) वे सबके पास पहुंचाया जाना । जैसे, गश्ती चिट्ठी फिरना, घर पर मिले, नहीं मैं तुरंत फिरा। (ख) प्रागे मत बानों, दुहाई फिरना । उ०—(क) नगर फिरी रघुबीर दुहाई।- घर फिर जामो । उ०—(क) माय जनमपत्री जो लिखी। तुलसी (शब्द॰) । (ख) भइ ज्योनार फिरी खंडवानी।- देव प्रसीस फिरे ज्योतिषी ।-जायसी (शब्द॰) । (ख) पुनि जायसी (शब्द०)। १४. किसी वस्तु के कार पोता जाना । पुनि विनय करहिं कर जोरी । जो यहि मारग फिरिय बहोरी । लीप या पोतकर फैलाया जाना । चढ़ाया जाना । जैसे, दीवार —तुलसी (शब्द०)। (ग) अपने पाम फिरे तव दोक जानि पर रंग फिरना, जूते पर स्पाही फिरना। १५. यहाँ से वहाँ भई कछु साँझ । करि दंडवत परसि पद ऋषि के वैठे उपवन तक स्पर्श करते हुए जाना । रखा जाना । मांझ। -सूर (शब्द०)। फिरनी-संज्ञा स्त्री॰ [फा० फ़िरनी ] एक प्रकार का खाद्य पदार्थ जो