पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/१०३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

महुल ३८६२ महेल TO । FO महुल -मा पु० [अ० महल ] 'महल' । उ०-रचि महुल मधु- महेंद्र पुरी - अमरावती। इद्र की नगरी । महेंद्रमन्त्री = बृहस्पी रिति मधुग्य भ्रम छडि मडि मु पिथ्थय पृ० रा०,५६ । २२ । का नाम | महेंद्रवारुणी । महेंद्रवाह = ऐरावत हाथी । महुला'-वि० [हिं महुश्रा ] [ सी० मह T] महुए के रग का । महेंद्रनगरी- सज्ञा स्त्री॰ [ महेन्द्रनगरी ] अमरावती । विशेप- इन शब्द का प्रयोग प्राय बैलो, गौग्रो प्रादि के मवध मे महेंद्रव@---मज्ञा पुं० [ म० महेन्द्र ] दे० 'महेद्र' । उ०-तिन = होता है। उपमा कबि चद करी। मनो मेघ महेद्रव वीज झरी ।- महुला-संश पु० वह बैल जिमके शरीर पर लाल और काले रंग के रा०, २५ । ५३३ । बाल हो। महेद्रवारुणी-मज्ञा स्त्री॰ [ स० महेन्द्रवारुणी ] बडी इद्रायण । विशेष-ऐगा वल निकम्मा समझा जाता है। महेंद्राल-सञ्ज्ञा स्त्री० [हिं० महेन्द्र + अलि ] गुजरात की महेंद्र महुव–सञ्चा पु० [सं० मधूक ] २० 'महुआ' उ.--कोइ अंविलि नामक नदी का नाम | कोइ महुव खजूरी-जायमी ग्र० ( गुप्त ), पृ० २४७ । महेंद्रो -सज्ञा स्त्री॰ [ म० महेन्द्रो ] एक नदी का नाम जो गुजरात महवरि- नशा सी० [हिं० महुअर ] महुअर नाम का वाजा। वहती है। इसे महेद्राल भी कहते हैं। तूंबडी । उ०-नै कत तोरचो हार नौसर को । मोती वगरि रहे महेरी - मज्ञा पु० [हिं० मही + एर (प्रत्य॰)] - 'महेरा' । सब बन मे गयो कान की तरको। ए अवगुन जो परत गोकुल महेर-सज्ञा पुं॰ [ देश० ] झगडा । बखेडा । मे तिला दिए केमरि को । ढीट गुवाल दही मे माते ओढन हारि मुहा०-किसी बात या काम मे महेर डालना = (१) अडच कमरि को। जाइ पुकार जसुमति आगे कहत जु मोहन लरिको । डालना । बखेडा खडा करना । (२) देर लगाना । मुर श्याम जानी चतुराई जेहि अभ्याम महुवरि को ।- महर-सज्ञा स्त्री० [हिं०] २० 'महेरी' । मूर ( शन्द०) महरणा--प्रज्ञा स्त्री० [सं० ] शल्लकी का वृक्ष (को०)। महुवा-मज्ञा पुं॰ [ स० मधृत 'महुअा'। महेरा' '-मज्ञा पु० [ हिं, मही + एरा (प्रत्य॰)] [ सी० महेर, महे महूख-मशा पुं० [ स० मधूक ] १ महुआ । उ०—(क) छिनक छवीले महेरी ] एक प्रकार का व्यजन जो दही मे चावल पका लाल वह जो लगि नहि वतराय । ऊख महूख पियूख की तो लगि बनाया जाता है। महेला । महेरी । महेर। भूख न जाय ।-विहारी (शब्द॰) । (ख ) ऊख रम केतकु महूल रस मीठो है पियूखहु की पैलो घाहे जाको नियराइए |-- विशेप-यह दो प्रकार का होता है-सलोना और मीठा । सलो ( शब्द० ) ( ग ) कहाँ ऊख महूख मे एतो मिठास पियूख हूँ ना मे हल्दी, राई आदि मसाले डाले जाते हैं और मीठे हरियाध हहै। जितो चारुता कोमलता मुकुमारता माधुरता गुड पड़ता है। अवरा म अहै।-हरियौव (शब्द॰) । २ मधु । शहद । उ०- २ एक भोज्य पदार्थ जो खेसारी के पाटे को दही मे उबालने महुवा मिश्री दूध घृत अति सिंगार रस मिष्ट । ऊख, महूख, बनता है। ३ मही । मठा। उ०-जस घिउ होइ जराइ पिवृग्व गाने कमव माचो इष्ट |--कराव ग्र०, भा० १, पृ. तस जिउ निरमल होइ । महै महेरा दूरि कर भोग कर सुन १२५ । ३ जठोमधु । मुलेठी । मोह । - जायसी (शब्द०)। महूमा -मज्ञा पु० [अ० मुहिम्म ] युद्ध । चढाई। उ०-दिगविजय - मज्ञा ॰ [ सं० माप+ हिं० एरा ] 20 'महेला' । काज महून को, अरि देस देसन घूम को।-पनाकर ग्र., महेरि t-मज्ञा श्री० [हिं० महेर या मही ] महेरा नामक खाद्य पदार्थ उ.-भोजन भयो भावती मोहन । नातोइ जेईं जाहु र महूमहा--ग्रव्य० [ स० मुह मुहु ] बार वार । पुन पुन । गोहन । सीर खाड खाँचरी मंवारी। मधुर महेरि सो गोप मुहुर्मुहु । उ० प्यारे नटनागर के अतर सम को पाय मोहि प्यारी ।—सूर (शब्द०)। का मतावत है विरहा महू महू |--नट., पृ० ६२ । महेरी -मचा स्त्री० [हिं० महेरा] । उबाली हुई ज्वार जिसे लोग महूरत पु-सज्ञा पु० [ म० मुहूत ] १२ क्षण या २ दड का समय । नमक मिर्च से खाते हैं। 1२ मठे मे उबालो हुई ज्वार ज दे० 'मुहुर्त' । उ०--गगो मिलतां खान मूं, एक महूरत बेर |- मीठी या नमकीन होती है। रा०६०, पृ० ३२७ । महरी-वि० [हिं, महेर ] अडचन डालनेवाला। बखेडा खड महरति पुरसशा पुं० [हिं० ] २० 'मुहूर्त' । उ.- वरती अवर ना हता करनेवाला। कौन या पडित पाम | कौन महूरत थापिया चांद सूर आकाम ।- महेरुह -सज्ञा पुं० [सं० महीरुह ) २० 'महीरुह' । उ०-गो कबीर ( गन्द०)। खाइ दूर मैं परा । मुख मानद महेम्ह हरा ।-इद्रा०, पृ० ८५ महेद-नशा पु० [सं० महेन्द्र ] १ विगु । २ इद्र । ३ भारतवर्ष के महेला' - सज्ञा पुं० [ म० माष ] पशुप्रो को खिलाने का एक पदार्थ एक पर्वत का नाम जो मात कुलपर्वतो मे गिना जाता है। विशेप-यह चने, उर्द, मोठ प्रादि को उवालकर और उसमे गुड महदाचन । घी आदि डालकर बनाया जाता है। इसके खिलाने से घोडे यो०-महेंद्र कदली = एन का केला । महेंद्रनगरी, बैल आदि पुष्ट होते हैं और गौएं भैमे आदि अधिक दूध देती है महरा प्रकार