पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/८५

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फोड़ा ३३२४ फोनोग्राफ हो । जैसे, कटहल फोड़ना, फोड़ा फोडना, सिर फोड़ना। व्रण बहुत दुगंधयुक्त होता है और उसमें दाह, प्यास और उ०-सूर रहै रस अधिक कहे नहिं गूलर को सो फल फोरे । पसीने के साथ ज्वर भी होता है । कफज व्रण पीलापन लिए -सूर (शब्द०)। गीला, चिपचिपा और बम पीडावाला होता है। मुहा०—खि फोड़ना = प्राख नष्ट करना । अांख को ऐसा फर फोड़िया-सञ्ज्ञा पु० [हिं० फोड़ा, वा स० पीढिका] छोटा फोड़ा । फुनसी। डालना कि उससे दिखाई न दे । फोता-दि० [अ० फौत ] खत्म । समाप्त । उ०-इन लोगों की ३. केवल प्राघात या दवाव से भेदन करना। धक्के से दरार दिल्लगी मे मेरा मतलब फोत हुना जाता है ।-श्रीनिवास डालकर उस पार निकल जाना । जैसे,--(क) पानी बांध ग्र०, पृ०४७॥ फोड़कर निकल गया। (ख) गोली दीवार फोड़कर निकल फोता-संज्ञा पु० [फा० फ़ोतह ] १. पटुका । कमरवद । २. पगड़ी। गई । उ०—(क) पाहन फोरि गंग इक निकली चहुँ दिसि सिरबद । ३. वह रुपया जो प्रजा उस भूमि या विच के लिये पानी पानी । तेहि पानी दुइ परबत बूड़े दरिया लहर समानी जो उसके अधिकार या जोत में हो राजा पा जिमीदार को -कबीर (शब्द०) । (ख) ब्रह्मरंध्र फोरि जीव यो मिल्यो दे। पोत । उ०-साँचो सो लिखवार कहावै। काया ग्राम बिलोकि जाय । गेह चूरि ज्यो चकोर चद्र मे मिल्यो उड़ाय । मसाहत करिकै जमा बांधि ठहरावं । मन्मथ करे कैद अपनी -केशव (शब्द०)। मे जान जहतिया लावै। मांडि मांदि खलिहान क्रोध को विशेष - किसी धारदार वस्तु (तलवार, तीर, भाला) के चुभ फोता भजन भरावै । —सूर (शब्द०)। ४. थैली। कोष । या घसकर उस पार होने को फोड़ना नही कहेगे। थैला। ५. अडकोश। ४. शरीर मे ऐसा विकार या दोष उत्पन्न करना जिससे स्थान फोतेदार-सशा पु० [ फा० फीतह दार ] १. खजाची। कोषाध्यक्ष । २. तहबीलदार । रोकड़िया । स्थान पर घाव या फोडे हो जायें । जैसे,-पारा कभी मत फोन-सञ्ज्ञा पुं० [अ० टेलिफोन का संक्षिप्त रूप ] दे० टेलिफोन' । खाना. शरीर फोड़ देगा। ५. जुड़ी हुई वस्तु के रूप में निकालना । अवयव, जोड़ या वृद्धि के रूप मे प्रकट करना । उ०-रेडियो, तार यो फोन, वाष्प, जल, वायुयान । मिट गया दिशावधि का जिनसे व्यवधान मान ।-ग्राम्या, अकुर, कनखे, शाखा प्रादि निकालना । जैसे, पौधे का कनखे या शाखा फोडना । ६. शाखा के रूप मे अलग होकर किसी फोनोग्राफ-सज्ञा पु० [अ० फोनोग्राफ़ ] एक यंत्र जिसमें पूर्व में पृ० ८८। सीध मे जाना । जैसे,-नदी कई शाखाएं फोड़कर समुद्र में मिली है । ७. पक्ष छुड़ाना । एक पक्ष से अलग करके दूसरे गाए हुए राग, कही हुई बातें और वजाए हुए बाजो के स्वर पक्ष मे कर लेना । जैसे,—उसने हमारे दो गवाह फोड़ लिए। आदि चूढ़ियो मे भरे रहते हैं और ज्यो के त्यों सुनाई ८. साथ छुहाना | संग मे न रहने देना । जैसे,-हम लोग पड़ते हैं। साथ ही साथ चले थे तुम इन्हे कहाँ फोड़कर ले चले? ६. विशेप-यह संदूक के आकार का होता है । इसके भीतर चक्कर भेदभाव उत्पन्न करना। मैत्री या मेल जोल से अलग कर लगे रहते हैं जो चाबी देने से प्रापसे आप घूमने लगते हैं । देना। फूट डालकर अलग करना। १०. गुप्त बात सहसा इसके बीच में एक खूटी या धुरी होती है जिसकी एक नोक प्रकट कर देना। एकबारगी भेद खोलना । जैसे, बात संदूक के ऊपर वीच में निकली रहती है। यत्र के दूसरे पोर फोडना, भंडा फोड़ना। किनारे पर एक परदा होता है जिसके छोर पर सूई लगी फोड़ा-संज्ञा पुं॰ [सं० स्फोटक वा पिडिका, प्रा० फोड़ ] [ स्त्री० रहती है । इसी परदे पर वजाते समय एक चोगा लगा दिया फोडिया ] एक प्रकार का शोथ या उभार जो शरीर में जाता है। कही पर कोई दोष संचित होने से उत्पन्न होता है तथा चूड़ियाँ जिनपर गीत, राग या कही हुई बातें अंकित रहती हैं जिसमें जलन और पीडा होती है तथा रक्त सड़कर पोब के रोटी के आकार की होती हैं। उनपर मध्य से प्रारंभ करके रूप में हो जाता है । व्रण । आपसे आप होनेवाला उभरा परिधि तक गई हुई महीन रेखाम्रो की कुडलियां होती है। हुप्रा घाव। इन चूडियो में आवाज इस प्रकार अकित की जाती या भरी विशेष-सुश्रुत के अनुसार व्रण या घाव दो प्रकार के होते जाती है-एक यंत्र होता है जिसके एक सिरे पर चोगा और हैं-शारीर पोर प्रागंतुक । चरक संहिता में भी निज और दूसरे सिरे पर सूई लगी रहती है । गाने, बजाने या बोलनेवाला आगंतुक ये दो भेद कहे गए है। शरीर वा निज व्रण वह चोंगे की ओर बैठकर गाता बजाता, या बोलता है । उस शब्द घाव है जो शरीर में प्रापसे पाप भीतरी दोष के कारण से वायु में लहरियां उत्पन्न होकर चोंगे के दुसरे सिरे पर की उत्पन्न होता है । इसी को फोड़ा कहते हैं । वैद्यक के अनुसार सूई को संचालित करती हैं। इसी समय चूड़ी भी घुमाई जाती वात, पित्त, कफ या सन्निपात के दोष से ही शरीर के है और उसपर बोले हुए शब्द, गाए हुए राग या बाजे की ध्वनि किसी स्थान पर शारीर व्रण या फोड़ा होता है। दोषों के के कंपनचिह्न सूई द्वारा अंकित होते जाते है । जब फिर उसी अनुसार व्रण के भी वातज, पित्तज, कफज तीन भेद किए गए प्रकार का शब्द सुनना होता है तब वही चूड़ी फोनोग्राफ में हैं। वातज व्रण कड़ा या खुरखुरा, कृष्णवर्ण, अल्पनावयुक्त संदूक के बीच में निकली हुई कील में लगा दी जाती है और होता है और उसमें सूई चुभने की पीड़ा होती है। पित्तज किनारे के परदे में लगी सूई चूड़ी की पहली या मारभ की