मांसतान ३८६७ मांसर्सवात गोरवा। मासमड-मंज्ञा पु० [ म० ] माम का झाल यो रमा। यखनी। H9 HU सव मासतान-सज्ञा पु० [स०] एक प्रकार का भीपण रोगे । विशेप-वैद्यक के अनुसार इस रोग मे गले मे सूजन होकर चारो ओर फैल जाती है जिसमे बहुत अधिक पीडा होती है । इससे कभी कभी गले की नाडी घुटकर बद हो जाती है और रोगी मर जाता है। मासतेज-सज्ञा पुं० [सं० मासतेजस् ] चर्बो। मासदलन-सज्ञा पु० [सं० ] प्लीहन्न वृक्ष (को०) । मासद्रावी-सज्ञा पु० [सं० मासदाविन् ] अम्लवेत । मासधरा-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [ स० ] मुश्रुत के अनुसार शरीर के चमडे की सातवी तह जो स्थूलापर भी कहलाती है। मासनिर्यास-संज्ञा पुं० [ ] शरीर के बाल । रोम (को०) । मासप-सञ्ज्ञा पु० [ स०] पिशाच या राक्षस (को॰] । मासपचन-सज्ञा पु० [ स० ] मास पकाने का बरतन [को०) । मासपाक-सञ्ज्ञा पु० [स०] एक प्रकार का लिंग का रोग जिममे लिंग का मास फट जाता है और उसमे पीडा होती है। मासपिड-मज्ञा पु० [ स० मासपिण्ड ] १ शरीर । देह । २ मास का पिंड या लोदा (को०)। मासपिंडी-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [स० मासपिण्ड हि०+ ई] शरीर के अदर होने- वाली मास की गाँठ। विशेप-कहते हैं, पुरुपो के शरीर मे इस प्रकार की ५०० और स्त्रियो के शरीर मे ५२० गांठें होती है। मासपिटक-सञ्ज्ञा पुं० [स० ] १ मास की टोकरी। २ ढेर का मास [को०] | मासपित्त-सज्ञा पु०[ स० ] हड्डी। मासपुष्टिका-सज्ञा स्त्री॰ [स०] एक प्रकार का पौधा जिसमे मुदर फूत लगते हैं और जिसे 'भ्रमरारि' भी कहते है। मासपेशी-सज्ञा स्त्री० [सं०] १ शरीर के अंदर होनेवाला । मासपिंड । विशेष दे० 'मास'। उ०-मासपेशी अर्थात् मास- वोटी जो है सो बल करती है। --शाङ्गपर०, पृ० ५१। २ भावप्रकाश के अनुसार गर्भ की वह अवस्था जो गर्भधारण के सात दिनो के बाद होती है और प्राय एक सप्ताह तक रहती है। मासफल-सज्ञा पु० [ म०] तरवूज । मासफला-सज्ञा स्त्री॰ [ स०] १ भिंडी। २ भटे का पौधा (को०) । मासभक्ष-सज्ञा पुं॰ [ स० ] १, वह जो मास खाता हो । मामाहारी । २ पुराणानुसार एक दानव का नाम । मासभक्षी-सशा पुं० [स० मांसभक्षन्मास खानेवाला । मामाहारी। गोश्तखोर । मासभेत्ता-वि० [म० मासभेतृ ] मास काटनेवाला [को०) । मासभेदी-वि० स० मांसभेदिन् ] मामभेत्ता। मासभोजी-सञ्ज्ञा पुं० [सं० मासमोजिन् ] मास खानेवाला । मासाहारी। मासमासा-पज्ञा स्त्री॰ [ स०] मापपर्णी । मासयोनि-सज्ञा पु० [ ] रक्त मास से उत्पन्न जीव । मासरक्ता मज्ञा स्त्री॰ [म०] मासरोहिणी । रोहिणी । मासरज्जु-सज्ञा स्त्री० [म.] मुश्रु त के अनुमार शरीर के अदर होनेवाले स्नायु जिनसे माम बंधा रहता है। २ मास का रमा । शोरवा। मासरस-सञ्चा पु० [ म०] मास का रमा । यखनी। शोरव।। मासरुहा-मञ्ज्ञा स्त्री॰ [ म० । मासरोहिणी । मासरोहिणी -सज्ञा सी० [ ] एक प्रकार का जगली वृक्ष । विशेष-इमको प्रत्येक डाली में खिरनी के पत्ना के आकार के सात मात पत्ते लगते हैं और इसके फल बहुत छोटे छोटे होते हैं। वैद्यक मे इस उपण, त्रिदोपनाशक, वीर्यवर्धक, मारक और व्रण के लिये हितकारी माना है। पर्या-अतिरुहा । वृत्ता। चर्मकपा। वसा । प्रहारवल्ली। विकसा। वीरवती। अग्निरुहा। कशामासी। महामासी। मासाहा। रसायनी। सुलोमा । लोमकर्णी । रोहिणी । चद्भवल्लभा। मासल'- वि० [सं० ] १. मास से भरा हुआ। मामपूर्ण ( अग)। जैसे, चूतड, जांघ प्रादि । उ०—गजहस्तप्राय जानुयुगल पीन मासल कूर्मपृष्ठाकार श्रोणी गभीर |-वर्ण०, पृ० ४ । २ मोटा ताजा । पुष्ट । ३ भरा या गदराया हुया । उ०-प्राणो की मर्मर से मुखरित जीवन की मासल हरियाली ।युगात, पृ०२।४ बलवान् मजबूत । दृढ । ५ रक्ताभ । लाल । उ०-पत्रो में मासल रग खिला |-युगात, पृ० ८ । मासल-सज्ञा पु० १ काव्य मे गौडी रीति का एक गुण | २ उडद । मासलता - मचा स्त्री० [ ] १ मासल होने का भाव । २ स्थूलता और पुष्टि । ३ वली । चर्मसकोच (को०) । मासलफला - सज्ञा स्त्री॰ [ म० ] १ भिंडी। २ तरबूज । ३ वैगन । भटा (को०)। मासलिप्त-सज्ञा स्त्री॰ [ स० ] हड्डो। मासवारुणी-सच्चा स्त्री० [ ] वैद्यक के अनुसार एक प्रकार की मदिरा जो हिरन आदि के माम मे बनाई जाती है। मासविक्रय-मचा पु० [सं० ] मास की बिक्री। माम बेचना [को०] । मासविक्रयी-सवा पु० [सं० मासविक्रयिन् ] १ वह जो मास वेचता हो । कमाव । २ वह जो धन क लिये अपनी कन्या या 0 पुत्र वेचता हो। HO मासवृद्धि-सज्ञा स्त्री॰ [ ] शरीर के किमी भग के मान का बढ जाना । जैसे, बेघा, फीलपांव आदि । माससवात-मज्ञा पु० [ स० ] एक प्रकार का रोग जिममे तालू मे कुछ दूपित मास वढ जता है। इसमे पीडा नही होती।
पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/१०८
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