पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/१२५

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माध्यदिन' ३६०२ मान माध्यातिक'- पु[ग] कार्य जी ठोर याद गमय पिया जाता तो। टाहर ने समय दिया पानापार्य, चिपापन पामि | मायातिर'-[१२० ११० मा यानिकी ] ग म य । वापर या गपात ोिग । मान्च'- [10] १ वा चार गुन गप्रदाया में से एक जान पापाय TT पा है। गगता मानने- वारेना निता गार गार पनि होते रहते ।२ गए . रा ३ मरमटा नाम सा| माध्व' - [11 110 माघी ] मीठा । म मिन ।। माध्धक- म० मत या मयुगा नगर । माविक-TH मु. [ 10 ] T Tढा परवाना । माधी'-TAR [10] १ मदिरा । गगा।२ र राप जो या गाई जाना ।। : मधु पटर नाम गो मली। ८ पुगतानुसार एका नाम । " प्रारमा सजूर । ममुपग (0) HTI HIT न। उ.-माची गुदनमा नाला पगाा परत नहु भारी ।-नगार्य०, ६ मावीक माध्यदिन २ = वि०१ मध्य का । बिचना । मन्यम । २ दिा के मध्य का (को०] । माध्यदिनी [-सज्ञा पी० [म० माध्यन्दिनी] शुक्न यजुर्वेद की एा शामा का नाम। माध्यदिनीय-सशा पुं० [१० माध्यन्दिनीय ] नारायण । परमेश्वर । माध्य-वि० [स० ] मध्य का । बीच का। माध्यम-वि० [ म०] [वि० सी० माध्यगी ] मव्य का। गो मध्य में हो। बीचवाला। माध्यम-मग १० वह जिसके द्वारा कोई कार्य गपन हो। कार्यमिति का प्राधार, उपाय या गाधन । उ-यह वह समय है जन ममार की सभी जातिया में ग्रादान प्रदान चल रहा है, मेन मिलाप हो रहा है। सारिन्य गाा माध्यम है।-गीतिका ( भू०), पृ. ५। विशेप-इम अर्थ मे इस शद का प्रयोग बहुत हाल मे होने लगा है। माध्यमक-वि० [ म० ] [५० सी० गाध्यमिका ] म गरौ । 17 का [को०] । माध्यमिक-मज्ञा पु० [40] १ बौद्रा का भेद । विशेप-म वर्ग के नीद्वो का वियाग है निमा पसार्थ गूय उत्पा होते है और अंत मे शून्य हो जाते है। चीन जो प्रतीत होता है, वह केवल उसी समय तक रहता है, पचात् मब शून्य हो जाता है। जैसे, 'घट' उत्पत्ति के पूर्व न तो या और न टूटने के पत्रात् ही रहता है । चोच मे जो ज्ञान होता है, वह चित्त के पदार्थेतर मे जाने से नष्ट हो जाता है। प्रत एक शून्य ही तत्व है। इनगे मन मे मा पदार्थ क्षणिक है और ममस्त समार स्वप्न के समान है। जिन लागा ने निर्माण प्राप्त कर लिया है और जिन्होने नहीं प्राप्त किया है, उन दोना का ये लोग समान ही मानते है । २ मध्य देश । ३ मव्य देशका निवानी । माध्य मक-वि० [वि० सी० माध्यमिकी ] द० 'माव्यगर' । मध्य- वों । जमे, माध्यमिक विद्यालय । माध्यमिक शिक्षा । माध्यस्थ'-मज्ञा पुं० [सं०] १ वह जो दो मनुष्यो या पक्षों के वीच मे पडकर किसी वाद विवाद प्रादि का निपटारा करे। पच । बिचवई । मव्यम्य । २ दलाल | ३ कुटना। ४ व्याह करानेवाला ब्राह्मण । बरेखो। माध्यस्थी-वि० मध्यस्थ । तटस्य । माध्यस्थ्य-मज्ञा पुं॰ [स०] मध्यस्य होने का भाव । मध्यम्यता । माध्याकर्पण-मशा पु० [ म० ] पृथ्वी के मध्य भाग का वह आकर्षण जा मदा सब पदायों का अपनी ओर खीचता रहता है और जिसके कारण सब पदार्थ गिरकर जमीन पर या पडते है। विशेप-इ गलैड के प्रसिद्ध तत्ववेत्ता न्यूटन ने वृक्ष से एक सेव को जमीन पर गिरते हुए देसकर यह सिद्धात स्थिर किया था कि पृथ्वी के मध्य भाग में एक ऐसी ग्राफर्पण पाक्ति है, जिसके द्वारा मव पदाथ, यदि बीच मे कोई चीज वाधक न हो तो, उसकी भोर खिच आते हैं। - पु. [ग] ' माग। २ मयु। मगर । ३ वापसागरा। ४ सग। माध्वोका-1 [०] नग । म वीमधुरा-मझा . [ 10 ] मोठा पनेर । मान-२ . [ 10 ]R Tी पर्व का भार, तीन या नाप श्रादि । पारमाण। २ वर गागन जिनो द्वारा कोई चीज नापी या तानी जार। पमाना । जने, गज, प्राम, मेर प्रादि । ३ गिमा तिपय .. यह समझना कि हमार समान गोई नहीं प्राममान । यहकार । गजेगा। विरोए-न्याय दश यार जो गुण असा मे न हो, उसे श्रम न अपाम गमकार उसो गरग दूसरा से अपन मापको श्रेष्ठ समझ मान पहनाना है। मुहा० मान मथना = मान भग पगा। गव चूर्ण करना। दोगी ताना। 30 - इन जरामध मरनन मम मान मधि चाप चिनु पाज चल इसा पान ।-नूर (शद०) । ४ प्रतिष्ठा । इज्जत । गमा। उ०-भोजन फरत तुष्ट घर उनये राज गान भग टारत ।-पूर (गन्द०)। मुहा०-मान रखना%3D इज्जत रसना । प्राता वरना। उ०- कगरी धार दाम को प्रा बहुत काम । सामा मलमल वाफता उनकुर रागे मान ।-गरधर (श-द०)। यो ०-मान महत आदर सतरावर | प्राता। ५ साहित्य के अनुमा मन म होनेवाला वह विकार जो अपने प्रिय व्यक्ति का काई दाप या अपराध करत देखकर होता है। रूठना । उ०-विधि विध के विकर टर, नही परेह पान । चित फित त ल धरया इतौ इतं तन मान |--विहारी (शब्द॰) ।