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पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/११६

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माधीन ३८७५ ATS समय। मिली हो। मचला। पर्या माघोन- सज्ञा पुं० [सं० ] [ स्त्री० माघोमी ] पूर्व दिशा । कुचकुची परती माछी बार । फूहर वही मराहिए परसत टपक माध्य-सज्ञा पुं० [ स० ] कुद का फूल । लार | गिरधर (शब्द॰) । विशेप दे० 'मछिया' । माच'-सज्ञा पु० [ स० मञ्च | 2० 'मचान' । उ०-जब यदुपति माछी -सज्ञा स्त्री॰ [ स० मत्स्य ] मछलो । (क्व०)। कुल कमहि मारघो। तिहूं भुवन भयो सोर पमारयो । तुरत माच माजरा-मज्ञा पुं० [अ०] १. हाल ।वृत्तात । २ घटना। ते धरनि गिरायो । ऐमेहि मारत विलम न लाया । -मूर माजल-सञ्ज्ञा पुं॰ [ स०] चाम पक्षी [को०) । ( शब्द०)। माजी-वि० [अ. माजी ] वीता हा काल । अतीत माच-सज्ञा पु० [ स० ] मार्ग । रास्ता । भूतकाल । उ०- सुखन { होवे बाजे माजी व हाल । गु.जश्त्या माचना-क्र. म० । हि० मचना ] दे० 'मचना' । उ॰—(क) का ममाज मे आवे अहवाल । -दक्विनी०, पृ. २३६ । इमि मगर माचत भयो मधुवन के सब ओर ।-गोपाल माजू-सञ्ज्ञा पु० [ फा .] एक प्रकार का झाडी जो यूनान और फारस ( शब्द०) । (ख) द्वादम दिवम चहूं दिसि माच्यो फागु सकल प्रादि देशो मे बहुतायत से होती है। ब्रज माझ । - सूर (शब्द०)। (ग ) बदी कौसल्या दिमि विशेप-इसको प्राकृति मरो को सी हाती है। इसकी डालियो पर प्राची । कीरति जामु सकल जग माचा ।-तुलसी (शब्द॰) । से एक प्रकार का गोद निकलता है जो माजूफल' कहलाता (घ) कह पदमाकर त्यो तिनको अवाइन के, माचि रहे जार है और जिसका व्यवहार रग तथा अोपवि के लिये हाता है। सुरलोकन मे सीर है ।- पद्माकर (शब्द॰) । माजून - सज्ञा सी० [अ०] १. औषध के रूप मे काम पानेवाला माचल'- वि० [हि० मचलना । १. मचलनेवाला । जिद्दी । हठो । कोई मीठा अवलेह । २. वह बरफी या अदले जिसमे भांग उo-महा माचल मारिवे की सकुच नाहिंन माहि। परथी ही प्रण किए द्वारे लाज प्रण की तोहिं । - सूर (शब्द॰) । २ यो०-मा जूनकश = माजून निकालने की खुर्चनी ग्रादि । माजूफल-सज्ञा पु० [फा० मानू - हिं० फल | माजू नामक झाडी का माचल-सशा पु० [ म०] १. ग्रह । २ राग। वोमारी। ३ वदी। गोटा या गोद जो अोध घ तथा रंगाई के काम में आता है। कैदी। ४. ग्राह (को०) । ५ चार । - मायाफला। माईफल । सागरगोटा । माचा -सक्षा पुं० [ म० मञ्च ] बैठने की पीढी जो खाट की तरह वुनी होती हैं। वटी मचिया । माजूर-वि० । अ० माजूर ] १ जिसे किमो सेवा या परिश्रम का फल दिया गया हो । प्रतिफलित । २ असमर्थ | लाचार । विवश । माचिका-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [स] १ मक्खी । २ अमडे का वृक्ष । उ०-वेचारी आँखो से माजूर हो गई थी। – रगभूमि, माचिस-मज्ञा पु० [अ० मैच ] दियासलाई। दियासलाई की तीली भा०२, पृ० ७०४। उ.- इसी तरह सेमल की लकड़ी से माचिस बनाने व विभिन्न माम-वि० [सं० मध्यस्थ ? या माध्मक १] १ मुखिया। मुख्य । प्रकार के खिलौने तैयार करने, बांस से टोकनियाँ व चटाइयाँ उ०-(क) अरी ढाहि ढढीरि माझी कनक्के । -पृ. रा०, श्रादि वनाने के कुटीर उद्योग राज्य के हजागे विद्रित ग्रामो ६१।२१७६ । (ख) माझी वर मरदान मान मरदा मिलि मे पाए जाते है ।- शुक्ल० अभि० ग्र०, पृ० ७५ । तोरन ।-पृ० रा०, ६१। २०७७ । (ग) माझी खिरणक मिजाज, माची - सञ्चा मी॰ [ स० मञ्च ] १. हल जोतने का जुग्रा । वह वे अदवी सार्तृ विसन -बांकी० ग्र०, भा० १, पृ० ६२ । जुआ जो हल जोतते समय बलो के कधे पर रखा जाता है । २ मध्यम्य । उ०-संवरि रकत नैनिहिं भरि चूा। राइ बैलगाडी मे वह स्थान जहां गाडीवान बैठता और अपना सामान हंकारेसि माझा सूया ।—जायसी ग्र०, पृ० ६६ । रखता है । ३ बैठन की वह पीढी जो खाट की तरह वुनी हुई माटक-सज्ञा पुं० [ स० माटक ] नमक का बाजार । नमक को होती है। हाट [को०] । माचीक-सञ्ज्ञा पुं० [सं० ] देवदार । माट' - सज्ञा पु० [हिं० मटका ] १ मिट्टी का बना हुआ एक प्रकार माचीपत्र-सज्ञा पु० [स० ] एक प्रकार का साग जिसे सुरपर्ण भी का वडा वरतन जिसमे रगरेज लोग रग बनाते हैं । इसे 'मठोर' कहते है। भी कहते है। २. माठ । मिट्टी का बहुत बडा बर्तन, जिसमे माछो-सञ्ज्ञा पु० [ म० मत्स्य० प्रा० मच्छ ] मछली। उ०-चारा किसान लोग अन्न भरते है। मेलि धरा जस मा । —जायसी ( गन्द०)। मुहा०—माट बिगड़ जाना = किसी के स्वभाव का ऐसा विगड जाना कि उसका मुवार असभव हो । माछरी'-सञ्ज्ञा पु० [हिं० मच्छर ] दे० 'मच्छड' । माछर-सञ्ज्ञा पुं० [ स० मत्स्य ] दे० 'मछली' । उ०-वह कैलाश २ बडी मटको जिसमें दही रखा जाता है। उ०—(क) सिर दधि माखन के माट गावत गीत नए। कर मांझ मृदग बजाइ मव इद्र कर बासू । जहाँ न अन्न न माछर मांसू ।जायसी नंद भवन गए।-सूर (शब्द॰) । (ख ) एक भूमि ते भाजन (शब्द०)। कुडा करवा हडिया माट । सुदर ग्र०, माछी-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [ सं० मक्षिका ] १. मक्खी। उ०-काँचो रोटी भा० १, पृ. ७३ । - बहु विधि 7