पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/१०६

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मांगलैंगीत ३८६५ मांधाता मांगलगीत-सज्ञा पु० [ म० माङ्गल्यगीत ] वह शुभ गीत जो विवाह मांडव्य-सज्ञा पुं॰ [ स० माण्डव्य ] १. एक प्राचीन ऋपि । उ०- आदि मगल के अवसरो पर गाए जाते हो । मगलगीत । विदुर सु धर्मराइ अवतार । ज्यों भयो कहीं सुनो चितधार । मागलिक'-वि० [ स० माङ्गलिक ] [ वि० बी० मांगलिकी ] मंगल माडव्य ऋषि जव शूली दयो। तब सो काठ हरयो ह गयो। प्रकट करनेवाला । शुभ। —सूर (शब्द०)। मागलिक-सज्ञा पु० नाटक-का वह पात्र जो मंगलपाठ करता है । विशेप-बाल्यावस्था के किए हुए पाप के अपराध के कारण मागलीक-- वि० [ स० माङ्गलिक ] दे० 'मागलिक' । यमराज ने इनको शूली पर चढवा दिया था। इसपर ऋाप ने यमराज को शाप दिया कि तुम शूद्र हो जायो, जिससे मुहा०-मागलीक उतारना = बाहर से आए हुए व्यक्ति की मगल भाव से प्रारती उतारना। उ०- राई अगणी राजा पहुंतो यमराज दासी के गर्भ से पडु के यहाँ उत्पन्न हुए थे। जाई । मागलोक उतार हो माई।--वी० रासो, पृ० ६६ । २. एक प्राचीन जाति का नाम । ३. एक प्राचीन नगर का नाम । मागल्य-वि० [ म० माङ्गल्य ] शुभ । मगलकारक । माडहा -सञ्ज्ञा पुं० [ स० मण्डप, हिं० मँढवा ] दे० 'मडप-४' । उ०—ए च्यारह वेद उचरइ चउरी दीसउ माडहा माहि ।- मागल्य-सशा पु० १ मगल का भाव । मागलिकता। २ मगल वी० रासो, पृ० २१ ॥ द्रव्य (को०)। मागल्यकाया-मशा स्त्री॰ [ सं० माइल्यकाया ] १ दूव । २. हलदी। मांडूक-सञ्ज्ञा पुं० [ स० माण्डूक ] प्राचीन काल के एक प्रकार के ब्राह्मण जो वैदिक मडूक शाखा के अतर्गत होते थे। ३ ऋद्वि । ४ गोरोचन । ५ हरें। माडूकायनि- 1-सज्ञा पु० [ सं० माण्डूकायनि ] एक वैदिक प्राचार्य मागल्यकुसुमा- सञ्ज्ञा स्त्री॰ [ स० मागल्यकुसुमा ] शखपुष्पी । का नाम । मागल्यप्रवरा-सञ्ज्ञा सी० स० माङ्गल्यप्रवरा] वच । मांडूक्य-सञ्चा पुं० [ स० माण्डूक्य ] एक उपनिषद् का नाम । मागल्या-सज्ञा स्त्री॰ [ स० मागल्या ] १ गोरोचन । २ शमी का माडूक्य-वि० मडूक सबधी। वृक्ष । ३ जीवती। मात्र-वि० [सं० मान्त्र] १. वेदमत्र सबधी। वेदमत्र का । २. तत्र मागल्यार्हा -सज्ञा स्त्री० [सं० माङ्गल्या[ ] त्रायमाण लता [को॰] । सवधी। तात्रिक (को०)। माजिष्ठ'-वि॰ [ स० माञ्जिष्ठ ] [ वि० सी० माजिष्ठी ] १ मजीठ मात्रिक'-वि० [सं० मान्त्रिक ] मत्र सबधी । मात्र [को०] । का सा । मजीठ के समान । २ मजीठ के रग का । मात्रिक'-सज्ञा पुं० १. वह व्यक्ति जो तत्र मत्रादि का ज्ञाता हो । माजिष्ठ-सञ्ज्ञा पुं० १ लाल रग । मजीठ रग (को०) । २ एक प्रकार २. वह जो वेदमत्रो का ज्ञाता हो (को०] । का मूत्ररोग या प्रमेह जिसमे मजीठ के रग का लाल पेशाब माथर्य-सञ्ज्ञा पुं० [ स० मान्थर्य ] १. मथरता । धीमापन । मुस्ती। होता है। २. कमजोरी । शैथिल्य [को०] । माडप-वि० [ स० माण्डप ] मडप सवधी । मडप का (को०] । माद-सञ्ज्ञा पुं॰ [सं० मान्द] १. तालाव का जल । २. ग्रहो की माडलिक'-सज्ञा पु० [ स० माण्डलिक ],१ वह जो किसी मडल या रवि या चद्र सबधी नाचोच्च या मदाच्च गति । प्रात की रक्षा अथवा शामन करता हो। २ शासनकार्य। ३ वह छोटा राजा जो किसी सार्वभौम या चक्रवर्ती राजा के मादलु-सचा पुं० [स० मद्दल ] दे० 'मादर'। उ०—कबीर सब अधीन हा और उसे कर देता हो। उ०-क्या कोई माडालक जग हो फरया मादलु कव चढाइ ।-कबीर न०, पृ. २६० । हुआ सहसा विद्रोहा ।-साकत, पृ० ४१२ । मादार-वि० [स० मान्दार ] मंदार सबंधी । मदार का । विशेष-शुक्र नीति के अनुसार माडलिक नरेश वे कहे जाते हैं मादार-सज्ञा पुं० मदार का पेढ (ो ! । जिनके राज्य की वार्षिक आय ४ लाख से १० लाख तक मादार्य -मक्षा पु० [ स० मान्दार्य ] वह जो विषयो या रागद्वेप आदि होती है। से परे हो गया हो । वीतराग । माडलिक-वि० [वि० खा. माडलिकी ] मडल सवधी। मडल के माद्य-सज्ञा पुं० [सं० मान्द्य ] १. कमी। न्यूनता | घटी। २ मद शासन से संबद्ध [को०) । होने की क्रिया या भाव । जैसे, अाग्नमाद्य । ३ राग। यो०-माडलिक नृपति = मडल का वह राजा जो किसी वडे राजा के अधीन हो । सामत । उ०-इससे स्पष्ट है कि परमारवश का माधाता-सञ्ज्ञा पुं॰ [ सं० मान्धात ] एक प्राचीन मूर्यवशा राजा जा प्रतिष्ठापक उपेद्र या कृष्णराज, प्रारभ मे प्रतीहासे या राष्ट्रकूटो युवनाश्व का पुत्र था और जिसका राजधानी अयाध्या म था। का माडलिक नृपति (सामत) रहा होगा। आदि०, उ.-कयो माधाता सो जाइ । पुत्री एक देहु माहे राइ।- पृ०५३३ । सूर (शब्द०)। माडवी-सज्ञा स्त्री॰ [ न० माण्डवी ] राजा जनक के भाई कुशध्वज विशेष - कहते है, राजा युवनाश्व कोई संतान न हाने पर भी की कन्या जो भरत को व्याही थी। उ०-माडवी चित्तचातक ससार त्याग कर वन मे ऋषियो के साथ रहन लगा था। ऋापा। नवावुद बरन सरन तुलसीदास अभयदाता ।-तुलसी (शब्द॰) । ने उसपर दया करके उसक घर सतान हान के लिये यज्ञ किया बीमारी।