पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/१२६

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मानकंद ३६०३ मानना विशेष-मान बहुधा स्त्रियाँ ही करती हैं। अपने प्रेमी को किमी मानग्रथि-मज्ञा स्त्री० [सं० मानग्रन्थि ] १ ईर्ष्या से उत्पन्न कोप । दूसरी स्त्री की ओर देखते अथवा उससे बातचीत करते २ अपराध । जुर्म । देखकर, कोई अभिलपित पदार्थ न मिलने पर अथवा कोई मानचित्र-सज्ञा पुं० [ म०] किसी स्थान का बना हुअा नक्शा । कार्य इच्छानुसार न होने पर ही प्राय मान किया जाता है। जैसे, एशिया का मानचित्र । यह लघु, मध्यम और गुरु तीन प्रकार का कहा गया है । मानज-सज्ञा पु० [स०] क्रोध । मुहा०-मान मनाना = दूसरे का मान दूर करना। रूठे हुए को मानज-वि० मान से उत्पन्न । मनाना। उ० - घरी चारि परम सुजान पिय प्यारी रीझि, मानतरु - सज्ञा पुं० [स०] खेतपापडा। मान न मनायो मानिनी को मान देख रह्यो ।-रघुनाथ (शब्द०)। मान मोरना = मान का त्याग करना। मान छोड मानता-सज्ञा स्त्री० [हिं० मानना+ता प्रत्य॰)] मनौती। मन्नत। देना। उ०—मुख को निहारो जो न मान्यो सो भली करी न क्रि० प्र०-उतारना ।-चढ़ाना ।-मानना । केशोराय की सौ तोहिं जो तू मान मोरिहै । -केशव (शब्द०) ६ पुराणानुसार पुष्कर द्वीप के एक पर्वत का नाम । ७ सामर्थ्य । मानदड-मज्ञा पुं० [सं० मानदण्ड ] वह डडा या लकडी जिमसे कोई चीज नापी जाय । पैमाना । शक्ति । ८ उत्तर दिशा के एक देश का नाम । ६ ग्रह । १० मत्र । ११ आत्मसमान । प्रात्मगौरव (को०)। १२ प्रमाण । मानद-सज्ञा पु० [ मं०] १ विष्णु । २ वह व्यक्ति जो समान वा सबूत (को०)। १३ मानक । मानदइ। उ०- उलझन प्राणो आदर दे। प्रतिष्ठा देनेवाला । प्रियतम । उ०—मान मनावत की धागो की मुलझन का समझू मान तुम्हे । - कामायनी, हू कर, मानद को अपमान । दूनो दुख तिन विनु लहै अभिस- घिता बखान ।-केशव० ग्र०, पृ०४१ । ३ 'या' अक्षर । पृ० ६६ । १४ सगीत शास्त्र के अनुसार ताल मे का विराम जो सम, विपम, अतीत और अनागत चार प्रकार का होता है। (तात्रिक)। मानकंद-सञ्ज्ञा पुं० [ स० माणक ] १ एक प्रकार का मीठा कद । मानदा-संज्ञा स्त्री॰ [ म० ] चद्रमा की दूसरी कला या लेखा [को॰] । विशेप-यह कंद वगाल में बहुत अधिक होता है और प्राय मानद्रुम-सज्ञा पु० [सं० ] सेमल का पेड । तरकारी के रूप मे या दूसरे अनाजो के साथ खाया जाता है। मानधन-सज्ञा पु० [ स०] वह जिसका वन मान वा प्रतिष्ठा हो । वह यह बहुत जल्दी पचता है। इसलिये दुर्वल रोगियो आदि के जो वहुत वडा अभिमानी हो। लिये बहुत लाभदायक होता है। कही कही पारारोट या मानधाता-सज्ञा पुं॰ [ म० मान्धाता] दे० 'माघाता' । सागूदाने की तरह भी इसका व्यवहार होता है । यह मृदु, मानधानिका-सज्ञा सी० [ सं० ] ककडो । विरेचक, मूत्रकारक और बवासीर तथा कब्जियत के लिये मानन-सज्ञा पुं॰ [ सं० ] [स्त्री० मानना] श्रादर करना । मान करना। वहुत उपयोगी माना जाता है। समान [को०] । २ एक प्रकार को मिली जो सालिव मित्री के नाम से वाजारो मानना'-क्रि० प्र० [ स०] १ अगीकार करना। स्वीकार करना । मे मिलती है। मजूर करना । जैसे,—(क) म मानते है कि आप उनकी बुराई मानक'-मशा पु० [ स० ] मानकच्चू । मानकद । नही कर रहे हैं। (ख) मान न मान, मैं तेरा मेहमान । मानक-सचा पुं० [सं० माणिक्य ] दे० 'माणिक्य' । उ०-अमर (कहा०)। २ कल्पना करना । फर्ज करना । समझना । जैसे,- वरप घरती निपज अद्रि वरपदाई। गुरु हमारा बानी वरप मान लीजिए कि हम लोग वहाँ न जा सके, तो फिर क्या चुनि चुनि मानक लेई । -रामानद०, पृ० १३ । होगा? ३ ध्यान मे लाना। समझना। जैसे, बुरा मानना, मानकर-सञ्ज्ञा पुं० वह जिसके आधार पर किसी वस्तु के ठीक बेठीक भला मानना। होने का निर्णय किया जाय । आदर्श, जिसके नमूने पर कोई सयो क्रि०-जाना ।-लेना । चीज तैयार की जाय। ४ ठीक मार्ग पर पाना । अनुकूल होना । जैसे,—यह लडका मानकच्चू-सचा पु० [ देश० ] दे० 'मानकद' । सोधी तरह से नहीं मानेगा। मानकलह-सचा पु० [ स० ] १ ईर्ष्या । डाह । मानजनित कलह । सयो०क्रि०-जाना। २ प्रतिद्वद्विता । चढा ऊपरी । मानना-क्रि० म० १ कोई बात स्वीकार करना । कुछ मजूर करना । मानक्रीड़ा-सशा ली० [म० मानक्रीडा ] सूदन के अनुसार एक जैसे,-याप किसी का कहना नहीं मानते । २ किसी को पूज्य, प्रकार का छद । जैसे,—बदन मुत चाइक। भरतपुर जाइक । आदरणीय या योग्य समझना। किसी के बडप्पन या लियाकत थपितु सिरदार कौं । जतत पितरार की । - सूदन (शब्द॰) । का कायल होना। आदर करना। जमे,-(क) उन महात्मा मानगृह-मचा पुं० [ स० ] रूठकर बैठने का स्थान । कोपभवन । को यहां के बहुत लोग मानते हैं। (ख) लहाई झगडा लगाने उ०-बैठी जाय एकात भवन मे जहाँ मानगृह चार- मे मैं तुम्हे मानता हूं। सूर (शब्द०)। विशेष-कभी कभी कर्ता को छोडकर उसके गुण या कार्य के