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पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/१०४

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महेला ३८६३ महोत्सव महेला–मज्ञा स्त्री० [ स० ] स्त्री के०] । महेलिका- सज्ञा स्त्री॰ [ स०] +० 'महेला'२ (को०] । महेश- -सज्ञा पु० [सं० ] १ महादेव । शिव । २ ईश्वर । महेशबधु- सज्ञा पुं॰ [ मं० महेशबन्धु ] वेल । विल्व । महेशसखा - सज्ञा पु० [सं.] कुबेर का एक नाम [को०] । महेशान-सज्ञा पु० [ मं० महा + ईशान ] [ स्त्री० महेशानी ] शिव । महेशानी-सज्ञा स्त्री॰ [ सं० ] दुर्गा । महेशी-सज्ञा स्त्री॰ [ स० महेश्वरी ] महेश्वरी । पार्वती । महेशुर-सञ्चा पु० [ म० महेश्वर ] दे० महेश्वर' । उ०—मैं तोहि कैसे विमरूं देवा ब्रह्मा विश्नु महेशुर ईशा ते भी वछ सेवा।- दरिया. वानी, पृ० ५०। महेश्वर :-सञ्चा पु० [ ] [स्त्री० महेश्वरी ] १. महादेव । शकर । शिव । २ ईश्वर । परमेश्वर । ३ मफेद मदार। मोना । महोत [---मज्ञा पु० [ म° ] बडा बल । महोख-समा पु० [स० मधूक ] दे० 'महोसा' । उ०—(क) हारिल शब्द महोख मुहाग । काग कुगहर करहिं सोसावा ।—जायसी (शब्द॰) । (ख) कूजत पिक मानो गज माते । ढेंक महोख ऊंट विसराते ।—तुलसी (शब्द० महोखा [-मज्ञा पुं० [ मं० मधूक, प्रा० महूक ] एक प्रकार का पक्षी जो कौए के बराबर होता है और भारतवर्ष मे, विशेषकर उत्तरी भारत मे झाडियो और वसवाडियो मे मिलता है विशेप-इसकी चोच, पैर और पंछ काली, आंग्वें लाल और सिर, गला और डैने खैरे रग के या लाल होते हैं। यह झाडियो के पास पास रहता है और कोडे मकोडे खाता है। यह बहुत तेज दौड सकता है, पर बहुत दूर तक नही उड मकता। इसकी वोली बहुत तेज होती है और यह बहुत देर तक लगातार बोलता है। महोगनी-सचा पुं० [अ० ] भारत, मध्य अमेरिका और मैक्सिको आदि मे होनेवाला एक प्रकार का बहुत बडा पेट जो सदा हरा म० स्वर्ण। रहता है। HO प्रकार का उत्तम महेश्वरी-मज्ञा स्त्री॰ [ म० ] पार्वती। महेषुधि-वि० [ स० ] बडा धनुर्धारी। महेष्वास-वि० [ ] वडा धनुर्धारी। श्रेष्ठ योद्धा । महेसी-मज्ञा पु० [ स० महेश ] दे० 'महेश'। उ०-गई समीप महेस तव हंसि पूछी कुसलात ।—मानस, ११५५ । महेसिया-सज्ञा पुं० [हिं० महेश ] एक अगहनी वान। महेसी 2-ज्ञा स्त्री० [ म० महेस + हिं० ई (प्रत्य॰)] महेश्वरी। पार्वती। उ०--हिय महेम जो कहैं महेसी। कित सिर नावहिं ए परदेसी। —जायसी (शब्द॰) । महेसुर-सज्ञा पुं० [ स० महेश्वर ] महेश्वर । शिव । २ माहेश्वर नामक शैव संप्रदाय । उ०-कोई सु महेसुर जगम जती । कोइ एक परखै देवी सती ।-जायमी (शब्द॰) । महै 2-अव्य० [हिं०] ८० 'मह'। उ०-नजर महै सबकी पड़ कोक देस नाहि ।-पलटू०, पृ० ४४ । महैकोद्दिष्ट-सज्ञा पु० [ स० ] वह श्राद्ध जो मरने के बाद पहले पहल अशौच के अंत मे मृत प्राणी के उद्देश्य से किया जाता है। महैतरेय-सहा पु० [ ] ऐतरेय उपनिषद् । महैरड-मशा पु० [ स० महा+ एरण्ढ ] एक प्रकार का बडा रेंड जिसके बीज भी वडे होते हैं। महेला-मशा सी० [ ] वडी इलायची। महोंडा-मञ्चा पुं० [हिं०] १ दे० 'मोहडा' । उ०-और महोंडे प्रागें अस्तो विस्त अभक्षाभक्ष धरयो है । --दो सौ वावन०, भा० १, पृ० ३३० । २ मुख । मुहं । उ०—पाछे वा चुगली करनेवारे को महोटो स्याम होइ गयो।-दो सौ बावन०, भा० १, पृ० १३१ । महोक--सज्ञा पुं॰ [ स० मधूक, हि म्होख, महोखा ] ८० 'महोखा'। विशेप-इसकी लकडी कुछ ननाई लिए भूर रग को, बहुत ही दृढ और टिकाऊ होती है और उमपर वार्निश बहुत खिलती है । यह लकडी बहुत महंगी बिकती है और प्राय मेजें, कुर्सियाँ और सजावट के दूसरे सामान बनान के काम मे पाती है । महोच्छव-सज्ञा पु० [ स० महोत्सव, प्रा० महोच्छव ] वडा उत्सव । महोत्सव । उ०-मरना भला विदेम का जहं अपना नहिं कोय । जीव जतु भोजन कर महज महोच्छव होय ।- कबीर (शब्द०)। महोच्छो-सज्ञा पु० [ स० महोत्सव, प्रा० महोच्छ्व ] दे० 'महो- त्सव' । उ०-कियो मो महोच्छो, ज्ञाति विप्रन को न्योता दियो । भक्तमाल (श्री.), पृ० ३९८ । महोछव-मञ्ज्ञा पु० [ स० महोत्सव, प्रा० महोच्छव ] दे० महो- त्सव' । उ०-कथा कीरतन मंगल महोछव, कर माधन को भीर । -कवीर श०, भा॰ २, पृ० १०६ । महोछा-सज्ञा पुं॰ [ स० महोत्सव ] १ ८० 'महोच्छव' । २ खत्रियो मे होनेवाला उनके एक प्रसिद्ध महात्मा (बागा लालू जसराय) का पूजन जो श्रावण मास के कृष्ण पक्ष मे होता है। महोटिका-सज्ञा स्त्री॰ [ स० ] वृहती । कटया । महोटी-सच्चा स्रो० [ स० ] वृहती। कटैया। महोती-सज्ञा स्त्री॰ [हिं० महुवा ] महुए का फल । कॉदी । गुलंदा । TO to कोयंदा । महोत्का–सज्ञा पु० [ स०] महोल्का । वडी उल्का । महोत्पल-सझा पु० [ मं०] १ बड़े आकार का नील कमल । २. मारम पक्षी [को०] । महोत्सग-सञ्ज्ञा पुं॰ [ स० महोत्सग ] सबमे बटी मख्या । महोत्सव-संशश पु० [सं०] १ बडा उत्सव । २, कामदेव (को०)। ८-१२