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पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/६१

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1 फिलफिल ३३०० फीका फिशफिल-संज्ञा स्त्री० [प्र. फिलफ़िल ] मरिच । मिर्च [को॰] । या भाव । चिकनाई के कारण न जमने या ठहरने की क्रिया फिलफौर-क्रि० [अ० फिलफौर ] १. तत्काल । उसी क्षण । २ या भाव । रपठन । २. ऐसा स्थान जहाँ चिकनाई के कारण ईश्वरेच्छया। उ०-गुरु शब्द से फिलफोर रंग पलट हो पर या और कोई वस्तु न जम सके । चिकनी जगह जहाँ जावे।-कबीर म०, पृ० ३६२ । पड़ने से कोई वस्तु न ठहरे, सरक जाय । फिसलना-क्रि० प्र० [सं० प्र + सरण ] १. चिकनाहट और फिलहाल-क्रि० वि० [पं० फिलहाल भभी। इस समय । संप्रति । गीलेपन के कारण पैर प्रादि का न जमना। चिकनाई फिलासफर--संज्ञा पु० [ अं० फिलासफर ] दार्शनिक । उ०-फिला- के कारण पैर प्रादि का न ठहर सकना । सरक जाना । सफर का जोड़ फिलासफर से ही हो सकता है।-गोदान, रपठना। खिसलना । जैसे, कीचड़ में पैर फिसलना, पत्थर पृ० १२६ । पर जमी काई पर शरीर फिसलना। फिलासफी-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [पं० फिलासफी ] १. दर्शन शास्त्र । २. सिद्धांत संयो० कि०-जाना ।—पड़ना । या तत्व की बात । गूढ़ बात । जैसे,—कहने सुनने को तो यह साधारण सी बात है, पर इसमे बड़ी भारी फिलासफी है। २. प्रधृत्त होना । झुकना । जैसे,—जिधर अपना लाभ देखते हो उसी पोर फिसल जाते हो। फिल्म-सज्ञा पु० [अ० फ़िल्म ] १. छाया ग्रहण करनेवाला लेप जो सेल्युलाइड आदि के फीते या प्लेट पर रहता है । २. चित्र या मुहा०-जी फिसलना = मन प्रवृत्त या मोहित होना । चित्रफलक । ३. सिनेमा संबंधी चित्र । छायाचित्र । उ०- फिसलना-वि० जिसपर फिसल जायं। रपटीला । बहुत चिकना । जैसे, फिसलना पत्थर । यह फिल्म तुम्हे बहुत बुरी लगती है ।-सुनीता, पृ० १३२ । फिसलाना-क्रि० स० [हिं० फिसलना] किसी को ऐसा करना कि फिल्माना-क्रि० स० [अं० फ़िल्म से नाम० ] सिनेमा बनाना । वह फिसल जाय। छाया चित्र तैयार करना । उ०—कुछ निर्माताप्रो ने मुशी फिसाद-सज्ञा पुं० [अ० फ़साद ] दे० 'फसाद' । उ०-पाप लोगो प्रेमचंद जी की अन्य रचनाप्रो को फिल्माने की घोषणा भी की।-प्रेम० और गोर्की, पृ० २५६ । ने जो कांटे बोएँ हैं उन्ही का फल है। शहर में फिसाद हो गया है। -काया०, पृ० ३८ । फिल्लाह-वि॰ [ ५० फिल्लाह ] समाप्त । नष्ट । बर्बाद फिसाना-पज्ञा पुं० [ फ़ा० फ़सानह ] कथा । कहानी । उ०- यौ०-फनाफिल्लाह = अस्तित्व न रहना । ब्रह्मलीन । उ०-तव वे जहां एक ओर करुण चित्रों के माकलन में सिद्धहस्त हैं फनाफिल्लाह होव, मारफत मकान ठहराइ के जी । वहाँ पुरमजाक, फबती भरे, गुदगुदा देनेवाले फिसाने लिखने में -पलटू० बानी, पृ० ६० । भी।-शुक्ल अभि० प्र० (साहित्य), पृ० ६२ । (ख) मिस्ले फिल्ली-संज्ञा स्त्री॰ [ देश०] १. लोहे के छड का एक टुकड़ा जो मजनू हाल मेरा भी फिसाना हो गया ।-भारतेंदु में, जुलाहों के करघे में तूर में लगाया जाता है । १२. पिंडली । भा० २, पृ० ८५० । फिश्-अव्य [ अनु० ] धिक् । फिट् । घृणासूचक अव्यय । फिहरिस्त-संज्ञा स्त्री० [फा० फ़िहरिस्त] सूची। सूचीपत्र | बीजक । फिस-वि० [अनु० ] कुछ नही । फींचना-क्रि० स० [अनु० फिच फिच् ] पछारना। कपडे को विशेष-जब कोई प्रादमी बड़ी तैयारी या मुस्तैदी से कोई काम पटककर साफ करना । घोना। उ०—दिल लेकर फिरे करने चलता है और उससे नहीं हो सकता तव तिरस्कार रूप कपड़े सा फीचा |-कुकुर०, पृ० ३० । में यह शब्द कहा जाता है। जैसे,—बहुत कहते थे कि यह फी-अव्य० [अ० फी ] १. प्रति एक । हर एक । जैसे,—(क) करेंगे पर सब फिस । फी पादमी दो भाने लगेंगे। (ख) फी रुपया दो पाना सूद मुहा०—टॉय टाँय फिस = थी तो बड़ी धूम पर हुआ कुछ नहीं । मिलता है। २. से । ३. में । बीच । फिस हो जाना = हवा हो जाना। न रह जाना । जैसे, यौ०-फी कस-प्रति व्यक्ति । फी जमाना = प्राजकल । इन। इरादा फिस होना, मामला फिस होना । दिनों। उ०—फी जमाना अरबी और फारसी में वह सानी फिसकाना-क्रि० प्र० [अनु० फिस ?] श्रीहीन होना । पश्चात् नही रखते । -प्रेमघन॰, भा॰ २, पृ०६० । फी साल = पद होना। फिस हो जाना । फिसफिसाना । उ०-सुंदर प्रतिवर्ष । फो सैकड़ा = प्रति शत । सैकड़ा पीछे । दोक दल जुरै अरु वाजे सहनाइ, सूरा के मुख श्री चढ़े काइर फीका-वि० [हिं० फीका ] १. अरुचिकर । फोका। २. धूमला । दे फिसकाइ ।-सुदर० ग्रं॰, भा॰ २, पृ० ७३६ । मलिन । उ०-चलब नीति मग राम पग नेह निबाहब फिसड़ी-वि० [ अनु० फिस ] १. जिससे कुछ करते धरते न बने । नीक । तुलसी पहिरिय सो बसन जो न पखारे फीक ।- जिसका कुछ किया न हो। जो काम हाथ में लेकर उसे तुलसी (शब्द०)। पूरा न कर सके ।. २. जो काम मे पीछे रहे। जो किसी फीकरिया-वि० [हिं० फीका ] [ वि० स्त्री० फोकी ] नीरस । वात में बढ़ न सके। रसहीन । फीका । उ०-वालवावा देसण जहाँ फोकरिया फिस फिसाना-क्रि० प्र० [अनु० फिस ] १. फिस होना। २. लोग । एक न दीसइ गोरियाँ, घरि घरि दीसह सोग । ढीला पड़ना । शिथिल होना । जोर के साथ न चलना। -ढोला०, दु० ६६५। फिसलन-तशा स्त्री० [हिं० फिसलना ] १. फिसलने की क्रिया फीका-वि० [ सं० अपक्व, प्रा० अपिक्क ] १. स्वादहीन । सीठा । !