पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/६६

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फुरफुर ३३०५ फुलंदर फुरफुर-सज्ञा स्त्री॰ [ अनु०] १. उड़ने में परों को फरफराहट से - २. फड़फडाहट । फडकने का भाव , फड़कना। उ०-फर कि उत्पन्न शब्द । डैनो का शब्द । २. पर आदि को रगड़ से फरकि वाम वाहु फुरहरी लेत खरकि, सरकि खुले मैन सर उत्पन्न पान्द। खोजहै ।-देव (शब्द०)। फुरफुराना'-कि० अ० [पनृ० फुरफुर १. फुरफुर करना। क्रि० प्र०-खाना।-लेना । उडकर परों का शब्द करना । जैसे, चिहियों या फतिंगों का ३. कपड़े प्रादि के हवा में हिलने की क्रिया या शब्द । फरफरा- फुरफुगना । २. किसी हलकी छोटी वस्तु (जैसे, रोएँ, बाल हट । ४. कंपकपी । फुरेरी । कंप घऔर रोमांच । दे० 'फरेरी' पादि) का हवा में इधर उधर हिलना । हलकी वस्तु का उ०-नहिं अन्हाय नहिं जाय घर चित चिहुट्यो तकि तीर । लहराना। परमि फुरहरी ले फिरति विसति घंसति न नीर ।-विहारी फुरफुराना-क्रि० स० १. पर या और कोई हलकी वस्तु हिलाना (शब्द०)। जिससे फुर फुर शब्द हो । जैसे, पर फुरफुराना । २ कान मुहा०-फुरहरी लेना = (१) कांपना । थरथराना । (२) फड़- में रूई की फुरेरी फिराना । जैसे,—कान में खुलजी है तो फडाना । फड़कना । (३) होशियार होना । फुरेरी सालकर फुरफुरायो। ५. दे० 'फुरेरी'। फुरफुराहट-सज्ञा स्त्री॰ [अनु० ) फुरफूर शब्द होने का भाव । फुरहरू -संज्ञा पुं० [हिं०] दे॰ 'फुरहरी'-४। उ०-सरित पंख फड़फडाने का भाव । तीर मीतहि निरखि हरपि हरषि हंसि देत । नीर तरफ फुरफुरी-मंज्ञा स्त्री॰ [ अनु० ] 'फुर फुर' शब्द होने का भाव । पंख तकि तकि रहत, फेर फुरहरू लेत ।-स० सप्तक, पृ० ३७६ । फड़फड़ाने का भाव । उ०-राजा के जी में घमंड की चिड़िया फुराना-फ्रि० स० [हिं० फुर से नाम०] १. सच्चा ठहराना । ने फिर फुरफुरी ली। शिवप्रसाद (शब्द०)। ठीक उतारना । २. प्रमाणित करना। मुहा०-फुरफुरी लेना-उड़ने के लिये पंख हिलाना । फुराना-फ्रि० प्र० दे० 'फुरना'। फुरमान-संज्ञा पुं॰ [ फ़ा० फरमान ] १. राजाज्ञा । अनुशासनपत्र । फुरुहुरा-संज्ञा पुं० [हिं० ] फरहरा । झंडा । उ०—विचित्रावरक २. मानपत्र । सनद । ३. प्राज्ञा । आदेश । उ०-मंगल फुरुहुरा कइसन देपुजनि कांचन गिरिका शृंग मयूर नचइतें उत्पति आदि का सुनियो संत सुजान । कहे कबीर गुरु जाग्रत अछ ।-वर्ण, पृ० ७॥ समरथ का फरमान-कबीर (शब्द०)। फुरेरी 1-सज्ञा स्त्री॰ [हिं० फुरफुराना] १. सींक जिसके सिरे पर फुरमाना-फ्रि० स० [फा० फ़रमान ] कहना । आज्ञा देना। हलकी रुई लपेटी हो और जो तेल, इत्र, दवा प्रादि में डुबो- दे० 'फरमाना' । उ-तब नहि होते गाय कसाई । बहु कर काम में लाई जाय । २. सरदी, भय प्रादि के कारण बिसमिल्लह किन फुरमाई ।-कीर (शब्द०)। थरथराहट होना और रोंगटे खड़े होना। रोमांचयुक्त फंप । उ०-रह रहकर शरीर पर फुरेरी दौड़ जाती थी।-फूलो०, फुरसत-संज्ञा स्त्री० [अ० फुरसत ] १. अवसर । समय 1॥२. पास पृ० १६ । में कोई काम न होने की स्थिति । किसी कार्य में म लगै रहने की अवस्था । काम से निपटने या खाली होने की मुहा०-फुरेरी थाना = झुरझुरी होना। सरदी, डर धादि के हालत । अवकाश । निवृत्ति । छुट्टी । जैसे,—इस वक्त फुरसत कारण फंपकपी होना। फुरेरी लेना % (१) सरदी, भय पादिक कारण फापना । कँपकँपी के साथ रोगटे खट्ट नहीं है, दूसरे वक्त माना। करना । परपराना । (२) फड़फटाना । फड़कना । हिलना । क्रि० प्र०-देना।-पाना ।—मिलना ।-होना । (३) होशियार होग । चौंकना । एकबारगी संगल जाना। मुहा०-फुरसत पाना= नौकरी से छूटना। बरखास्त होना । (लश०)। फुरसत से = खानी वक्त में । घोरे धीरे । बिना फुर्ती-संज्ञा स्त्री० [सं० स्फूर्ति ] दे० 'फरती' । उतावली के । जैसे,—यह काम दे जायो, मैं फुरसत से करूंगा। फुर्माना -क्रि० स० [हिं० फरमाना, फुरमाना ] दे० 'फरमाना' । ३. बीमारी से छुटकारा । रोग से मुक्ति पाराम । उ०-अन्दाता जी! या बात आपका फुर्मावा लायक नहीं है।-श्रीनिवास ग्रं॰, पृ० १६ । फुरहरना -क्रि० प्र० [सं० प्रस्फुरण ] १. स्फुरित होना। निफ- लना। प्रादुभूत होना। उ०—छप्पन कोटि वसदर घरा। फुर्सत-संज्ञा स्त्री० [ भ० फुरसत ] दे० 'फुरसत' । सवा लाख पर्वत फुरहरा । —जायसी (शब्द०)। २. दे० फुलंगो-सज्ञा म्बी० [ हिं० फुल ? या देश० ] पहाडी में होनेवाली 'फरहरना। जंगसी मांग का वह पौधा जिसमें बीज बिलकुल नहीं लगते । फुरहरी-संज्ञा स्त्री० [पनु०] १. पर को फुलायर फड़फड़ाना । कलगो का उपटा। उ०-सबै उड़ान फुरहरी खाई। जो भा पंख पाँख सन खाई। फुलंदर-सज्ञा पुं० [हिं० फूज + इदर या नर (प्रत्य॰)] पुष्पों -जायसी (शब्द०)। में इंद्र-कमल । उ०-मनसा फूल फुलंदर लागी। बाड़ी क्रि० प्र०-खाना ।-लेना। इस विधि सींचो माली ।-रामानंद०, पृ० १४ ।