पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/९७

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बगलार ३३३६ बँधना बंगला-संज्ञा पु० १. एकतला फच्चा मकान जिसपर फूस और वितरण करना । २. बांटने की मजदूरी। २. बांटने का भाव । खपड़ों का छप्पर पड़ा हो । २. वह छोटा हवादार और चारो ४. दूसरे को ग्वेत देन का वह प्रकार जिसमे खेत जोतनेवाले से ओर से खुला हुआ एक मंजिल का मकान जिसके चारों मालिक को लगान के रूप में धन नही मिलता बल्कि उपज और बरामदे हो। का कुछ अंश मिलता है। जैसे,—प्रब की बार सब खेत विशेप-पहले इस प्रकार के मकान बंगाल में अधिकता से होते बॅटाई पर उठा दो। थे। उन्ही की देखादेखी अंग्रेज भी अपने रहने के मकान बंटाना-क्रि० स० [हिं० बॉटना ] १. भाग करा लेना । हिम्मा बनाने और उन्हे बंगला कहने लगे । कराकर अपना श्रश ले लेना। २. किसी काम में हिस्सेदार ३. वह छोटा हवादार कमरा जो प्रायः मकानो की सबसे ऊपर- होने के लिये या दूसरे का बोझ हलका करने के लिये शामिल वाली छत पर बनाया जाता है। उ०-बैठे दोउ उसीर होना । जैसे, दुःस बॅटाना। बॅगला में ग्रीषम सुख विलसत दंपति बर ।-व्रजनिधि० मुहा०-हाथ बँटाना = दे० 'हाथ' के मुहा० । ग्रं॰, पृ० १५६ । ४. बंगाल देश का पान । बंगला-मज्ञा स्त्री० बगाल देश की भाषा । बगभाषा । बँटावन-वि० [हिं० /बॅट + प्रावन (प्रत्य०) ] बॅटानेवाला । हिस्सा करानेवाला । बोझ हलका करानेवाला । उ०-बोलत बॅगली-सज्ञा स्त्री० [हिं० घगल ] स्त्रियो का एक प्राभूषण जो नही मौन कह साधी विपति वटावन बीर -सूर (शब्द०)। हाथो में चूडियों के साथ पहना जाता है। उ०-सदा सुहा- वटैया -सज्ञा पुं० [हिं० /बँट+ऐया (प्रत्य॰) ] बॅटा लेनेवाला । गिनि पहिरे चूरी। सुबक पछेली बॅगली हरी ।-व्रज० बंटानेवाला । हिस्सा लेनेवाला । वर्णन, पृ०६। गुरी -सज्ञा म्ली० [हिं० ] दे॰ 'बँगली'। बँड़वाई-वि० [हिं० ] दे० 'वाडा' । बंचनाg+-क्रि० स० [हिं० बाँचना ] बांच लेना । पढ लेना । वेडेर, बँडेरा-संज्ञा पुं० [हिं०] दे० 'बड़ेरी' । सभझ जाना । उ०-ननदी ढिग प्राय नचाय के नैन कछु बड़ेरी-तज्ञा स्त्री० [हिं० बरेडा (= बड़ा) या स० वरदण्ड ] वह कहि बैन ध्रुवै कसि गी। बॅचिगी सब मैं विपरीत कथा लकड़ी जो खपरैल की छाजन में मॅगरे पर लगती है। यह नटनागर फदन मैं फॅसिगी ।-नट०, पृ० ६१ । दोपलिया छाजन में वीचोवीच लंबाई में लगाई जाती है। बंचवाना-क्रि० स० [हिं० बाँचना ] पढवाना । दूसरे को पढ़ने में उ०-पोरी का पानी डेरी जाय । कडा दूबे सिल उतराय । प्रवृत्त करना । दूसरे से पढ़वाना । -कवीर (शब्द०)। बॅचुई -मज्ञा स्त्री॰ [ देश० ] सालपान नाम की झाडी जो भारत बंदरा-संज्ञा पुं० [हिं० ] दे० 'बनरा'। के प्राय: सभी गरम प्रदेशों मे होती है और वर्षा ऋतु मे चदरिया, बॅदरी-सज्ञा जी० [हिं० ] वानर की मादा । फूलती है। बंदूखg -शा पु० [हिं० ] दे० 'बंदूक' । उ०-चले तीर नेजा बँटना' क्रि० प्र० [म० वण्टन या वर्तन] १. विभाग होना । अलग बॅदूखै वरच्छी।-५० रासो०, पृ० १८४ । अलग हिस्मा होना । जैसे,—यह प्रदेश तीन भागो में वेटा है । सं० बन्दी या हि० बद+एरी (प्रत्य॰)] २ कई व्यक्तियो को अलग अलग दिया जाना । कई प्राणियों बदेरा-मशा पृ० [ नी० बँदेरी ] बंदी । कैदी। उधुपा । उ०-परा हाथ के बीच सबको प्रदान किया जाना। जैसे,(क) वहाँ गरीबों दसकंदर बैरी। सो कित छाडि के भई वैदेरी।-जायसी को कपडा बॅटता है । (ख) अब तो सब ग्राम बँट गए, तुम्हारे (शब्द०)। लिये एक भी न बचा। सयो० क्रि०-जाना। बँधना'-कि० प्र० [ स० बन्धन ] १. बंधन मे पाना । डोरी तागे वटना-मंजा पु० [हिं०] दे० 'बटना' । श्यादि से घिरकर इस प्रकार कसा जाना कि खुन या विस्वर न सके या अलग न हो सके। बन होना। छूटा हुअा न बँटवाई-संज्ञा स्त्री० [हिं० /बाँटन वाई (प्रत्य॰) ] बांटने की रहना । बांधा जाना । २. रस्सी प्रादि द्वारा किसी वस्तु के मजदूरी। साथ इस प्रकार संबध होना कि कही जा न सके। जैसे, बँटवाई- २- सज्ञा स्त्री० [हिं० बाटना ] पिसवाने की मजदूरी । घोड़ा बंधना, गाय बंधना। बंटवाना'-क्रि० स० [सं० वण्टन या वितरण ] वांटने का काम संयो॰ क्रि०-जाना। दूसरे से कराना। सबको अलग अलग करके दिलवाना। वितरण कराना। विशेष-इस क्रिया का प्रयोग पन्यान्य अनेक क्रियानो की भांति बँटवाना-कि०म० [स० वर्तन ( = पेपण पोसना)] पिसवाना । उस चीज के लिये भी होता है जो बाँधी जाती है और उसके बॅटवारा-सज्ञा पु० [हिं० बाँट + वारा (प्रत्य॰)] १. बाँटने या भाग लिये भी जिससे बाँचते हैं। जैसे,—सामान बंधना, गठरी करने की क्रिया। किसी वस्तु के दो या अधिक भाग या बंधना, रस्सी बँधना। हिस्मे करना । विभाग। तकसीम । २. अलग अलग होना । ३. कैद होना । बदी होना। अलगौझा। मुहा०-बंधे चले श्राना = चुपचाप कैदियों की तरह या स्वामि- बँटाई-संज्ञा स्त्रो० [हिं० बाँट + श्राई (प्रत्य॰)] १. बांटने का काम । भक्त सेवक की तरह जिधर लाया जाय उधर पाना । उ०-