पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/८३

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फैसिज्म ३३२२ फोटो फैसिज्म-संज्ञा पु० [अ० फासिज्म ] दे० 'फासिज्म' । फोकट-नि. [ हिं० फोक ] तुच्छ । जिसका मुछ मूल्य न हो। नि सार । व्यर्थ । उ०—(क) सल प्रबोध जग सोध मन को फौक'-सज्ञा पु० [ मं० पुल ] तीर के पीछे की नोक जिसके पास पर लगाए जाते हैं और जिसे रोदे पर चढाकर चलाते हैं। निरोध कुल सोध । करहिं ते फोकट पचि मरहिं सपनेह इस नोक पर गड्ढा या खड्डो बनी रहती है जिसमें धनुष सुख न सुबोध । -तुलसी (शब्द०)। (ख) कलि में न की डोरी बैठ जाती है। उ०-(क) परिमल लुब्ध विराग न ज्ञान कह सब लागत फोकट झूठ जटो |-तुलसी | मधुप जहं बैठत उड़ि न सकत तेहि ठांते । मनहे' मदन के हैं (शब्द०)। (ग) जोरत ये नाते नेह फोकट फोको । देह के शर पाए फाक वाहरी घातें । -सूर (शब्द०)। (ख) दाहक गाहक जी को।-तुलसी (शब्द०)। (घ) करम शोभन सिंगार रस की सी छीट सोहे फोक कामशर की सी कलाप परिताप पाप साने सब ज्यों सुफूल फले रूख फोकट कही युगतिनि जोरि जोरि ।-केशव (शब्द॰) । (ग) फरनि । दभ लोभ लालच उपासना बिनासिनी के सुगति समर मे अरि गज-कुभन मे हनी तीर फोक लो समात वीर साधन भई उदर भरनि ।—तुलसी (मन्द०)। ऐसो तेजधारी है ।--गुमान (शब्द०)। (घ) वान करोर मुहा०-फोकट का = (१) बिना परिश्रम का। (२) बिना एक मुंह छूटहि । बाजहिं जहां फोक लहि फूटहिं ।- मूल्य का । मुफ्त । जस,--या यह फोकट का है जो यो ही जायसी (शब्द०)। दे दें। फोकट मे = विना श्रम और पोर व्यय के । मुफ्त में। फौकर- वि० [ देश० ] दलालो की बोली में 'चार' । यो ही। फोकलाय-वि० [ देश० ] चौदह । ( दलाल )। फोकरा-वि० [हिं० फोs ] वेकार । निस्सार । तुच्छ । उ०- फोंका-राज्ञा पु० [सं० पुस या हि. पुंकना] १. लवा और पोला जो कोई गाहक लेत प्यार नौ ताको भागे सोकरा । सुंदर चोगा। फोफी। २. मटर मादि पीली डंठलवाले शस्यों की वस्तु सत्य यह यों ही पोर बात सब फोकरा ।-सुंदर ग्रं०, फुनगी । ३. दे० 'फका'। भा०२, पृ०६१४ । कि० प्र०-लगाना।-मारना ।-देना।—करना ।- फोकला-संज्ञा पुं० [० वल्कल, हिं० घोकला ] [सी० फोकलाई] ४. दे० 'सरफोका' किसी फल प्रादि के रूपर का छिलका। फोका गोला-सज्ञा पु० [हिं० फोक + गोला ] तोप का लंवा फोकलाई +-सशा नी० [ म० वल्कल, हिं० फोकला ] छिलका या निस्सार वस्तु । उ०-जैसी भांति काठ धुन लागे बहुरी रहै फौदना-सज्ञा पुं० [हिं० फुदना ] फुदना | उ०-ता पर कलसा फोकलाई।-मलूक० वानी, पृ० १६ । फूलनि के फोदना विराजें। छीत०, पृ० २७ । फोकस-संश पु० [सं० फोकस ] १. वह बिंदु जहाँपर प्रकाश की फौदाल-सज्ञा पु० [हिं० ] दे० 'फुदना', 'फूदना' । गावत मलार छितराई हुई किरनें एकत्र हो। इस विदु पर ताप और प्रकाश की मात्रा अधिक हो जाती है जैसे उन्नतोदर वा सुराग रागिनी गिरिधरन लाल छबि सोहनो। पंच रंग वरन भातशी शीशे में दिखाई पड़ता है। २. फोटो लेने के लिये वरन पाटहि पवित्रा विच विच फोंदा गोहनो।-सूर (शब्द०)। लेंस द्वारा उस वस्तु को छाया को, जिसका छायाचित्र सेना है, नियत स्थान पर स्थित रूप से लाने की क्रिया। फोफरा-वि० [अनु०] १. पोला। सावकाश । २. फोक । नि.सार । क्रि० प्र०-लेना। फोफो/-संज्ञा स्त्री० [अनु० ] १. गोल लबी नली। छोटा चोगा। फोग-संशा, पुं० [ देश ] एक प्रकार का क्षुप । एक पौधा । ३० 'फोक' । उ०—(क) करहा नीरूं जउ चरइ, कटालउ नई २. बांस की नली जिससे सोनार, लोहार आदि प्राग धौकते हैं । ३. नाक में पहनने की पोली कील । छुदी। फोग । नागर बेलि विहां लहइ, थारा थोबड़ जोग ।- ढोला०, दू० ४२८ । (ख) फोग केर काचर फली, पापड़ गेघर फॉक-सज्ञापुं० [ स० स्फोट वा सं० वल्कल, हिं० घोकला, फोकला ] पात ।-यांकी००, भा० २, पृ० ६७ । १. सार निकल जाने पर बचा हुआ अंश । वह वस्तु जिसका रस या सत निकाल लिया गया हो । सीठो । २. भूसी । तुष । फोगट-वि० [हिं० फोकट ] दे० 'फोकट'। उ०-घडियक करे वह वस्तु जिसमें छिलका ही छिलका रह गया हो, असल प्रभु दिस धूप लिखमण दिस घरे । फोगट दुई मोडा फेर चकी जिम फिरे ।-रघु० २०, पृ० १२८ । चीज निकल गई हो । ३. बिना स्वाद की वस्तु । फोकी या नीरस चीज। फोट-सज्ञा पुं० [सं० स्फोट ] दे० 'स्फोट'। फोक-संज्ञा पु० [ देश० ] एक तृण जिसका साग बनाकर लोग फोटक-वि० [हिं०] १० 'फोकट' । खाते हैं । सूक्ष्मपुष्पी। फोटा-संज्ञा पु० [? ] टीका । बिदी। विशेष-यह मारवाड की ओर होता है तथा रेचक और ठंढी फोटो-संशा पु० [अं० फ़ोटो ] फोटोग्राफी के यंत्र द्वारा उतारा माना जाता है । वैद्यक मे यह रक्तपित्त और कफ का नाशक हुमा चित्र । छायाचित्र । प्रतिबिंब । कहा गया है। कि० ०-उतारना ।-खींचना । गोला। खोख ।