बंधन ३३३३ बंधुंजीव धन-वि० १. बांधनेवाला । २. जांचनेवाला या रोकनेवाला। बंधाल-सज्ञा पुं० [हिं० बँधान ] नाव या जहाज में वह स्थान ३. (किसी पर) अवलबित या निर्भर (समासात मे)। जिसमे रसकर या छेदो में से पाया हुपा पानी जमा होता है धनकारी-वि० [ सं० व घनकारिन् ] १. बांधनेवाला । २. भुजपाश और जो पीछे उलीचकर बाहर फेक दिया जाता है । गमत- मे लेनेवाला (को०)। खाना । गमतरी। धनग्रंथि-संज्ञा सी० [सं० बन्धनप्रन्थि ] १. शरीर में वह हड्डी बधिका-संज्ञा स्त्री० हिं० ] दे० 'वधिका'। जो किसी जोड पर हो। २. पट्टो की गाँठ या गिरह (को०)। बंधित'-वि० [ स० बन्ध्या ] बध्या। बॉम । (डि.)। . २. जानवरो को वापने को रस्सी (को०)। ४. फाँस (को०)। वधित-वि० [सं० बन्धित ] १ बंधा हुप्रा । प्रावद्ध । २. बंधन- बधनपालक-संज्ञा पुं० [स० बन्धनपालक ] वह जो कारागार का ग्रस्त । कैद किया हुमा [को०] । रक्षक हो। वधिन-संज्ञा पु० [सं० वन्धित्र] १. कामदेव । अनंग । २. चमड़े का धनरक्षी-संज्ञा पु० [ स० बन्धनरक्षिन् ] जेलर (को०] । पखा । चर्मव्य जन । २ शरीर पर का तिल या चिह्न [को०] । वधनवेश्म-सशा पु० [सं० बन्धनवेश्मन् ] कारागार । जेल [को०] । बंधी'-मंज्ञा पुं० [स० वन्धिन् ] वह जो बंधा हुप्रा हो । जिसमें वधनस्तंभ--संज्ञा पु० [० बन्धनरतम्भ ] जानवरो (विशेषतः) किसी प्रकार का वधन हो। हाथी के बांधने का खूटा [को०। बंधी-वि० बांधनेवाला । पकडनेवाला [को०) । बधनस्थान-सज्ञा पुं० [स० बन्धनस्थान ] घुड़साल । वाजिशाला । बधी-सज्ञा स्त्री० [हिं० घना( = नियत होना)] बंधा हुप्रा क्रम । अस्तवल (को०]। वह कार्यक्रम जिसका नित्य होना निश्चित हो। बधेज । बंधनागार, बधनालय-संज्ञा पु० [सं० वन्धनागार, बन्धनालय ] जैसे,—(क) उनके यहां रोज सेर भर बंधी का दूध प्राता कारागार । जेलखाना (को०)। है । (ख) अाप भी बधी लगा लीजिए तो रोज की झझट से वंधनियु-संज्ञा स्त्री० [सं० बन्धनी ] बांधने या फंसानेवाली वस्तु । छूट जाइएगा। बंघनिक-संज्ञा पुं० [ सं० बन्धनिक ] बधनरक्षी । जेलर (को॰] । क्रि० प्र०-- लगना ।—लगाना । वंधनो-संशा स्त्रो [सं० बन्धनी ] १. शरीर के प्रदर की वे मोटी वधी@४-संज्ञा पुं० [ देशी बंध (= नौकर) ] भृत्य । नौकर । दास । नमें जो संधिस्थान पर होती हैं और जिनके कारण दो प्रव उ०-घरी एक बंधी सुनी पे मुक्कलि प्रथिराज । -पृ० रा०, यव आपस में जुड़े रहने हैं। शरीर का बघन । २. वह २६.५१ । जिससे कोई चीज बाँधी जाय । जैसे, रस्सी, सिक्कड़ आदि । बंधु-संज्ञा पुं॰ [ म० बन्धु ] १. भाई। भ्राता। २. वह जो सदा बंधनीय'--संज्ञा पु० [सं० वन्धनीय ] सेतु । पुल । साथ रहे या सहायता करे। सहायक । ३. मित्र । दोस्त । बंधनीय-वि० जो बांधने योग्य हो । ४. एक वर्णवत्त जिसके प्रत्येक चरण मे तीन भेगण वधनृत्य-संग पु० [ स० बन्धनृत्य ] नृत्य का एक प्रकार [को०] । और दो गुरु होते हैं। इसे दोधक भी कहते है। जैसे,- बंधमोचनिका, बधमोचनी-सज्ञा स्त्री॰ [ स० वन्धमोनिका, बन्ध. वाण न वात तुम्हें हि प्रावे । सोई कही जिय तोहिं जो भावे । का करिहो हम यो हि बरंगे । हैहयराज करी सु मोचनी] एक योगिनी का नाम । करेगे ।-केशव ( शब्द०)। ५. पिता। ६. वधूक पुष्प । बंधयिता-ज्ञा पुं० [सं० बन्धयित ] वधन या कैद मे डालनेवाला ७. पति । स्वामी (को०) । ६. शासक । नियंता । व्यक्ति [को०] । यौ०-बंधुकाम = भाई वधुप्रो से प्रेम रखनेवाला। वधुकृत्य = वधव-संश पुं० [सं० वान्धव, प्रा० बंधव ] बांधव । उ०-मात- स्वजनो का कतव्य । वधुदग्ध = सवधियों द्वारा त्यक्त । पिता ववव दौलत मद, सुत त्रिय जोड़ संधारणो।-रघु० वधुदायाद, वधुवांधव, बधुवगं = भाईबंधु । बंधुभाव = रू०, पृ०१६। वधुता । बंधुहीन = असहाय । बंधा-संज्ञा पुं० [सं० बन्धक ] पानी रोकने का धुस्स । बांध । बधुक-सञ्चा पु० [ स० बन्धुक ] १. दुपहरिया का फूल जो लाल बंधाकि-सशा पुं० [सं० बन्धाकि ] पर्वत । भूधर [को॰] । रंग का होता है। २. दुपहरिया फूल का पौधा । ३. वधान-संज्ञा पुं० [हिं० बँधना ] १. किसी कार्य के होने अथवा अवैध । जारज (को०)। किसी पदार्थ के लेने देने आदि के संबंध में बहुत दिनों से चला आया हुमा निश्चित क्रम या नियम । लेन देन आदि बंधुका, वधुकी-सज्ञा स्त्री० [सं० वन्धुका, वन्युकी ] पुश्चली। स्वैरिणी । बधको [को०] । के संबंध की नियत परिपाटी । जैसे,—यहाँ फी रुपया एक बधुजन-सज्ञा पु० [सं० पन्युजन ] स्वजन । प्रात्मीय [को०) । पैसा आढ़त लेने का बंधान है। २. वह पदार्थ या धन जो इस परिपाटी के अनुसार दिया या लिया जाता है । ३. पानी वधुजीव, बंधुजीवक-सञ्ज्ञा पुं० [सं० वन्धुजीव, वन्धुजीवक ] १. रोकने का धुस्स । बाघ । ४. ताल का सम (संगीत)। उ०- गुलदुपहरिया का पोषा। २. दुपहरिया का फूल । २०- उगटहिं छद प्रबंध गीत पद राग तान बंधान । सुनि किन्नर वधुजीव लागै मलिन भाग विंब प्रवाल । बाल अघर को लाल लखि नलिन कृसित कृस लाल ।-स० सप्तक, पृ० २७० । गंधर्व सराहत विधके हैं विवुध विमान । -तुलसी (शब्द०)।
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